ललित मोदी प्रकरण पर पढ़ें पुष्परंजन का लेख
जिस 470 करोड़ रुपये को लाने के लिए हाय-तौबा मची हुई है, उससे कई गुना अधिक धन, ललित मोदी ने ‘सारे जहां से अच्छा, हिंदुस्तां हमारा’ में लगा रखा है. जब पिछले संसद सत्र में कानून बना लिया, तो ललित मोदी का धन जब्त क्यों नहीं करते? अब तक ‘आस्तीन के सांप’ का पता नहीं […]
जिस 470 करोड़ रुपये को लाने के लिए हाय-तौबा मची हुई है, उससे कई गुना अधिक धन, ललित मोदी ने ‘सारे जहां से अच्छा, हिंदुस्तां हमारा’ में लगा रखा है. जब पिछले संसद सत्र में कानून बना लिया, तो ललित मोदी का धन जब्त क्यों नहीं करते?
अब तक ‘आस्तीन के सांप’ का पता नहीं चल पाया है. आस्तीन किसकी है, यह सार्वजनिक हो, तो सांप का भी पता चल जायेगा. भाजपा नेता कीर्ति आजाद ने चंडूखाने की गप नहीं छोड़ी है. अभी कुछ हफ्ते पहले दिल्ली चिड़ियाघर में एक ‘किंग कोबरा’ आया है. कीर्ति आजाद एक जिम्मेवार सांसद हैं, चुनांचे इस बात के लिए निश्चिंत रहना चाहिए कि वे दिल्ली चिड़ियाघर के नहीं, ‘सियासी सांप’ की बात कह रहे थे. बीते मंगलवार के संवाददाता सम्मेलन में वित्त मंत्री अरुण जेटली और गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने इसे राज ही रहने दिया. सुषमा स्वराज यदि पद से हटती हैं, तो पार्टी में किसे फायदा होता है? किन लोगों को राहत की सांस मिलती है और किनके रास्ते का रोड़ा साफ होता है? ऐसे सवाल तो बनते ही हैं.
अभी जो लोग प्रेस कॉन्फ्रेंस में विदेश मंत्री के बचाव के लिए वक्तव्य दे रहे हैं, कुछ दिन पहले तक उनसे शह-मात चल रही थी. सुषमा स्वराज जब नेता प्रतिपक्ष थीं, तो सदन में कुछ लोग उनकी प्रखर वाचन शक्ति को देख कर उनमें प्रधानमंत्री पद का अक्स ढूंढ़ रहे थे. कठोरपंथी तत्वों का विरोधी होने के बावजूद, संघ के कई लोग सुषमा स्वराज को प्रधानमंत्री उम्मीदवार बनाने के पक्ष में थे. लेकिन तब शायद सुषमा स्वराज के सितारे प्रबल नहीं थे. चुनाव के समय नरेंद्र मोदी को जब भाजपा ‘कैंपेन कमेटी’ का चेयरमैन बनाया जा रहा था, उस समय सुषमा ने संसदीय समिति की बैठक में इसका विरोध किया था. यह भी भूलनेवाला प्रसंग नहीं है कि सीबीआइ ने अमित शाह को जब ‘फर्जी मुठभेड़ कांड’ में गिरफ्तार किया था, तब सुषमा स्वराज ने उन्हें पार्टी से बाहर करने की मांग की थी. प्रधानमंत्री मोदी और अमित शाह क्या सचमुच सब कुछ भूल कर विदेश मंत्री को बचाना चाहते हैं? क्या आग की लपटें सात रेसकोर्स तक पहुंचने का डर है, या फिर ‘भ्रष्टाचार मुक्त सरकार’ का जो गुब्बारा फुला रहे थे, उसकी हवा निकलने का सदमा है? अच्छा है कि सबके बावजूद, बरास्ते ‘पीएमओ’, पार्टी में एकता प्रदर्शित करने का अभिनय हो रहा है. रामधारी सिंह ‘दिनकर’ ने बड़ा अच्छा लिखा है- ‘क्षमा शोभती उस भुजंग को, जिसके पास गरल हो!’
