ऐसी लफ्फाजी नुकसानदेह हो सकती है

आकार पटेल वरिष्ठ पत्रकार रक्षा मंत्री पर्रिकर को अपनी ऊर्जा और अपना समय अपनी लाठी को बड़ी करने में लगाना चाहिए, न कि यह भूल जाने में कि उन्हें बोलने में नरमी बरतनी चाहिए, जैसा कि आतंकवादियों के इस्तेमाल का बयान देते हुए उन्होंने किया. रक्षा मंत्री के पास बड़ी लाठी होनी चाहिए, पर उनके […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | June 2, 2015 5:33 AM
आकार पटेल
वरिष्ठ पत्रकार
रक्षा मंत्री पर्रिकर को अपनी ऊर्जा और अपना समय अपनी लाठी को बड़ी करने में लगाना चाहिए, न कि यह भूल जाने में कि उन्हें बोलने में नरमी बरतनी चाहिए, जैसा कि आतंकवादियों के इस्तेमाल का बयान देते हुए उन्होंने किया.
रक्षा मंत्री के पास बड़ी लाठी होनी चाहिए, पर उनके बयानों में नरमी होनी चाहिए. लेकिन अभिजात्य भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान में पढ़े बौद्धिक मनोहर पर्रिकर के रूप में भारत को इससे उलट रक्षा मंत्री मिला है, जिनके पास छड़ी तो छोटी है, पर वे बड़बोले हैं. पिछले महीने की 21 तारीख को उन्होंने सरकारी नीति के रूप में आतंकवादियों के खिलाफ आतंकवादियों के इस्तेमाल की बात कही.
मनोहर पर्रिकर ने कहा था कि ‘कुछ ऐसी चीजें हैं, जिनके बारे में यहां बातचीत नहीं की जा सकती है.’ परंतु फिर उन्होंने उन बातों की चर्चा करते हुए कहा, ‘अगर कोई देश, चाहे वह पाकिस्तान हो या कोई और, मेरे देश के विरुद्ध षडय़ंत्र कर रहा है, तो हम निश्चित रूप से कुछ आक्रामक कदम उठायेंगे.’ उन्होंने एक कहावत का इस्तेमाल करते हुए कहा, ‘कांटे से कांटा निकालना. हमें आतंकवादियों से केवल आतंकवादियों के जरिये ही निपटना है. हम ऐसा क्यों नहीं कर सकते? हमें यह करना चाहिए. यह काम मेरे सैनिक क्यों करेंगे.’
‘आतंकियों के विरुद्ध आतंकियों के इस्तेमाल’ की रणनीति भारत अपना चुका है और यह असफल भी रही है.यह रणनीति कश्मीर में भी असफल हो चुकी है, जहां 1990 के दशक में कांग्रेस सरकार ने सेना को जिम्मेवारी देने की जगह जमात-ए-इस्लामी व अन्य इसलामी गुटों के विरोधियों को हथियारबंद करने का फैसला किया था. यह प्रयोग जल्द ही खत्म हो गया और इसके नेता कुक परे को बाद में उग्रवादियों ने मार गिराया था, जिनका वर्चस्व बना रहा था.
कुछ साल पहले अपनी कश्मीर यात्र के दौरान मुङो यह देख कर आश्चर्य हुआ था कि श्रीनगर में एक दर्जन से अधिक उर्दू दैनिक समाचार पत्र छपते हैं. मैंने एक साथी से पूछा कि एक छोटे शहर में इतने सारे अखबार कैसे चल सकते हैं. उन्होंने बताया कि इनके लिए धन दिल्ली और इंटेलिजेंस ब्यूरो से आता है, जो मीडिया को अपने पक्ष में रखना चाहते हैं. मैंने उन अखबारों में देखा कि वे सरकार का पैसा खाकर उलटा काम कर रहे हैं. हमें इस बात को समझना चाहिए कि ऐसे खेलों की तुलना में लोकतांत्रिक प्रक्रिया आंतरिक सुरक्षा की बेहतर गारंटी है.
मध्य भारत में भी आतंकवादियों के इस्तेमाल का प्रयोग असफल हुआ है, जहां सरकार ने माओवादियों के खिलाफ हथियारबंद गुटों को मैदान में उतारा, जो असहाय जनता के ही विरुद्ध खड़े हो गये हैं. यह अजीब बात है कि पर्रिकर जैसा अनुभवी मंत्री इस तरह की बातें कह सकता है.
