मौन रहना भी सीखना चाहिए मंत्री जी

गुप्त सामरिक अभियान राष्ट्रीय सुरक्षा के लिहाज से बहुत संवेदनशील मसले होते हैं. ऐसी कार्रवाईयों मेंदूसरे राष्ट्रों की रणनीतिक भागीदारी से इनमें कूटनीतिक आयाम भी जुड़ जाते हैं. म्यांमार की सीमा में स्थित उग्रवादी शिविरों पर भारतीय सेना द्वारा 9 जून को किये गये हमले इसी श्रेणी में आते हैं. लेकिन कुछ केंद्रीय मंत्रियों ने […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | June 13, 2015 5:41 AM
गुप्त सामरिक अभियान राष्ट्रीय सुरक्षा के लिहाज से बहुत संवेदनशील मसले होते हैं. ऐसी कार्रवाईयों मेंदूसरे राष्ट्रों की रणनीतिक भागीदारी से इनमें कूटनीतिक आयाम भी जुड़ जाते हैं. म्यांमार की सीमा में स्थित उग्रवादी शिविरों पर भारतीय सेना द्वारा 9 जून को किये गये हमले इसी श्रेणी में आते हैं.
लेकिन कुछ केंद्रीय मंत्रियों ने इस प्रकरण में अपरिपक्व बयान देकर न सिर्फ अभियान की उपलब्धियों को कमतर करने की कोशिश की है, बल्कि देश के कूटनीतिक हितों को भी दीर्घकालीन नुकसान पहुंचाया है. केंद्रीय राज्यमंत्री राज्यवर्धन सिंह राठौर ने कहा कि ‘56 इंच’ सीना रखनेवाले प्रधानमंत्री के आदेश पर सेना ने म्यांमार सीमा में घुस कर शिविरों पर हमला किया.
इसी तरह एक अन्य मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने कहा कि हम आगे भी अपनी सीमाओं से बाहर ऐसे अभियान कर सकते हैं. वरिष्ठ मंत्री रविशंकर प्रसाद ने इस कार्रवाई को ‘मोदी सरकार का संदेश’ बताया. इतना ही नहीं, रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने एक पड़ोसी देश की ओर संकेत करते हुए यहां तक कह दिया कि इस हमले ने उसे भयभीत कर दिया है. हालांकि सरकार ने राठौर के बयान से दूरी बनायी है और नाराजगी भी जतायी है.
पूर्व सैन्य अधिकारियों और रक्षा विशेषज्ञों की नजर में ‘सीना ठोंकने’ की यह प्रवृत्ति भावी योजनाओं के लिए नकारात्मक हो सकती है. सरकार के इस रवैये का ही नतीजा है कि म्यांमार को यह कहना पड़ा कि भारतीय सेना का ऐसा कोई अभियान उसकी सीमा के अंदर नहीं हुआ है. मंत्रियों को चुप रहना भी सीखना चाहिए. इन मंत्रियों को यह तो ख्याल रखना ही चाहिए कि यह कार्रवाई म्यांमार के साथ कई वर्षो से चल रहे सकारात्मक कूटनीतिक संबंधों के कारण ही संभव हो सकी है.
भारतीय सेना ने 1990 के दशक के शुरू से ही म्यांमार, भूटान और बांग्लादेश की सीमाओं पर कई अभियान चला कर उग्रवादी गिरोहों को भारी नुकसान पहुंचाया है. तब से कई सरकारें सत्ता में रह चुकी हैं, पर उन अभियानों के विवरण ऐसी अपरिपक्वता और बड़बोलेपन के साथ कभी सार्वजनिक नहीं किये गये. अगर सरकार ने सीना ठोंकने के इस रवैये पर नियंत्रण नहीं किया, तो भविष्य में देश को छाती पीटने पर भी मजबूर होना पड़ सकता है.

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