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दंगों पर कदम उठाने में देरी क्यों?

मुजफ्फरनगर दंगा में चालीस से अधिक जानें गयीं और सैकड़ों लोग घायल हुए. कफ्र्यू से आम जनजीवन बेहाल रहा. आज भी चारों ओर दहशत का माहौल व्याप्त है. अविश्वास और आशंका के साये में मुजफ्फरनगरवासी जीने को विवश हैं. आपसी कड़वाहट ने लोगों का जीना दूभर कर दिया है. वहीं, पक्ष–विपक्ष की राजनीति का खेल […]

मुजफ्फरनगर दंगा में चालीस से अधिक जानें गयीं और सैकड़ों लोग घायल हुए. कफ्र्यू से आम जनजीवन बेहाल रहा. आज भी चारों ओर दहशत का माहौल व्याप्त है. अविश्वास और आशंका के साये में मुजफ्फरनगरवासी जीने को विवश हैं.

आपसी कड़वाहट ने लोगों का जीना दूभर कर दिया है. वहीं, पक्षविपक्ष की राजनीति का खेल चरम पर है. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव ने इस दंगे को जातीय संघर्ष का नाम दिया है. दंगा हो या जातीय संघर्ष, मरनेवाले तो निदरेष भारतीय ही हैं.

राज्य सरकार का दावा है कि इस स्थिति पर काबू पा लिया गया है. दंगे के इतने दिन बीत जाने के बाद इस पर काबू पाने का दावा करनेवाली सरकार से सवाल है कि दंगे के प्रारंभिक क्षणों में ही कड़े कदम क्यों नहीं उठाये गये? शायद कई जानें बचायी जा सकती थीं.

विजय केसरी, पंच मंदिर, हजारीबाग

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