मूल निवासी बनाम स्थानीयता की नीति

‘स्थानीयता’ शब्द ने झारखंड में जबरदस्त बहस छेड़ रखी है. मन से सोचा जाये, तो इसे झारखंडियों को दिग्भ्रमित करने का हथियार बना दिया गया है. वास्तव में इसका उपयोग झारखंडियों को उनके अधिकारों से वंचित करते हुए उपनिवेशकों को मदद पहुंचाने के लिए किया जा रहा है. झारखंड आंदोलन की पृष्ठभूमि जगजाहिर है. अपने […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | June 16, 2015 5:17 AM
‘स्थानीयता’ शब्द ने झारखंड में जबरदस्त बहस छेड़ रखी है. मन से सोचा जाये, तो इसे झारखंडियों को दिग्भ्रमित करने का हथियार बना दिया गया है. वास्तव में इसका उपयोग झारखंडियों को उनके अधिकारों से वंचित करते हुए उपनिवेशकों को मदद पहुंचाने के लिए किया जा रहा है.
झारखंड आंदोलन की पृष्ठभूमि जगजाहिर है. अपने राज्य में ही एक क्षेत्र विशेष के लोगों द्वारा उपेक्षित किये जाने एवं अधिकारों से वंचित रखने के खिलाफ झारखंडियों का क्रोध एवं असहिष्णुता झारखंड आंदोलन का मुख्य कारण रहा है. झारखंड अलग राज्य का निर्माण भी यहां के मूल निवासियों को उनका अधिकार दिलाने के लिए ही कराया गया. अत: झारखंड में सबसे पहले मूल निवासी की परिभाषा को परिभाषित करने की जरूरत है. इसमें यहां के खेतिहर व रैयतदार शामिल किये जा सकते हैं.
मंजू संडील, जमशेदपुर

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