आधुनिक भारत के अहम रोल मॉडल
।। अभिषेक दुबे ।। (वरिष्ठ खेल पत्रकार) खेल हमेशा खिलाड़ी से बड़ा होता है, लेकिन सचिन, पेस और आनंद जैसे खिलाड़ी जब सामने आते हैं, तो यह सवाल उठता है कि कहीं खिलाड़ी ही खेल से बड़ा तो नहीं हो गया. ये आधुनिक भारत के ‘रोल मॉडल’ हैं. सन् 1972 के म्यूनिख ओलिंपिक को इतिहास […]
।। अभिषेक दुबे ।।
(वरिष्ठ खेल पत्रकार)
खेल हमेशा खिलाड़ी से बड़ा होता है, लेकिन सचिन, पेस और आनंद जैसे खिलाड़ी जब सामने आते हैं, तो यह सवाल उठता है कि कहीं खिलाड़ी ही खेल से बड़ा तो नहीं हो गया. ये आधुनिक भारत के ‘रोल मॉडल’ हैं.
सन् 1972 के म्यूनिख ओलिंपिक को इतिहास भुला नहीं सकता. यह भारत के लिए खास रहा. मौजूदा दौर के महानतम भारतीय टेनिस खिलाड़ी लिएंडर पेस की मानें तो, जब चार दिन के लिए खेल रुका रहा, हॉकी खिलाड़ी वेस पेस से मिल कर बास्केटबॉल टीम की प्वाइंट गार्ड जेनिफर पेस ने लिएंडर पेस को गर्भधारण किया. पेस बचपन से ही ओलिंपिक विलेज और गेम्स के किस्से सुनते थे.
बाद में वे लगातार छह ओलिंपिक में भाग लेनेवाले एशिया के पहले खिलाड़ी बने, जिसमें अटलांटा ओलिंपिक में ब्रॉन्ज मेंडल शामिल है. पेस बिना थके बिना रुके रियो ओलिंपिक पर नजरें लगाये हुए हैं.. 1983 में कपिलदेव के दिलेर जब लॉर्डस में क्रिकेट के चैंपियन बने थे, तभी मुंबई के एक विरले बालक ने टीम इंडिया में आने का सपना देखा था. 23 साल तक क्रिकेट पिच पर इतिहास को नये सिरे से लिखने के बाद अब भी क्रिकेट के महानतम सपूत सचिन तेंडुलकर नाबाद हैं. सचिन ने अब तक स्टेडियम को अलविदा कहने की मंशा जाहिर नहीं की है..
दक्षिण रेलवे में अधिकारी विश्वनाथन अय्यर और सोशियलाइट सुशीला एक साल के लिए फिलीपींस गये. तब छह साल का एक होनहार बालक टीवी पर चेस का एक प्रोग्राम देखता और चेस पहेली प्रतियोगिता में भाग लेता. इसमें विश्वनाथन आनंद को इतने इनाम मिले कि आयोजकों को कहना पड़ा, जितने चाहे इनाम ले जाओ, लेकिन अब इस प्रोग्राम के लिए एंट्री मत भेजो.
पता नहीं टेलीविजन के उस प्रोग्राम का क्या हुआ, लेकिन विश्वनाथन आनंद की जीत का सिलसिला जारी है. आधुनिक दौर में इन तीन महानतम भारतीय सपूतों का अपने हुनर को लेकर 25-30 साल पहले जो जुनून था, वह आज भी बरकरार है.
लिएंडर पेस को खेल विरासत में मिला, लेकिन विरासत की लकीर को वे इतना लंबा कर जाएंगे, किसी ने नहीं सोचा था. सचिन टेनिस खिलाड़ी जॉन मकनरो जैसा बनने का सपना देखते–देखते क्रिकेटर बन बैठे. विश्वनाथन आनंद की मां ने बचपन में भले ही बेटे को चेस का हुनर सिखाया हो, लेकिन वे इस खेल में रूस की बादशाहत को खत्म कर देंगे, यह सोचना भी गुस्ताखी थी.
तीनों की कामयाबी की एक ही कुंजी है. इन तीनों को आज भी अभ्यास करते या अपने खेल के बारे में बात करते देखें, तो 30-35 साल पहले के वे बालक याद आ जाते हैं.
बीजिंग ओलिंपिक में अमेरिका ने 110 मेडल जीते, लेकिन दारा टॉरेस की उपलब्धि आज भी हर किसी को याद है.
टॉरेस के तीन सिल्वर सिर्फ मेडल नहीं थे, बल्कि 41 साल की एक ऐसी महिला की उपलब्धि की कहानी थी, जो मां बनने के बाद आठ साल मैदान से बाहर रही और फिर तय मान्यताओं को चुनौती दी. सपने सच होते हैं, लेकिन तभी जब टॉरेस जैसा जुनून हो. उनकी बहुचर्चित किताब ‘एज इज जस्ट ए नंबर’ एक ऐसी महिला की कहानी है, जिसने मां बन कर बच्चे को पालने की जिम्मेवारी, मौत और जिंदगी से जूझ रहे पिता की देखभाल करने की जिम्मेवारी के बीच अपनी ललक की रोशनी को बुझने नहीं दिया.
