नीतियों के फेर में लटका राशन कार्ड
झारखंड में सरकारी मशीनरी के निकम्मेपन के कारण करीब 70 लाख लोगों को राशन कार्ड नहीं मिल पाया है. राज्य के अधिकारी पिछले तीन-चार साल में यही तय नहीं कर पा रहे हैं कि लोगों को कैसे राशन कार्ड उपलब्ध कराया जाये. करीब दो साल पहले यह किया गया था कि आधार कार्ड को ही […]
झारखंड में सरकारी मशीनरी के निकम्मेपन के कारण करीब 70 लाख लोगों को राशन कार्ड नहीं मिल पाया है. राज्य के अधिकारी पिछले तीन-चार साल में यही तय नहीं कर पा रहे हैं कि लोगों को कैसे राशन कार्ड उपलब्ध कराया जाये. करीब दो साल पहले यह किया गया था कि आधार कार्ड को ही राशन कार्ड से जोड़ दिया जायेगा. यह तो नहीं हो पाया.
अब संबंधित अधिकारी कह रहे हैं कि तीन साल पहले जैसा फैसला हुआ था, उसी के मुताबिक राशन कार्ड बांटने का काम जल्द शुरू किया जायेगा. आम लोगों को यह समझ में नहीं आ रहा है कि अधिकारियों के बीच नीति बनाने में इस तरह का भ्रम क्यों है. तीन साल पहले काफी जोर-शोर राशन कार्ड बनाने का काम शुरू हुआ था. लोगों ने रात-रात भर लाइन में लग कर अपने फार्म जमा किये थे. इसके बाद से हर महीने-दो महीने में सरकार की ओर से जल्द ही राशन कार्ड बांटने की घोषणा होती रही है. इंतजार करते-करते लोग भी परेशान हो गये हैं.
बाद में सरकार की ओर से यह घोषणा हो गयी कि अब राशन कार्ड के बदले ई-राशन कार्ड बनेगा, जो आधार नंबर से जुड़ा होगा. आधार कार्ड बनने का सिलसिला जारी है. राज्य के वर्तमान मुख्य सचिव आरएस शर्मा खुद ही आधार नंबर बनाने वाले प्राधिकार से जुड़े रहे हैं. उन्हें इस बात का भी इलहाम है कि आधार कार्ड को राशन कार्ड से जोड़ने की बात तकनीकी तौर पर बहुत आसान दिखती है, लेकिन इसके क्रियान्वयन में व्यावहारिक परेशानियां काफी हैं. झारखंड में आधार कार्ड बनाने का काम तेजी से हो रहा है. फिर भी सभी को आधार कार्ड देने का लक्ष्य अगले साल के अंत तक भी पूरा होगा कि नहीं, कहा नहीं जा सकता है.
ऐसे में राशन कार्ड राज्य के लोगों के लिए गूलर का फूल बना हुआ है. राशन कार्ड नहीं होने से केवल जन वितरण प्रणाली के सस्ते राशन का ही नुकसान नहीं होता है, बल्कि लोग एक जरूरी दस्तावेज से भी वंचित रहते हैं. राशन कार्ड नहीं होने की स्थिति में आनेवाले दिनों में खाद्य सुरक्षा कानून के तहत मिलनेवाले अनाज का वितरण कैसे होगा, इस पर भी राज्य सरकार के अधिकारियों को सोचना पड़ेगा. अब पुराने र्ढे पर ही राशन कार्ड बांटने के फैसले से अधिकारियों की सोच और दृष्टि पर रोना आ रहा है कि आखिर यही करना था, तो तीन साल का इंतजार क्यों?