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राहुल के बयानों से आगे की चुनौतियां

कांग्रेस पार्टी आज अपने इतिहास के जिस नाजुक दौर से गुजर रही है, उसके प्रमुख नेताओं से यह उम्मीद तो की ही जानी चाहिए कि उनके बयानों के शब्द नपे-तुले और जनता के मन में नया भरोसा जगानेवाले होंगे. लेकिन, दो दिनी छत्तीसगढ़ यात्र के दौरान आये कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के बयानों को इस […]

कांग्रेस पार्टी आज अपने इतिहास के जिस नाजुक दौर से गुजर रही है, उसके प्रमुख नेताओं से यह उम्मीद तो की ही जानी चाहिए कि उनके बयानों के शब्द नपे-तुले और जनता के मन में नया भरोसा जगानेवाले होंगे.
लेकिन, दो दिनी छत्तीसगढ़ यात्र के दौरान आये कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के बयानों को इस कसौटी पर परखें तो बहुत उम्मीद नहीं बंधती. कोरबा में आदिवासियों से राहुल ने कहा कि ‘प्रधानमंत्री सिर्फ कॉरपोरेट घरानों का विकास चाहते हैं. आदिवासियों की फिक्र उन्हें नहीं है. अगर खदानें यहां आएंगी तो आदिवासी अपने जंगल खो देंगे. फिर उनके बच्चों का क्या होगा?’ लेकिन, यह सवाल उठाते वक्त राहुल ने कोई ब्योरा देना जरूरी नहीं समझा कि इस संबंध में एनडीए और यूपीए सरकार की नीतियों में क्या फर्क है!
आजादी के बाद से देश की सत्ता पर सर्वाधिक समय तक काबिज रही कांग्रेस किसी समुदाय या क्षेत्र विशेष की बदहाली का पूरा ठीकरा एक साल पुरानी नयी सरकार पर नहीं थोप सकती. प्रमुख विपक्षी दल होने के नाते कांग्रेस और उसके नेताओं को अधिकार है कि सरकार के गलत कदमों का विरोध करें, किसी वर्ग, समुदाय या क्षेत्र विशेष की बेहतरी के लिए मांग करें, पर उनके विरोध या मांग में ताकत तभी आयेगी, जब साथ में वे यह भी बताने का प्रयास करें कि उनकी सरकारों ने इस दिशा में क्या कदम उठाये थे और उनके क्या नतीजे आये थे.
राहुल ने ललित मोदी प्रकरण में सुषमा स्वराज को बर्खास्त करने की मांग की, लेकिन ऐसा करते वक्त वे भूल गये कि अतीत में कई कांग्रेसी नेताओं पर भी गंभीर वित्तीय अनियमितताओं के आरोपियों की मदद के आरोप लगे हैं.
ऐसे में बहस छिड़ेगी तो आरोपों के कुछ छींटे उसकी ओर भी लौटेंगे. हर विषय पर त्वरित प्रतिक्रिया देनेवाले नेताओं की जनता के मन में कितनी विश्वसनीयता है, यह किसी से छिपी नहीं है. राहुल ऐसे बयानों से सुर्खियां तो बटोर सकते हैं, पर उनके तार जनता के दिलों से तभी जुड़ेंगे जब वे अतीत और वर्तमान के तथ्यों की कसौटी पर तोल कर कोई बयान देंगे.
यह इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि राहुल यदि कांग्रेस को पुनर्जीवन की ओर ले जाना चाहते हैं, तो उन्हें सबसे पहले अपने लिए एक दूरदर्शी राजनेता की नयी छवि जनता के मन में बनानी है. यही आज राहुल की असली चुनौती भी है.

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