किसी प्रतियोगिता में न पड़े हिंदी

हिंदी के विषय में थोड़ी देर के लिए यह मान लिया जाये कि यह कोई पारंपरिक (शास्त्रीय) भाषा नहीं है, तभी उसके अस्त्वि और व्यक्तित्व को बखूबी समझा जा सकता है. हमारे देश में तमिल, बांग्ला, मराठी आदि अनेक समृद्ध भाषाएं हैं, जिनकी ज्ञान संपदा का लोहा माना जा सकता है. लेकिन, हिंदी गंगा की […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 20, 2013 4:10 AM

हिंदी के विषय में थोड़ी देर के लिए यह मान लिया जाये कि यह कोई पारंपरिक (शास्त्रीय) भाषा नहीं है, तभी उसके अस्त्वि और व्यक्तित्व को बखूबी समझा जा सकता है.

हमारे देश में तमिल, बांग्ला, मराठी आदि अनेक समृद्ध भाषाएं हैं, जिनकी ज्ञान संपदा का लोहा माना जा सकता है. लेकिन, हिंदी गंगा की तरह वह तरल भंडार है, जो सभी भाषाई जलस्रोतों तक अपनी पहुंच बनाये रखती है. हर भाषा के उद्गम में कहीं कहीं हिंदी जरूर है.

यही नहीं, उनके पलनेबढ़ने से लेकर पुष्पितपल्लवित होने में भी हिंदी का योगदान है. इसके अलावा, उनका विस्तार नयेनये क्षेत्रों तक पहुंचाने में भी यह सहजसुलभ माध्यम बनती है.

लेकिन कभीकभी कोई भाषा अपने स्वतंत्र अस्तित्व को स्थापित करने के लिए हल्ला बोल देती है. यदि ऐसा होता भी है तो हिंदी को कोई एतराज करते हुए उसकी समृद्धि की शुभकामना ही करनी चाहिए. कभीकभी किसी भाषा का व्यवहार हिंदी के प्रति प्रतियोगितात्मक अथवा वैमनस्यपूर्ण भी हो उठता है, तब भी हिंदी भाषियों को शांत बने रहना चाहिए.

ढेरों सभाओंगोष्ठियों में हिंदी पर मंडराते खतरे को जांचा और महसूस किया जाता है और इस आलम में हिंदी के भविष्य के प्रति चिंता व्यक्त की जाती है. मेरी समझ से यह सही नहीं है. ऐसा हम तब करते हैं, जब हम इसे अन्य भाषाओं के साथ दौड़ में डाल देते हैं.

हम यह भूल जाते हैं कि हिंदी एक भाषा नहीं, बल्कि देश की अन्य सभी भाषाओं तक पहुंचने का माध्यम है. हिंदी ही हिंदुस्तान की पहचान है. और सबसे बड़ी बात यह है कि इस देश में हिंदी की जगह कोई दूसरी भाषा नहीं ले सकती. इसलिए किसी दूसरी भाषा के साथ इसकी प्रतियोगिता का कोई प्रश्न ही नहीं उठता.

हेम श्रीवास्तव, बरियातू, रांची

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