गर्मी से घट रही श्रम क्षमता

एरिक होलथॉस वरिष्ठ मौसम विज्ञानी हालिया इतिहास की सबसे भयंकर गरम हवाएं भारत में चल रही हैं. खबरों के मुताबिक, मरनेवालों में बड़ी संख्या निर्माण कार्य में लगे मजदूरों, बुजुर्गो और बेघरों की है. स्थानीय सरकारें पेयजल का इंतजाम और लू से बचाव के लिए लोगों को जागरूक कर रही हैं. लेकिन इन उपायों से […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | June 5, 2015 5:13 AM
एरिक होलथॉस
वरिष्ठ मौसम विज्ञानी
हालिया इतिहास की सबसे भयंकर गरम हवाएं भारत में चल रही हैं. खबरों के मुताबिक, मरनेवालों में बड़ी संख्या निर्माण कार्य में लगे मजदूरों, बुजुर्गो और बेघरों की है. स्थानीय सरकारें पेयजल का इंतजाम और लू से बचाव के लिए लोगों को जागरूक कर रही हैं.
लेकिन इन उपायों से बहुत फर्क नहीं पड़ेगा. गरमी से मरनेवाले ऐसे गरीब लोग हैं, जो आराम के लिए कुछ समय की फुरसत भी नहीं पा सकते. सबसे अधिक प्रभावित इलाकों में तापमान कुछ दिनों के लिए सामान्य से अधिक हो गया था. ये दिन आम तौर पर साल के सबसे गरम दिन होते हैं. नयी दिल्ली में तापमान इतना अधिक हो गया- 113 डिग्री फारेनहाइट (45 डिग्री सेल्सियस) तक- कि सड़कें भी पिघलने लगीं. हैदराबाद में मई के 26 दिन सामान्य से अधिक गरम रहे. भारतीय मौसम विभाग के अनुसार, 26 मई को ओड़िशा के तितलागढ़ में तापमान 117 डिग्री फारेनहाइट (47.2 डिग्री सेल्सियस) तक पहुंच गया, जो देश में सर्वाधिक था और भारत के इतिहास के सबसे गरम दिन से महज पांच डिग्री कम था.
पर गनीमत थी कि ये सभी ‘ड्राइ हीट’ की जगहें हैं, जहां रात का तापमान 80 डिग्री (26 डिग्री सेल्सियस) तक आ जाता है. तटीय इलाकों में तापमान तो कुछ कम था, पर उमस की गरमी बहुत अधिक रही, जो रात में भी बनी रहती है. उदाहरण के लिए, मुंबई में ताप तालिका 100 (37.7 डिग्री सेल्सियस) से कुछ नीचे 27 मई की रात कुछ घंटों के लिए ही आयी. लू की स्थिति में रात की गरमी बहुत खतरनाक होती है. अमेजन नदी घाटी के इलाकों के बाद तटीय भारत के क्षेत्र पूरी धरती पर सबसे अधिक गरमी दर्ज करते हैं. और वैश्विक गरमी इसे और भयावह बना रही है.
नेचर क्लाइमेट चेंज के एक अध्ययन में पाया गया है कि भारत की श्रम क्षमता बढ़ती गरमी के कारण कम होती जा रही है तथा बेहोश होने, मन न लगने और दौरा पड़ने जैसे प्रभाव देखने में आ रहे हैं. अन्य शोध इंगित कर रहे हैं कि गरमी का कुप्रभाव आगामी बरसों में बढ़ता ही जायेगा. यह 25 करोड़ किसानों के देश के लिए तबाही की पूर्वसूचना है.
अभूतपूर्व गरमी और व्यापक ग्रामीण अर्थव्यवस्था का जोड़ भारत के लिए खतरनाक स्थिति है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2019 तक पूरे देश में बिजली पहुंचाने का वादा किया है (अभी 25 फीसदी आबादी के पास यह सुविधा नहीं है). वातानुकूलन के उपयोग में हर साल 20 फीसदी की जबर्दस्त वृद्धि देश के कमजोर विद्युत वितरण पर बड़ा बोझ है और इससे ग्रीन हाउस गैसों का उत्सजर्न बहुत बढ़ रहा है.
भारत के अलावा अन्य गरीब देशों में वातानुकूलन की मांग एक नैतिक सवाल भी खड़े कर रही है- जब दुनिया के अन्य इलाकों में लोग गरमी से मर रहे हों, तब धरती के धनी हिस्सों में ग्रीन हाउस गैसों के उत्सजर्न में वृद्धि को सही ठहराना बहुत मुश्किल है.
मेरी नजर में विश्व का सबसे महत्वपूर्ण मौसम पूर्वानुमान भारतीय मॉनसून इस वर्ष कमजोर रहेगा. चार महीनों के मॉनसून से सालाना वर्षा की 70 फीसदी मात्र पूरी होती है, और खेती की निर्भरता के कारण इसे भारत का ‘असली वित्त मंत्री’ भी कहा जाता है. इस कमी से गरमी कुछ और हफ्ते रह सकती है.

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