योग को राजनीतिक रंग देना ठीक नहीं
विचार-बहुल देश होने के साथ भारत एक विवाद-बहुल देश भी है. अक्सर विवादों का तार्किक आधार नहीं, बल्कि हित साधने के इरादे सक्रिय होते हैं. योग को लेकर चल रही मौजूदा बहस इसी प्रवृत्ति का एक उदाहरण है. भारतीय परंपरा में योग व्यक्तिगत चेतना या आत्मा के सार्वभौमिक चेतना या भाव से एकाकार की अनेक […]
विचार-बहुल देश होने के साथ भारत एक विवाद-बहुल देश भी है. अक्सर विवादों का तार्किक आधार नहीं, बल्कि हित साधने के इरादे सक्रिय होते हैं. योग को लेकर चल रही मौजूदा बहस इसी प्रवृत्ति का एक उदाहरण है. भारतीय परंपरा में योग व्यक्तिगत चेतना या आत्मा के सार्वभौमिक चेतना या भाव से एकाकार की अनेक पद्धतियों का समागम है जिसमें ध्यान, व्यायाम और ज्ञान सम्मिलित हैं.
दुर्भाग्य से शांत, सम्यक, और संतुलित जीवन-शैली तथा परिष्कृत वैचारिकी की राह प्रशस्त करनेवाल योग को धर्म और राष्ट्र के प्रतीक के रूप में संकुचित करने के प्रयास होते रहे हैं, लेकिन अनेक भारतीय योगियों ने इस धारा को विश्व के कोने-कोने में ले जाकर इसकी सार्थकता को सिद्ध किया है और स्वीकार्य बनाया है.
यही कारण है कि संयुक्त राष्ट्र में अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाने के प्रस्ताव को 177 देशों का समर्थन मिला, जिनमें चीन, अमेरिका, क्यूबा, जापान, संयुक्त अरब अमीरात, ईरान, इराक, सीरिया, अफगानिस्तान, बांग्लादेश जैसे देश भी शामिल थे. लेकिन इस परिघटना को हमारे देश में एक समूह ने एक धर्म-विशेष के गौरव के रूप में स्थापित करने की संकीर्ण मानसिकता का प्रदर्शन किया है.
धर्म के वर्तमान संगठित स्वरूप और उसके राजनीतिक निहितार्थो की परिधि में योग जैसी सांस्कृतिक और सभ्यतागत उपलब्धियों को सीमित करना अनुचित ही नहीं, योग के सिद्धांतों के विपरीत भी है. योग को थोपने की कवायद और इसके विरोधियों को भारत छोड़ने या समुद्र में डूब मरने की सलाह जैसे रवैये निंदनीय हैं.
इस मसले के बहाने सांप्रदायिक राजनीति करने की कोशिशों का विरोध किया जाना चाहिए. साथ ही, योग का विरोध करनेवाले तबके को भी अपनी चिंताओं को धार्मिक आवरण न देकर इसकी व्यापकता और उपयोगिता पर विचार करना चाहिए. सरकार ने योग दिवस के कार्यक्रमों से सूर्य-नमस्कार को हटा कर सराहनीय पहल की है.
सरकार तथा योग के पक्ष और विपक्ष में खड़े समूहों को योग-परंपरा के महत्व को समुचित रूप से समझ कर इसके प्रचार-प्रसार की प्रक्रिया को आगे बढ़ाना चाहिए. धर्म, कर्मकांड और भौगोलिक सीमा का अतिक्रमण कर योग हमें मनुष्य के रूप में ब्रह्मांड से युक्त करता है. इसी रूप में इसे अंगीकार किया जाना चाहिए.