फेरीवालों को सम्मान का हक है

।। सुधांशु रंजन ।। वरिष्ठ टीवी पत्रकार दैनिक जरूरतों की वस्तुएं घर के निकट उपलब्ध करानेवाले मेहनतकशों का हर दिन असुरक्षा और अपमान के बीच बीतता है. उनके दु:ख–दर्द को देखते हुए उनके हकों को कानूनी जामा पहनाने का एक क्रांतिकारी कदम उठाया गया है. भारत में 90 फीसदी से अधिक लोग असंगठित क्षेत्रों में […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 20, 2013 4:29 AM

।। सुधांशु रंजन ।।

वरिष्ठ टीवी पत्रकार

दैनिक जरूरतों की वस्तुएं घर के निकट उपलब्ध करानेवाले मेहनतकशों का हर दिन असुरक्षा और अपमान के बीच बीतता है. उनके दु:दर्द को देखते हुए उनके हकों को कानूनी जामा पहनाने का एक क्रांतिकारी कदम उठाया गया है.

भारत में 90 फीसदी से अधिक लोग असंगठित क्षेत्रों में काम करते हैं. उनकी कोई सामाजिक सुरक्षा नहीं होती. इनमें एक बड़ा वर्ग फेरीवालों का है, जो सड़कों के किनारे और गलियों में ठेले लगा कर या घूमघूम कर सामान बेचते हैं.

दो जून की रोटी प्राप्त करने के लिए उन्हें जीतोड़ मशक्कत तो करनी ही पड़ती है, साथ ही ङोलना पड़ता है पुलिसवालों के हाथों अपमान. पुलिस उनसे हफ्ता तो वसूलती ही है, अत्याचार भी करती है. लोगों को दैनिक जरूरतों की वस्तुएं उनके घर के निकट उपलब्ध कराने वाले इन मेहनतकशों का हर दिन असुरक्षा, अपमान तथा अनिश्चितता के बीच बीतता है.

उनके दु:दर्द को देखते हुए केंद्र सरकार ने उनके हकों को कानूनी जामा पहनाने का एक क्रांतिकारी कदम उठाया है. फेरीवालों के अधिकारों को सुनिश्चित करनेवाला स्ट्रीट वैंडर्स (प्रोटेक्शन ऑफ लाइवलिहुड एंड रेग्युलेशन ऑफ स्ट्रीट वैंडिंग) विधेयक संसद के गत मॉनसून सत्र में पारित किया गया है.

विधेयक पेश करते हुए आवास एवं शहरी गरीबी उन्मूलन मंत्री गिरिजा व्यास ने स्वीकार किया कि यह देश का सबसे कमजोर तबका है, जिसकी कोई आवाज नहीं है और यह विधेयक बहुत पहले आना चाहिए था. उन्होंने माना कि पुलिस के हाथों उनका शोषण होता है, अपने स्थान से हटा दिये जाने का खतरा मंडराता रहता है, जिसका अंत होना चाहिए.

विधेयक पर बहस के दौरान सदस्यों ने कहा कि वेंडर्स समाज के सबसे गरीब उद्यमी हैं, जिनकी सरकार ने उपेक्षा की है, जबकि बड़ी कंपनियों के लिए बड़ीबड़ी सरकारी योजनाएं हैं. उन्होंने बताया कि किस तरह ये फेरीवाले 10 से 25 प्रतिशत ब्याज दर पर कर्ज लेते हैं, अपनी आमदनी का 30 से 40 प्रतिशत हिस्सा घूस देने में गंवाते हैं और अंत में उनके पास जो बचता है वह अकुशल मजदूरों की न्यूनतम मजदूरी से भी कम है.

उन्होंने और भी कई महत्वपूर्ण मुद्दे उठाये, मसलन उन्हें पीने का पानी तथा शौचालय की सुविधा मिलनी चाहिए और घनी आबादी वाले इलाकों में उन्हें स्थायी दुकानें दी जानी चाहिए. उनके सामानों का बीमा भी किया जाये. साथ ही उनके परिजनों के लिए आवास एवं स्वास्थ्य सुविधाओं की व्यवस्था भी की जानी चाहिए.

विधेयक में प्रावधान है कि हर पांच वर्ष में सर्वेक्षण करा कर फेरीवालों को पहचान पत्र एवं लाइसेंस दिये जायेंगे. इसमें बीमा तथा कर्ज देने की भी व्यवस्था की गयी है. राष्ट्रीय शहरी जीविका मिशन के अंतर्गत राशि का एक हिस्सा उनके लिए निर्धारित की जायेगी और यह भी पक्का किया जायेगा कि बैकों से भी उन्हें ऋण मिल सके.

विधेयक में शहर वेंडिग कमिटी की नयी अवधारणा का प्रतिपादन किया गया है, जिसमें बाजार, फेरीवालों, नगरपालिका, पुलिस, रेजिडेंट वेलफेयर एसोशिएशन तथा गैरसरकारी संगठनों के प्रतिनिधि होंगे. यह कमिटी लाइसेंस एवं प्रमाणपत्र जारी करेगी. कमिटी यह भी तय करेगी कि किस फेरीवाले को कहां पर सामान बेचना है. अभी कारोबार कर रहे फेरीवालों को तब तक नहीं हटाया जायेगा जब तक कि लाइसेंस, पंजीकरण तथा ठेले लगाने के क्षेत्र निश्चित कर दिये जाएं.

जब अजय माकन आवास एवं शहरी गरीबी उन्मूलन मंत्री थे, तब मुंबई में वकोला में एक फेरीवाला मदन जायसवाल के घर गये थे. कुछ दिनों पहले जब पुलिस सड़क से अतिक्रमण हटा रही थी, जायसवाल की दुखद मौत हो गयी थी. माकन ने पीड़ित परिवार की माली हालत के बारे में जानकारी प्राप्त की. माकन की इस आधार पर कुछ लोगों ने आलोचना की कि अवैध रूप से सड़कों पर व्यापार करनेवालों को सरकारी संरक्षण दिया जा रहा है, किंतु उन्होंने मानवीय आधार पर फेरीवालों के पुनर्वास की जरूरत पर बल दिया था.

यह निर्विवाद है कि फेरीवालों के अधिकारों को कानूनी शक्ल मिलनी चाहिए, पर इसके दूसरे पक्ष को नजरअंदाज करना भी गलत होगा. विधेयक में 14 वर्ष से ऊपर के बच्चों को लाइसेंस देने की व्यवस्था है. इसका सामंजस्य बालश्रम कानून तथा शिक्षा का अधिकार से भी होना चाहिए.

बालश्रम (निरोधक एवं नियमन) अधिनियम, 1986 के अनुसार 14 वर्ष तक श्रम की इजाजत नहीं हैं. उसके ऊपर का बच्चा काम कर सकता है, जिसका नियमन होगा. कुछ ऐसे खतरनाक काम हैं, जिनमें 14 वर्ष के ऊपर भी काम करने की इजाजत नहीं है. इसे बालश्रम (निरोधक एवं नियमन) कानून कहा जाता है. इस कानून में संशोधन कर आयु को 14 से बढ़ा कर 18 किया जा रहा है.

यह संशोधन आने ही वाला है. इसके अलावा किशोर न्याय अधिनियम में भी सड़कों पर काम करने वालों की उम्र 18 वर्ष है. इसलिए 14 वर्ष के बच्चे को लाइसेंस देना गलत होगा. साथ ही यह भी सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि इससे राहगीरों, ट्रैफिक और स्थायी दुकानदारों को किसी तरह की परेशानी हो.

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