नेताओं से उम्मीद करना मूर्खता

जिन्हें बस अपनी जेब की पड़ी हो, वो राज्य के विकास की ओर क्या नजर डालेंगे? राज्य की स्थिति कैसी भी हो या किसी की भी सरकार हो, नेताओं को चिंता है तो बस खुद की झोली भरने की. राज्य बनने के बाद जितनी महंगाई नहीं बढ़ी, उससे कहीं ज्यादा विधायकों-मंत्रियों का भत्ता बढ़ा है. […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | June 4, 2015 6:46 AM

जिन्हें बस अपनी जेब की पड़ी हो, वो राज्य के विकास की ओर क्या नजर डालेंगे? राज्य की स्थिति कैसी भी हो या किसी की भी सरकार हो, नेताओं को चिंता है तो बस खुद की झोली भरने की. राज्य बनने के बाद जितनी महंगाई नहीं बढ़ी, उससे कहीं ज्यादा विधायकों-मंत्रियों का भत्ता बढ़ा है.

झारखंड के इन ‘सपूतों’ ने विकास की राह पकड़ी है, और हम चींटी की तरह रेंग रहे हैं. लोग कहने लगे हैं कि झारखंड में बिना पढ़े नौकरी करनी हो और शान की जिंदगी बसर करनी है तो राजनीति सबसे बेहतर रास्ता है. इससे भद्दी टिप्पणी और क्या हो सकती है राजनीति पर!

बस लोगों का दिल एक बार किसी तरह जीत लो, जिंदगी सुखपूर्वक बीतेगी. पूरे देश को रोशन कराने वाला कोयला हमारा, मगर हमारी ही रातें कोयले की तरह काली. यहां के पत्थरों से देश की सड़कें बन रही हैं मगर हमें खास कर गांव के लोगों को सड़क नसीब नहीं. यूं तो राज्य में लूट मची हुई है ही, सरकारी भत्ता बढ़ा कर हार के बाद की जिंदगी भी सुखमय बनाने योजना है. अगर वाकई इतने रु पये-पैसों की जरूरत उन्हे होती है तो क्या अन्य लोगों की जरूरतें इतनी कम है कि उनके लिए सोचते तक नहीं. जैसे पिछले वर्ष पारा शिक्षकों के मानदेय में 300 रु पये की बढ़ोतरी की गयी थी. कितना जायज है यह? ऐसे कई उदाहरण हैं. क्या अन्य राज्य के मंत्रियों के खर्च इनसे बहुत है या वो पैसे खर्च करना नहीं जानते! आखें तब फटी रह जाती हैं जब कोई व्यक्ति चुनाव के लिए पहली बार नामांकन करता है. संपत्ति के ब्योरे में पांच वर्षो बाद उसकी संपत्ति कई गुणा बढ़ जाती है, मानो कुबेर का खजाना मिल गया हो. राज्य के नागरिकों को लूट अपने लिए व अपनी औलादों की ही सोच सकते हैं ये नेता. इनसे विकास की आस भी मूर्खता है.

हरिश्चंद्र महतो, पश्चिमी सिंहभूम

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