भारतीय बैंकों की बढ़ी मुश्किलें
डॉ अश्विनी महाजन अर्थशास्त्री, दिल्ली विवि यदि महंगाई पर अंकुश लगता है, तो ब्याज दरें घट सकती हैं, जिससे इएमआइ का दबाव घट सकता है और ऋणों की अदायगी हो सकती है. मैन्युफैरिंग में उठाव छोटे-बड़े उद्योगों की आर्थिक हालत सुधार सकता है, जिससे उनके ऋणों की अदायगी संभव है. रिजर्व बैंक की हालिया रिपोर्ट […]
डॉ अश्विनी महाजन
अर्थशास्त्री, दिल्ली विवि
यदि महंगाई पर अंकुश लगता है, तो ब्याज दरें घट सकती हैं, जिससे इएमआइ का दबाव घट सकता है और ऋणों की अदायगी हो सकती है. मैन्युफैरिंग में उठाव छोटे-बड़े उद्योगों की आर्थिक हालत सुधार सकता है, जिससे उनके ऋणों की अदायगी संभव है.
रिजर्व बैंक की हालिया रिपोर्ट में यह कहा गया है कि भारतीय बैंकों के नॉन परफॉरमिंग एस्सेट (एनपीए) मार्च में समाप्त होनेवाली तिमाही में 4.45 प्रतिशत तक पहुंच गये हैं. एनपीए बैंकों की वो परिसंपत्तियां (उधार) होती हैं, जिनकी अदायगी में संकट हो.
आमतौर पर जिन ऋणों की अदायगी में समस्या आ रही हो, सामान्यतौर पर बैंक उन ऋणों को पुनर्गठित कर उसकी अदायगी को आगे बढ़ा देते हैं. बैंकिंग के आंकड़े बताते हैं कि ऐसे ऋण भी कुल ऋणों के 5.9 प्रतिशत तक पहुंच चुके हैं. यानी ऐसे ऋण जिनकी अदायगी में अनिश्चितता है, कुल ऋणों के लगभग 10 प्रतिशत से ज्यादा हो गये हैं.
इस संकट का कोई एक कारण बताना परिस्थिति का सही आकलन नहीं होगा. गौरतलब है कि जब दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं, खासतौर पर अमेरिकी और यूरोपीय बैंकों के अस्तित्व पर खतरा आ गया था और कई बैंक दिवालिया हो गये थे, भारतीय बैंक समुद्र में चट्टान की भांति अडिग रहे.
उस समय कहा गया कि भारतीय बैंकों की विनियामन दुनिया में बेहतरीन में से एक है. इस समय यूरोप के देशों में बैंकों पर भारी संकट आया हुआ है और उनके एनपीए खासे ऊंचे बने हुए हैं. मसलन, साइप्रस में एनपीए 38 प्रतिशत, तो ग्रीस में 32 है.
रिजर्व बैंक के गवर्नर, भारत सरकार के वित्त मंत्री समेत सभी बैंकों के इस संकट के चलते चिंतित हैं. 23 मई, 2015 को वित्त मंत्री ने अपने साक्षात्कार में भी इस चिंता को स्पष्ट किया था. एक एजेंसी की रपट के अनुसार, एनपीए की ग्रोथ अप्रैल से दिसंबर, 2014 के दौरान 20 प्रतिशत रही.
एक अन्य एजेंसी ‘इंडिया रेटिंग’ का कहना है कि आज की स्थिति पिछले 14 वर्षो से ज्यादा खराब है. सरकारी बैंकों में स्थिति और ज्यादा खराब है. माना जा रहा है कि एनपीए हुए ऋण और अदायगी बढ़ाये गये ऋणों को मिलाया जाये, तो उनकी मात्र कुल ऋणों का 13.2 प्रतिशत है, यानी 7.12 लाख करोड़ रुपये है. सरकारी बैंकों के एनपीए ऋणों का अनुपात 5.17 प्रतिशत है.
