घृणा की राजनीति बंद हो

उत्तर प्रदेश एक बार फिर सांप्रदायिक हिंसा की आग में जला. भेद-भाव की दीवार ने इस बार पश्चिमी उत्तर प्रदेश को चुना. ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यह है कि आखिर अखिलेश सरकार ऐसी हिंसाओं से निबटने में विफल क्यों है? अखिलेश जी, चुनाव जीतने के बाद जब आपकी ताजपोशी मुख्यमंत्री के रूप में हुई […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 21, 2013 1:45 AM

उत्तर प्रदेश एक बार फिर सांप्रदायिक हिंसा की आग में जला. भेद-भाव की दीवार ने इस बार पश्चिमी उत्तर प्रदेश को चुना. ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यह है कि आखिर अखिलेश सरकार ऐसी हिंसाओं से निबटने में विफल क्यों है? अखिलेश जी, चुनाव जीतने के बाद जब आपकी ताजपोशी मुख्यमंत्री के रूप में हुई थी, तो सूबे की जनता को आपसे बहुत उम्मीद थी. आपकी सरकार पहली बार पूरे बहुमत से सत्ता में आयी थी. लोग बसपा सरकार के भ्रष्टाचार से तंग आ गये थे.

विकल्प के तौर पर आप जनता का भरोसा जीतने में कामयाब रहे. आप युवा हैं, लोगों को आपसे बहुत उम्मीद थी. पर अफसोस यह रहा कि जिस दिन चुनाव के नतीजे घोषित हुए, उसी रात आपके कार्यकर्ताओं ने हिंसा और उत्पात मचाना शुरू कर दिया. पत्रकारों को बंधक बना लिया गया. फिर आपकी पार्टी को दिये हुए वोटों के लिए जनता को तुरंत एक बार फिर अपनी गलती का एहसास हो गया.

आप खुश थे क्योंकि आपके पास अब पांच साल का मौका था. पर याद रहे अखिलेश जी, जिंदा कौमें पांच साल तक इंतजार नहीं करतीं. आपने अपने पिताजी की मानसिकता से अलग हट कर काम किया. आपने आधुनिकता को सही भांपा और छात्रों को लैपटॉप-टैबलेट दिया. लेकिन सभी धर्मो को साथ लेकर चलने में आप विफल हो गये. आप पर डीएसपी जियाउल हक की हत्या के मामले में राजा भैया को बचाने का आरोप लगा. एक समुदाय को खुश करने के लिए आपने ईमानदार अधिकारी दुर्गा नागपाल को निलंबित कर दिया. इसकी वजह से पूरे देश में आपकी भद्द पिट गयी. चौरासी कोसी परिक्र मा को रोक कर आप एक बार फिर अपने राजनीतिक मंसूबे में कामयाब हो गये. घृणा की राजनीति आखिर कब तक?
नितेश कुमार त्रिपाठी, ई-मेल से

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