अपनी जिम्मेवारियों को पूरा करने के बाद जब वे ट्रेनिंग के लिए गयीं, तो लोग सवाल करते. जब ओलिंपिक की तैयारी से लेकर गेम्स विलेज की युवा टोली के बीच वे जाती, तो दिल सवाल करता.
सवाल और संदेह के घेरे के बीच उनका भरोसा डिगा नहीं और वे 50 मीटर फ्री स्टाइल में गोल्ड जीतने से सिर्फ .1 सेकेंड से रह गयीं. अगर टॉरेस की किताब को देखें, तो हर पन्ने में सचिन, पेस और आनंद की तसवीर नजर आती है. आज के युवा खिलाड़ी भी इन तसवीरों में समाहित जज्बे को अपने कैरियर में उतार सकें, तो वे इन विरलों की तरह बड़ी लकीर खींच सकते हैं.
टॉरेस की तरह तमाम हुनर होने के बावजूद ऐसा नहीं है कि वक्त ने सचिन, पेस और आनंद जैसे विरलों की परीक्षा नहीं ली. इनकी नाबाद पारियों के बीच ऐसे वक्त आये, जब इनसे वापस पवेलियन लौटने को कहा गया. अगर दूसरों की बात सचिन मान लेते, तो 2007 वर्ल्ड कप के बाद ही रिटायर हो जाते.
अगर पेस अपने दिल और जज्बात की न सुने होते, तो 2012 ओलिंपिक तक भी नहीं पहुंच पाते. ऐसा नहीं है कि अपनी कर्मभूमि से संबंधित इनके हर फैसलों को सराहा गया. सचिन ने जब कप्तानी से तौबा किया, तो हर किसी ने मान लिया कि वे असफल लीडर हैं. भूपति के साथ पेस की जोड़ी टूटी तो हर किसी ने कहा कि इंडियन एक्सप्रेस के साथ पेस का भी सफर खत्म हो जायेगा.
लेकिन सचिन लीडर से स्टेट्समैन बन गये, पेस सबसे अधिक उम्र में ग्रैंड स्लैम जीतनेवाले पुरुष खिलाड़ी बने. चुनौतियां उनकी निजी जिंदगी में भी आयीं. सचिन जब वर्ल्ड कप खेलने गये, तो उनके सबसे बड़े प्रेरणास्नेत रहे उनके पिता दुनिया से चल बसे. पेस और महिमा चौधरी का संबंध टूटा और पेस–रिया पिल्लै के साथ भी रिश्तों में खिंचाव आया, लेकिन उन्होंने खेल से अपने संबंधों पर आंच नहीं आने दी.
खेल हमेशा खिलाड़ी से बड़ा होता है, लेकिन सचिन, पेस और आनंद जैसे खिलाड़ी जब सामने आते हैं, तो यह सवाल उठता है कि कहीं खिलाड़ी ही खेल से बड़ा तो नहीं हो गया. ये आधुनिक भारत के ‘रोल मॉडल’ हैं, जिनकी धमक अब खेल मैदान में ही नहीं, बल्कि दूसरी विधाओं में भी है.
भारतीय टीम जब विश्व चैंपियन बनी, तो विराट कोहली ने सचिन को कंधे पर उठा लिया. जब मैंने भरे पत्रकार सम्मेलन में उनसे सवाल किया, तो कोहली ने कहा कि जिसने 22 साल तक देश की उम्मीदों का भार उठाया, उसके भार को हम 22 मिनट के लिए क्यों नहीं उठा सकते. हाल में कोहली ने कहा की सचिन जैसे खिलाड़ी अलग हैं, उन्होंने देश को इतनी खुशियां दी है, क्या हम इतना नहीं कर सकते की उन्हें संन्यास का फैसला खुद लेने दें.
पेस के नाम टेनिस के सभी बड़े खिताब हैं, लेकिन वे अटलांटा ओलिंपिक में मिले मेडल को तवज्जो देते हैं. पेस की निगाहें रियो ओलिंपिक पर हैं और वे अटलांटा को दोहराना चाहते हैं. सुशील कुमार बीजिंग ओलिंपिक में मेडल लेकर लौटे थे, तभी मंैने उन्हें फोन किया. सुशील ने फोन का जवाब नहीं दिया, लेकिन शाम में कहा कि वे अगले ओलिंपिक के लिए प्रैक्टिस कर रहे थे. सुशील ने लंदन ओलिंपिक में भी मेडल जीता और अब रियो के लिए तैयारी कर रहे हैं.
सचिन, आनंद, पेस और सुशील की हसरतों का अंजाम चाहे जो हो, लेकिन ये अमित कुमार, विराट कोहली, दीपिका कुमारी जैसे युवा खिलाड़ियों के लिए मिसाल हैं. आधुनिक दौर में मीडिया की चकाचौंध के बीच अगर युवा खिलाड़ी इन दिग्गजों की तरह लंबी पारी खेलना चाहते हैं, तो इनसे लगन और अनुशासन के गुर को सीखना होगा.