आइए जरा जीडीपी को समझें

डॉ भरत झुनझुनवाला अर्थशास्त्री अक्तूबर से दिसंबर 2014 के जीडीपी के आंकड़े पहले 7.5 प्रतिशत वृद्धि के बताये गये थे. बाद में इन्हें 6.6 प्रतिशत पर रिवाइज कर दिया गया था. संभावना है कि पिछली तिमाही के आंकड़ों को इसी प्रकार रिवाइज करके घटा दिया जायेगा. भारत सरकार ने घोषणा की है कि जनवरी-मार्च, 2015 […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | June 9, 2015 5:24 AM

डॉ भरत झुनझुनवाला

अर्थशास्त्री

अक्तूबर से दिसंबर 2014 के जीडीपी के आंकड़े पहले 7.5 प्रतिशत वृद्धि के बताये गये थे. बाद में इन्हें 6.6 प्रतिशत पर रिवाइज कर दिया गया था. संभावना है कि पिछली तिमाही के आंकड़ों को इसी प्रकार रिवाइज करके घटा दिया जायेगा.

भारत सरकार ने घोषणा की है कि जनवरी-मार्च, 2015 की तिमाही में देश की आर्थिक विकास दर 7.5 रही है. इसी तिमाही में चीन की विकास दर सात प्रतिशत रही है. यानी हम विश्व की तीव्रतम अर्थव्यवस्था बन गये हैं. परंतु ये आंकड़े ठोस नहीं दिखते हैं. विषय को समझने के लिए जीडीपी की तह में जाना होगा.

जीडीपी डॉक्टर के पर्चे जैसा दिखता है. लेकिन इसे समझना बहुत आसान है. जीडीपी को किसान के उदाहरण से समझा जा सकता है. किसान कितना बड़ा है, इसकी माप उसके खेत में हुए उत्पादन से किया जा सकता है. इसके चार हिस्से होंगे. पहला हिस्सा खेत पर काम करनेवाले श्रमिकों द्वारा खपत है.

जैसे कर्मियों ने गुड़ बनाया और खाया. जितना खाया यह खेत का उत्पादन हुआ. दूसरा हिस्सा किसान स्वयं द्वारा की गयी खपत का है. जो गुड़ किसान के परिवार ने खाया वह भी उत्पादन में जोड़ा गया. तीसरा हिस्सा किसान द्वारा गुड़ की भट्टी बनाने का हुआ. किसान ने ईंट बनायी और भट्टी लगायी. यह भी खेत पर उत्पादन हुआ.

चौथा हिस्सा किसान द्वारा गेहूं, गन्ने और गुड़ की बिक्री हुई. इन चारों को जोड़ लिया जाये तो किसान कितना बड़ा है, इसकी माप हो जायेगी. लेकिन जो उत्पादन हुआ, उसमें खरीदे गये डीजल, बिजली और फर्टिलाइजर का भी योगदान था. अत: उत्पादन में से खरीदे गये माल का मूल्य घटा दें, तो किसान का जीडीपी हमें मालूम पड़ जायेगा.

देश की अर्थव्यवस्था इसी तरह मापी जाती है. पहला हिस्सा देशवासियों द्वारा की गयी खपत का होता है. दूसरे, सरकार द्वारा की गयी खपत और निवेश का आकलन कर इसे भी जीडीपी में जोड़ा जाता है.

तीसरे, देश के उद्यमियों द्वारा कारखानों तथा आफिसों में किये गये निवेश की गणित की जाती है. इनसे अनुमान लगाया जाता है कि देश में कितना उत्पादन निवेश के लिए हुआ. चौथे, देश द्वारा जितना निर्यात किया जाता है, उसे जीडीपी में जोड़ा जाता है.