स्वाभाविक रूप से विपक्ष को इस बयान पर हैरानी हुई और पूर्व केंद्रीय मंत्री पी चिदंबरम ने कहा कि ‘रक्षा मंत्री का यह बयान खतरनाक है. मुङो आशा है कि वे अपने बयान की गंभीरता को समङोंगे और इसे वापस ले लेंगे.’ चिदंबरम ने यह भी कहा कि ‘भारत ने यूपीए शासन के दस वर्षो में पाकिस्तान में किसी आतंकी या आपराधिक तत्व को सक्रिय नहीं किया तथा मुङो भरोसा है कि एनडीए सरकार ने भी ऐसा नहीं किया है और न ही करेगी. उनका बयान बेतुका है और उन्हें इसे तुरंत वापस लेना चाहिए.’
लेकिन मनोहर पर्रिकर ने अपने बड़बोलेपन में कमी नहीं की. उन्होंने 26 मई को कहा कि वे ‘भारत की रक्षा के लिए किसी भी स्तर तक जायेंगे’ और हमलावरों को ‘उसी अंदाज में जवाब दिया जायेगा.’
पाकिस्तान में इस बयान को उसके दावे की पुष्टि के रूप में देखा गया कि भारत पाकिस्तान में बलूचिस्तान और अन्य जगहों पर हस्तक्षेप करता रहा है और देश के खिलाफ हिंसा को मदद दे रहा है.
यह समझा जाना चाहिए था कि इस तरह की बयानबाजी कुछ पलों के लिए तालियां तो बटोर सकती है, पर लंबे समय के लिए नुकसानदेह होती है. कुछ माह पूर्व एक नौसेनिक अधिकारी ने पाकिस्तानी नौका डुबाने की शेखी बघार कर ऐसी ही गलती की थी और इस कारण परेशानी में पड़ गया था.
मेरी नजर में मनोहर पर्रिकर ने एक मंत्री के रूप में ली गयीं दो शपथों का उल्लंघन किया है. शपथ के शब्द इस प्रकार थे कि वे ‘संविधान और कानून के अनुरूप’ काम करेंगे. ‘आतंकवादियों के इस्तेमाल’ का उनका बयान इस शपथ का उल्लंघन है. दूसरी शपथ थी गोपनीयता बनाये रखने की. सभी सरकारें उलटी-सीधी हरकतें करती हैं, क्योंकि अंतरराष्ट्रीय कानून बहुत स्पष्ट नहीं हैं, लेकिन शायद ही कोई मंत्री इसके बारे में लफ्फाजी करता है.
गोपनीयता की शपथ रक्षामंत्री मनोहर पर्रिकर को इस बात के लिए प्रतिबद्ध करती है कि वे ‘अपना कर्तव्य निभाने के लिए आवश्यक होने के अलावा, सीधे या अप्रत्यक्ष तरीके से किसी व्यक्ति या व्यक्तियों से ऐसे किसी मामले में चर्चा नहीं करें, जो उनके संज्ञान में लायी जायेगी.’ लेकिन उनकी यह डींग, अगर वे सही में सरकारी नीति का उल्लेख कर रहे थे, उनके कर्तव्य निभाने की दृष्टि से आवश्यक नहीं थी.
रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर इस तथ्य को स्वीकार करते हैं कि भारत एक गरीब देश है और इसके पास सीमित संसाधन उपलब्ध हैं. पूर्व सैनिकों के लिए एक समान पेंशन की मांग पर अपनी देरी को सही ठहराते हुए रक्षा मंत्री का कहना था कि ‘लोग इसके वित्तीय प्रभावों के बारे में नहीं जानते हैं.’
रक्षा मंत्री पर्रिकर की निगरानी में भारतीय वायु सेना को प्रस्तावित 126 नये विमानों की जगह 36 राफेल लड़ाकू विमान मिलनेवाले हैं. इसके पीछे कई कारण हो सकते हैं, जिनमें निश्चित रूप से बजट भी एक महत्वपूर्ण अहम कारण रहा होगा.
पर्रिकर ने पहाड़ी युद्ध टुकड़ी बनाने की योजना में भी कटौती कर दी है और अब उसमें 80 हजार की जगह 35 हजार जवानों की ही भर्ती की जायेगी.
उनका कहना है कि बड़ी योजनाओं के लिए ‘पैसा कहां है?’ रक्षा मंत्री की यह बात बिल्कुल सही है. उन्हें अपनी ऊर्जा और अपना समय अपनी लाठी को बड़ी करने में लगाना चाहिए, न कि यह भूल जाने में कि उन्हें बोलने में नरमी बरतनी चाहिए, जैसा कि आतंकवादियों के इस्तेमाल का बयान देते हुए उन्होंने किया.

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