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युवा, योग और भगत सिंह का कॉकटेल

पुण्य प्रसून वाजपेयी वरिष्ठ पत्रकार पहली बार संघ ही नहीं, केंद्र सरकार भी इस सच को समझ रही है कि अगर देशभर के युवा, योग और भगत सिंह के नाम पर जुड़ते चले गये, तो फिर किसी भी कार्यक्रम को देशभर में लागू कराने में कोई परेशानी नहीं ही होगी. पटेल, गांधी, आंबेडकर के बाद […]

पुण्य प्रसून वाजपेयी
वरिष्ठ पत्रकार
पहली बार संघ ही नहीं, केंद्र सरकार भी इस सच को समझ रही है कि अगर देशभर के युवा, योग और भगत सिंह के नाम पर जुड़ते चले गये, तो फिर किसी भी कार्यक्रम को देशभर में लागू कराने में कोई परेशानी नहीं ही होगी.
पटेल, गांधी, आंबेडकर के बाद अब मोदी सरकार भगत सिंह के नाम को भुनाने की तैयारी कर रही है. भगत सिंह एक ऐसा नाम है, जिसके आसरे युवाओं को लेकर सरकारी कार्यक्रम सफल बनाये जा सकते हैं और हर तबके, जाति, संप्रदाय में बिखरे युवाओं को एक छतरी तले लाकर हर कार्यक्रम को सफल बनाया जा सकता है.
और इसकी शुरुआत योग दिवस से ही होगी. यानी 21 जून को जब दुनिया योग दिवस मनायेगी और भारत अपनी सांस्कृतिक पहचान के जरिये दुनिया को योग का महत्व समझायेगा, तो अगला सवाल भारत में ही युवाओ को भी योग के जरिये सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के धागे में पिरोने की पहल शुरू होगी.
जिसकी अगुवाई नेहरू युवा केंद्र करेगा. लेकिन नेहरू शब्द कांग्रेस की राजनीतिक विरासत का प्रतीक है, तो नेहरू युवा केंद्र का नाम भी बदल कर राष्ट्रीय युवा संगठन की तर्ज पर रखा जायेगा. चूंकि वैचारिक पृष्ठभूमि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की रहेगी, तो उसी अनुकूल युवा स्वंयसेवकों से लेकर नेशनल कैडेट कोर और स्काउट गाइड तक के छात्र-छात्राओं को एक साथ लाया जायेगा. इसके लिए कितनी बड़ी योजना बनायी जा रही है, इसके संकेत नेहरू युवा केंद्र के तीनों वाइस चेयरमैन के बदले जाने से लेकर पहले साल चलनेवाले कार्यक्रमों से भी समझा जा सकता है.
युवाओं के लिए पहले बरस सरकार ने नारा दिया है, ‘एक साल देश के नाम’. इसी के मातहत शुरुआत 350 ट्रेनी और तीस हजार युवा स्वयंसेवकों की नियुक्ति के जरिये होगी. पहले साठ दिन देश के सीमावर्ती इलाकों में ट्रेनिंग और उसके बाद के दस महीनों में देशभर के युवाओं को जोड़ने के लिए तमाम युवा संगठनों के बीच योग के जरिये पैठ बनाने की पहल शुरू होगी. जाहिर है यह अपने तरह का पहला प्रयोग होगा, जो सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की विचारधारा के साथ-साथ राजनीतिक तौर पर भी बीजेपी के साथ युवाओं को जोड़ेगा.
दरअसल, युवाओं को सिर्फ वोट बैंक के नजरिये से ना देखा जाये, बल्कि सामाजिक-सांस्कृतिक तौर पर भी राष्ट्रीय भावना से जोड़ा जाये, इसके लिए भी बदलता नेहरू युवक केंद्र काम करेगा. इसी के मद्देनजर इसमें वैचारिक तौर पर संघ के करीबी तीन वाइस चेयरमैन को नियुक्त किया गया है. संघ के करीबी विनय सहस्त्रबुद्धे तमाम युवा कार्यक्रम को देखेंगे, तो सूर्या फाउंडेशन इसमें हर तरीके से मदद करेगा. खास बात यह भी है कि मोदी सरकार नेहरू युवा केंद्र के उस नजरिये को ही पूरी तरह बदल रही है, जो सोच इस केंद्र को बनाते वक्त रखी गयी थी.
इसीलिए नेहरू युवा केंद्र के सामने नये कार्यक्रमों में स्वच्छ भारत अभियान भी है और जन-धन योजना भी. सांसद आदर्श ग्राम योजना भी है और संघ की सोच को दर्शानेवाला पुनर्जागरण कार्यक्रम भी. यानी प्रधानमंत्री मोदी की योजनाएं और संघ की विचारधारा का समावेश कर कैसे नेहरू युवा केंद्र को काम पर लगाया जा सकता है. यही काम अपने-अपने तरीके से संघ के करीबी विष्णु दत्त शर्मा, शेखर राव पेरेला और दिलीप सैकिया वाइस चेयरमैन के पद पर बैठ कर फिलहाल देख रहे हैं.