इसके साथ-साथ आयातों को जीडीपी से घटाया जाता है. इन चारों स्नेतों से उत्पन्न हुए जीडीपी की गणना करने के लिये पहले वस्तुओं की सूची बनायी जाती है. फिर सर्वे करके इनकी प्रति परिवार या उद्यम मात्र का अनुमान लगाया जाता है फिर परिवार अथवा उद्यम की संख्या से गुणा करके जीडीपी का आकलन किया जाता है. इस सूची को 5-10 वर्ष के बाद नया बनाया जाता है.

सरकार ने एक परिवर्तन किया है. अब तक जीडीपी की गणना वस्तुओं के उत्पादन की लागत के आधार पर की जाती थी. अब सरकार ने वस्तुओं के बाजार भाव के आधार पर जीडीपी की गणना करने का निर्णय लिया है. बाजार भाव में उत्पादन कंपनी का प्रॉफिट तथा रिटेलर का माजिर्न भी शामिल होता है. अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुसार, बाजार भाव से ही जीडीपी की गणना की जाती है. इस परिवर्तन के कारण देश का जीडीपी 15-20 प्रतिशत बढ़ गया होगा, ऐसा मेरा अनुमान है.

जीडीपी की गणना के कई पेंच हैं. सरकार द्वारा खपत, निवेश तथा निर्यात की मात्र का विभिन्न तरीकों से अनुमान लगाया जाता है. इस अनुमान का आधार पारदर्शी नहीं होता है. सेक्शन अधिकारी द्वारा इन्हें आसानी से बढ़ाया-घटाया जा सकता है. वर्तमान में जीडीपी में 7.5 प्रतिशत की वृद्धि को समझने के लिए अर्थव्यवस्था के दूसरे आंकड़ों को देखना होगा. वर्तमान समय में तमाम सूचकांक निगेटिव हैं. रिजर्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार, पिछली तिमाही में बैंकों द्वारा दिये गये ऋण में केवल 8.9 प्रतिशत की वृद्धि हुई थी.

पिछले साल इसी तिमाही में 14.2 प्रतिशत की वृद्धि हुई थी. उद्योगों को दिये गये ऋण में पिछली तिमाही में 6.4 प्रतिशत की वृद्धि हुई थी, जबकि पिछले वर्ष 12.3 प्रतिशत की वृद्धि हुई थी. बैंकों द्वारा कम ऋण दिया जाना इस बात का संकेत है कि अर्थव्यवस्था में चाल नहीं है. फिर जीडीपी में तेजी कैसे आ सकती है?

बंबई स्टॉक एक्सचेंज के सेंसेक्स सूचकांक में शामिल बड़े उद्योगों में पिछली तिमाही के रिजल्ट कमजोर रहे हैं. जानकारों की मानें, तो लगभग यही गति दूसरी कंपनियों की भी रही है.

जीडीपी के एक अहम भाग सेवा क्षेत्र का प्रमुख हिस्सा सरकारी सेवाओं का होता है जैसे पुलिस, नोट छापना, रक्षा आदि के लिए किये गये कार्य. सरकारी सेवा क्षेत्र में पिछली तिमाही में मात्र 0़.1 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, जबकि पिछले वर्ष इसी तिमाही में यह 19.7 प्रतिशत थी. वित्तीय घाटे को नियंत्रित करने के लिए सरकार ने खर्च करने बंद कर दिये हैं.

इस प्रकार के दूसरे आंकड़े भी बताते हैं कि अर्थव्यवस्था शिथिल पड़ रही है. ऐसे में सरकार द्वारा किया जा रहा 7.5 प्रतिशत की विकास दर का दावा संदिग्ध है. अक्तूबर से दिसंबर 2014 के जीडीपी के आंकड़े पहले 7.5 प्रतिशत वृद्धि के बताये गये थे. बाद में इन्हें 6.6 प्रतिशत पर रिवाइज कर दिया गया था. संभावना है कि पिछली तिमाही के आंकड़ों को इसी प्रकार रिवाइज करके घटा दिया जायेगा.

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