बिहार सरकार के मुखिया नीतीश कुमार ने पंचायतों की सशक्तीकरण की खातिर जो एक मुश्त पैकेज का एलान किया है. वह स्वागत योग्य है. मुख्यमंत्री के अनुसार पंचायती राज प्रतिनिधियों के प्रशिक्षण के लिए पंचायत प्रशिक्षण केंद्र बनाने से लेकर पंचायत भवन बनाने का काम उनकी सरकार की प्राथमिकता में है. उनके मुताबिक जल्द ही एक हजार से अधिक पंचायत सचिवों की नियुक्ति की प्रक्रिया शुरू होगी और सरपंचों को न्याय पगड़ी पहनायी जायेगी.
बिहार की प्रगति के लिए पंचायतों का सशक्त होना निहायत ही जरूरी है. पंचायती राज व्यवस्था के बावजूद विकास नहीं होने का सबसे बड़ा कारण पंचायती राज का कमजोर होना है. एक समय था, जब संयुक्त बिहार में ग्रामीण विकास के प्रशिक्षण का सबसे उम्दा केंद्र था. राज्य बंटवारे के बाद यह झारखंड में चला गया. संयुक्त बिहार में ही पंचायती राज प्रशिक्षण के चार बड़े केंद्र थे. ये सभी केंद्र भी झारखंड के हिस्से में चले गये. अभी बिहार में पंचायती राज का प्रशिक्षण देने वाला कोई केंद्र नहीं है. ऐसे में पंचायती राज प्रतिनिधियों के प्रशिक्षण के लिए कोई स्थायी व्यवस्था नहीं है. ठेके पर प्रशिक्षण का काम होता आया है. प्रशिक्षण के अभाव में 12 साल बाद भी पंचायती राज प्रतिनिधियों का अपने काम की समझ नहीं है.
मुखिया हो या जिला पर्षद सदस्य उन्हें न तो बजट बनाना आता है और न ही यह मालूम है कि राजस्व बढ़ाने के क्या उपाय किये जा सकते हैं. इसी तरह बिहार के पंचायतों में पंचायत सचिवों की कमी है. सरकार खुद स्वीकार करती है कि करीब चौदह पंचायत सचिवों का पद खाली पड़ा है. पंचायत सचिव नहीं होने से पंचायतों का काम नहीं हो पाता है. और सबसे बड़ी बात यह है कि चार हजार से अधिक पंचायतों के पास अपना भवन ही नहीं है.
फिर पंचायत सचिव हो या मुखिया जी, वे बैठेंगे कहां. इस सवाल को सुलझाना ज्यादा जरूरी है. बिहार सरकार दो साल पहले ही पंचायत भवन का नक्शा तैयार कर चुकी है. लेकिन अभी तक काम नहीं शुरू हुआ है. अब मुख्यमंत्री के एलान के बाद पंचायती राज प्रतिनिधियों में फिर से उम्मीद जगी है. जल्द ही पंचायत भवन से लेकर पंचायत सचिवों की नियुक्ति का काम पूरा होगा, तो राज्य के विकास में पंचायती राज प्रतिनिधि की भी महती भूमिका होगी.