इनसान की भी ब्रांडिंग जरूरी
।।पवन प्रत्यय।।(प्रभात खबर, पटना)इस पूंजीवादी व्यवस्था में ब्रांडिंग के खेल से हर किसी को दोचार होना पड़ रहा है. अपने जीवन की कुछ प्राकृतिक क्रियाओं को छोड़ दें, तो आजकल लगभग हर काम हम विज्ञापन के माध्यम से बताये गये रास्ते पर चल कर करते हैं. गुण-दोष का परीक्षण किये बगैर. हमें किस साबुन से […]
।।पवन प्रत्यय।।
(प्रभात खबर, पटना)
इस पूंजीवादी व्यवस्था में ब्रांडिंग के खेल से हर किसी को दोचार होना पड़ रहा है. अपने जीवन की कुछ प्राकृतिक क्रियाओं को छोड़ दें, तो आजकल लगभग हर काम हम विज्ञापन के माध्यम से बताये गये रास्ते पर चल कर करते हैं. गुण-दोष का परीक्षण किये बगैर. हमें किस साबुन से स्नान करना है, किस तरह का वस्त्र पहनना है, कौन से मंजन से दांत साफ करने हैं, यह सब हम विज्ञापनों से ही प्रेरित होकर तय करते हैं. खास कर युवा वर्ग हर चीज में ब्रांड पर जोर देता है. उसे बाहर दिखायी देनेवाले जूते-जीन्स से लेकर भीतर छिपे रहनेवाले कच्छा-बनियान तक ब्रांडेड ही चाहिए. जितना बड़ा ब्रांड, उतना बड़ा आदमी. यह तो बात हुई विभिन्न चीजों की ब्रांडिंग की. लेकिन जमाना अब इससे आगे निकल चुका है. अब सामान के साथ-साथ इनसान की भी ब्रांडिंग जोर-शोर से की जा रही है.
अब देखिए न, देश के लिए प्रधानमंत्री भी ब्रांडेड पेश किये जा रहे हैं- मोदी ब्रांड, राहुल ब्रांड, नीतीश ब्रांड वगैरह वगैरह. रेडियो-टीवी से लेकर अखबार तक, इनके विज्ञापन में जुटे हैं. अब कोई टोके कि ये विज्ञान नहीं खबरें हैं, तो उसकी समझ पर तरस ही आयेगा. यह समङिाए कि वह ‘पीआर’ की माया से वाकिफ नहीं है. ऐसा नहीं है कि ब्रांडिंग केवल बड़े-बड़े लोग कर रहे हैं. अब यह ‘ग्रासरूट’ तक पहुंच गयी है. अगर आप किसी दफ्तर में खासकर निजी क्षेत्र में, मामूली सी नौकरी पर भी हैं, तो बिना ब्रांडिंग किये कछुए की तरह रेंगेते रहेंगे और आपका कोई साथी या जूनियर खरगोश की तरह छलांग मार कर आपका बॉस बन बैठेगा. वह ऐसा करेगा ब्रांडिंग के बूते.
जी हां, आप कितने विद्वान हैं, आपकी कार्यक्षमता-दक्षता कितनी है, इससे कहीं ज्यादा यह मायने रखता है कि आप अपनी ब्रांडिंग कितनी मजबूती से करते हैं. अब आप ब्रांडिग के लिए बड़े-बड़े नेताओं या उद्योगपतियों की तरह पीआर एजेंसी तो हायर नहीं कर सकते, इसलिए अपने दोस्तों, चेलों आदि की एक टीम तैयार करें, जो हर जगह आपकी प्रतिभा का बखान करे. एक फारमूला यह हो सकता है कि आप एक समूह बनायें, जिसमें शामिल लोग एक -दूसरे की ब्रांडिंग करें. ऊपर मैंने नेताओं का उदाहरण दिया है, लेकिन ब्रांडिंग की असली ताकत देखनी हो, तो बाबाओं को देखिए जिन्होंने लाखों-करोड़ों भक्त बना लिये हैं और फर्श से अर्श पर पहुंच गये हैं. इनकी अलग-अलग खूबियां हैं, जिसे आजकल ब्रांडिंग या मार्केटिंग की भाषा में ‘यूएसपी’ कहा जाता है. किसी की यूएसपी फिल्मी स्टाइल में कथावाचन करना है, तो किसी की जवानी के नुस्खे बताना. और तो और कुछ ऐसे महारथी भी हैं, जो गोलगप्पे के जरिये आपके जीवन की सारी परेशानियां दूर करने का उपाय तक बता डालते हैं. यह सब अपनी जगह, पर इन बाबाओं का असली नुस्खा है अपने चमत्कार की ब्रांडिंग जो टीवी से लेकर चेलों तक के जरिये करायी जाती है.