वैश्विक आतंकवाद का रक्तबीज

न्यूयॉर्क, मुंबई, नैरोबी और पेशावर एक दूसरे से सैकड़ों मील दूर हैं. बाहर से अलग-अलग से दिखनेवाले ये शहर समानता के एक महीन धागे से जुड़े हुए हैं. किसी भी सामान्य शहर की तरह ये भी इनसानी जज्बातों, अंगड़ाई लेती ख्वाहिशों की पनाहगाह हैं. बेहद दुखद तरीके से ये शहर समानता के एक और रंग […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 23, 2013 2:14 AM

न्यूयॉर्क, मुंबई, नैरोबी और पेशावर एक दूसरे से सैकड़ों मील दूर हैं. बाहर से अलग-अलग से दिखनेवाले ये शहर समानता के एक महीन धागे से जुड़े हुए हैं. किसी भी सामान्य शहर की तरह ये भी इनसानी जज्बातों, अंगड़ाई लेती ख्वाहिशों की पनाहगाह हैं. बेहद दुखद तरीके से ये शहर समानता के एक और रंग से रंग गये हैं. आतंकवाद के जिस जख्म को न्यूयॉर्क ने 9/11 को सहा था, जिस आतंकवाद से 26/11 को मुंबई का सीना छलनी हो गया था, उसी आतंकवाद ने शनिवार को नैरोबी के एक गुलजार शॉपिंग मॉल को लहूलुहान कर दिया.

नैरोबी पर हुए आतंकी हमले में रविवार की शाम तक दो भारतीय समेत करीब 59 लोगों के मारे जाने की खबर थी. नैरोबी अभी सुर्खियों में ही था कि पाकिस्तान के पेशावर से खबर आयी कि वहां आत्मघाती हमलावरों ने एक चर्च पर हमला कर 60 बेगुनाहों को मौत के घाट उतार दिया है. नैरोबी और पेशावर की कराह में हम एक साझी पीड़ा को महसूस कर सकते हैं. 24 घंटे से भी कम अंतराल पर हुए ये दो आतंकी हमले पूरी दुनिया को आगाह कर रहे हैं. यह एक तथ्य है कि जिन वर्षो में व्यापार का ग्लोबलाइजेशन हो रहा था, उसी दौर में आतंकवाद भी सरहदों के पार अपने पांव पसार रहा था. आज आतंकवाद भी ग्लोबल है. यह हर जगह मौजूद है. रक्तबीज की भांति यह अपने आपको बहुगुणित कर रहा है. चूंकि, इसका कोई चेहरा नहीं है, इसलिए यह कहीं ज्यादा खतरनाक है. यह कितना डरावना है, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि जिस धरती ने उसे कभी पाला था, भस्मासुर की तरह यह उसे ही लीलता नजर आ रहा है.

वैश्विक आतंकवाद, वैश्विक कार्रवाई की मांग करता है. स्थानीय स्तर के प्रयासों से इसे कुछ हद तक नियंत्रण में तो रखा जा सकता है, पर उसका सफाया नहीं किया जा सकता. हालांकि, यहां यह समझना जरूरी है कि आतंकवाद के खिलाफ सामूहिक कार्रवाई अमेरिकी ‘वॉर ऑन टेरर’ के समान नहीं हो सकती. इसके लिए विश्व नेताओं को साथ मिल कर ऐसे ईमानदार रास्तों की ओर बढ़ने की जरूरत है, जिसका मकसद मानवता के लिए बेहतर भविष्य सुरक्षित करना हो, न कि आतंकवाद की आड़ में किसी की भू-राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति का औजार बनना.

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