मोदी सरकार इस हकीकत को भी समझ रही है कि नेहरू युवा केंद्र का अपना जो विस्तार है, उसके मातहत कोई भी काम करने से देश भर में जिस तेजी से लाभ मिल सकता है, वैसे किसी दूसरे संगठन के जरिये संभव नहीं है. क्योंकि इसके तहत काम करनेवाले हर शख्स को स्टाइपेंड के तौर पर कुछ ना कुछ रकम मिलती ही है.
फिर 20 से 29 बरस की उम्र के बीच के जिन तीस हजार युवाओं को इससे जोड़ने की शुरुआत हो रही है, उन्हे भी स्टाइपेंड के तौर पर 25 से 30 हजार के बीच कोई रकम दी ही जायेगी. एक लिहाज से युवाओं के लिए यह शुरुआती नौकरी भी होगी और बड़ी तादाद में संघ के स्वयंसेवक भी इस काम में खप जायेंगे. खास बात यह भी है कि बाबा रामदेव को 21 जून के किसी योग कार्यक्रम के किसी कमेटी तक में नहीं रखा गया है.
और इसकी सबसे बड़ी वजह संघ के सामने का वह संकट है, जिसमें उसे लगने लगा है कि योग और युवाओं के जरिये अगर बाबा रामदेव का विस्तार होता चला गया, तो संघ के स्वयंसेवक भी एक वक्त के बाद बाबा रामदेव के साथ चले जायेंगे. क्योंकि स्वाभिमान ट्रस्ट के साथ जुड़े युवाओं को रोजगार मिलता है, जबकि संघ के स्वयंसेवक के तौर पर सेवा करने के एवज में कोई सहूलियत संघ अभी भी नहीं दे पाता है. यही वजह है कि उत्तराखंड के कई युवा स्वयंसेवक बाबा रामदेव के साथ जुड़ गये.
दरअसल, मोदी सरकार यह भी समझ रही है कि अगर देशभर के युवा एक छतरी तले आ जायें, तो फिर विकास की जिस अवधारणा को लेकर वह देश में नयी लकीर खींचना चाह रही है, उसे खींचने में भी आसानी होगी. क्योंकि नेहरू युवा केंद्र की पकड़ मौजूदा वक्त में देश के बड़े हिस्से में है. करीब तीन लाख महिला मंडल अगर नेहरू युवाकेंद्र के मातहत चल रहा है, तो बारह हजार से ज्यादा युवा वालंटियर भी जुड़े हुए हैं.
यानी जो काम कभी कांग्रेस ने युवा कांग्रेस के विस्तार के लिए किया, उसी रास्ते को बीजेपी संघ की विचारधारा के विस्तार से जोड़ेगी. इसीलिए नेहरू युवा केंद्र की जोनल से लेकर जिला स्तर तक की कमेटियों को पुनर्गठित किया जा रहा है. उसके बाद विवेकानंद के साथ दीनदयाल उपाध्याय के बारे में भी देश भर के छात्र-छात्रएं जानें, इस दिशा में भी काम होगा. लेकिन इसके लिए हर उस कार्यक्रम को युवाओं को साथ जोड़ना होगा, जो कार्यक्रम अभी तक कई दूसरे संगठन चला रहे हैं.
असर इसी का है कि 21 जून के अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के लिए 35 पेज की जो पुस्तिका निकाली जा रही है, उसमें योग और भारतीय संस्कृति के उन्हीं बिंदुओं का जिक्र किया गया है, जिनका जिक्र बाबा रामदेव पतंजलि के तहत करते रहे हैं. इसीलिए 21 जून को बाबा रामदेव ने दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में जब अपने योग कार्यक्रम के लिए जगह मांगी, तो उन्हें यह कह कर जगह नहीं दी गयी कि सुरक्षा का संकट पैदा हो जायेगा. फिर इसी के समानांतर बाबा रामदेव के दूसरे शिष्य सत्यवान को महत्व देना शुरू कर दिया.
अब आलम यह है कि खुद प्रधानमंत्री मोदी ने रामदेव के शिष्य सत्यवान से पीएमओ में मुलाकात की और अब संघ समर्थित सुदर्शन चैनल पर भी सत्यवान के योग कार्यक्रम वैसे ही शुरू हो गये हैं, जैसे कभी बाबा रामदेव के शुरू हुए थे. यानी पहली बार संघ ही नहीं, सरकार भी इस सच को समझ रही है कि अगर देशभर के युवा, योग और भगत सिंह के नाम पर जुड़ते चले गये, तो फिर किसी भी कार्यक्रम को देशभर में लागू कराने में कोई परेशानी तो नहीं ही होगी, उल्टे राजनीतिक तौर पर भी वैचारिक जमीन खुद-ब-खुद तैयार होती चली जायेगी.

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