मार्च में समाप्त होनेवाले वित्तीय वर्ष में भारत के हर 5 में से 3 बड़े बैंकों ने खराब ऋणों के बढ़ते संकट की ओर इशारा किया था, जबकि दिसंबर,2014 तक अदायगी के संकट वाले ऋणों का प्रतिशत 10.4 था, जो मार्च 2016 तक 13 प्रतिशत तक पहुंच सकता है. हालांकि, पिछले साल ऋणों में 10 प्रतिशत की वृद्धि भी हुई है, फिर भी खराब ऋणों का प्रतिशत पहले से बढ़ा है.पिछली सरकार के आर्थिक कुप्रबंधन, घोटालों के चलते भी कॉरपोरेट ऋणों की अदायगी में कोताही हुई.
अर्थव्यवस्था के धीमेपन के चलते कॉरपोरेट क्षेत्र द्वारा लिये गये ऋणों की अदायगी को बड़ी मात्र में आगे बढ़ाया गया. पिछले साल बैंक अधिकारियों के संगठन द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार, बैंकों के 406 बड़े कॉरपोरेट ऋणों में 90,000 करोड़ रुपये के इच्छापूर्वक दोषी थे. मात्र 406 कॉरपोरेट ऋणों में 70,000 करोड़ की राशि पर संकट सीधे-सीधे कुप्रबंधन की ओर इशारा करता है. घोटालों की बदौलत रिएल इस्टेट में भारी मात्र में पैसा निवेश किया गया.
रिएल इस्टेट के दामों में बेतहाशा वृद्धि हुई और मात्र दो वर्षो में जायदाद की कीमतें 3 से 5 गुना तक बढ़ गयीं. बाद में जब बाजार में रिएल इस्टेट के दाम गिरे, तो किश्तों में अदायगी पर दबाव बढ़ा, क्योंकि बाजार में मंदी के चलते पैसे का प्रवाह रुक गया. उधर महंगाई के चलते रिजर्व बैंक ने 21 बार से ज्यादा ब्याज दरें बढ़ायीं और ऊंची ब्याज दरों के चलते इएमआइ भी बढ़ गयी और अदायगी में कोताही शुरू हो गयी. इस तरह एक तरफ बैंकों के एनपीए बढ़ने लगे, तो दूसरी ओर बैंकों को मजबूरन ऋणों की अदायगी को आगे बढ़ाना पड़ा.
भारत में बैंकों पर यह संकट पहली बार नहीं आया. 2001 में बैंकों के एनपीए इससे भी ज्यादा बढ़ गये थे, लेकिन अटल बिहारी वाजपेयी के समय अर्थव्यवस्था में उठाव आने के बाद एनपीए की समस्या दूर हो गयी.
वर्तमान सरकार की कोशिशों में जिन विषयों पर खास ध्यान दिया जा रहा है, उनमें महंगाई पर अंकुश, मैन्युफैरिंग पर ध्यान और सरकारी कामकाज में पारदर्शिता और इस कारण घोटालों पर अंकुश, ये सभी अर्थव्यवस्था में आत्मविश्वास के साथ मजबूती भी ला सकते हैं.
यदि महंगाई पर अंकुश लगता है, तो ब्याज दरें घट सकती हैं, जिसके कारण इएमआइ का दबाव घट सकता है और ऋणों की अदायगी हो सकती है. मैन्युफैरिंग में उठाव छोटे-बड़े उद्योगों की आर्थिक हालत सुधार सकता है, जिससे उनके ऋणों की अदायगी संभव है. पिछले एक साल में किसी घोटाले की खबर नहीं आयी है यानी सरकारी कामकाज में पारदर्शिता है.
इससे कारोबारियों में भय है कि किसी गलती पर उन्हें बख्शा नहीं जायेगा. ऐसे में बड़े कारोबारियों के उधारों की अदायगी में सुधार संभव है. इसलिए सरकार द्वारा बैंकों के एनपीए के बारे में चिंता करने के बजाय देश में नीति की दिशा में सुधार की दरकार है.