लेकिन क्या सुषमा स्वराज बहुत लंबे समय तक ‘आस्तीन के सांपों’ और ऐसे माहौल को बर्दाश्त कर पायेंगी? पैंतालीस साल तक कमल खिलाते रहने के बाद पहली बार सुषमा स्वराज के दामन पर कीचड़ उछला है. स्वराज परिवार इससे इनकार करने की हालत में नहीं है कि ललित मोदी से उनके पिछले 20 वर्षो से निजी संबंध रहे हैं. इतना निजी कि स्वराज कौशल और उनकी बेटी बांसुरी कौशल ने मोदी के पक्ष में केस लड़ने का पैसा तक नहीं लिया था. भारतीय मूल के विवादास्पद ब्रिटिश सांसद कीथ वाज के माध्यम से वीजा और ट्रेवल डॉक्यूमेंट रातोंरात दिलाने का आधार ‘मानवीय’ था, यह भी विदेश मंत्री सुषमा स्वराज स्वीकार कर चुकी हैं. एक भागे हुए अभियुक्त की मदद, उस अभियुक्त से वकील पति और बेटी के व्यावसायिक व निजी संबंधों के बीच एक अदृश्य लक्ष्मण रेखा है, जिसे जाने-अनजाने सुषमा स्वराज लांघ गयीं. फिर भी, सुषमा स्वराज के साथ शरद पवार, मुलायम सिंह यादव, उद्धव ठाकरे आदि खड़े नजर आ रहे हैं.
इस प्रकरण से परदा उठाने में ‘संडे टाइम्स’ की अहम भूमिका रही है. इस खबर के पीछे ‘संडे टाइम्स’ के मालिक रूपर्ट मडरेक के किस तरह के व्यावसायिक हित हो सकते हैं? क्या इस खबर को खेलने के पीछे क्रिकेट की दुनिया में अथाह काला धन लगानेवालों की लॉबी काम कर रही है? अब तो चेहरों से और मुखौटे उतरने लगे हैं. वसुंधरा राजे राजस्थान में नेता प्रतिपक्ष रहते 2012-13 में ललित मोदी की पत्नी के साथ पुर्तगाल गयी थीं, इस खुलासे से भाजपा की मुश्किलें और बढ़ेंगी. ललित मोदी से संबंधों को एनसीपी नेता शरद पवार, प्रफुल्ल पटेल इनकार करने की स्थिति में नहीं हैं. पवार तो इतना कह कर अपनी जान छुड़ा रहे हैं कि ललित मोदी को अदालत में हाजिर होने और आरोपों के विरुद्ध अपना पक्ष रखने की सलाह दी थी. कांग्रेस नेता राजीव शुक्ला सफाई में कह रहे हैं कि तीन साल से ललित मोदी से बात तक नहीं की है. लेकिन ललित मोदी को देश से भागे छह साल हो चुके हैं. तो क्या संप्रग-दो के समय ललित मोदी से नरमी बरती गयी थी? तब भी, जब आइपीएल घोटाले में शशि थरूर जैसे मंत्री नप गये थे.
बीसीसीआइ द्वारा आइपीएल चेयरमैन पद से निलंबित ललित मोदी पर 470 करोड़ रुपये की हेराफेरी, 2009 में ‘क्रिकेट मीडिया राइट्स कॉन्ट्रैक्ट’ में गड़बड़ी करने, हवाला के जरिये काला धन जुटाने का आरोप लगा था. 28 अक्तूबर, 2010 को ललित मोदी के वकील महमूद आब्दी ने सफाई दी थी कि उनका क्लाइंट देश छोड़ कर भागा नहीं है, बल्कि ललित, उसकी पत्नी मीनल, बेटा रुचिर की जान को दाऊद और छोटा शकील गैंग से खतरा था, जिस वास्ते उसे देश छोड़ना पड़ा है, इसलिए ललित के पासपोर्ट कैंसिल न हों. प्रवर्तन निदेशालय के अनुसार, ‘इंटरपोल ने 2010 में ललित मोदी के विरुद्ध जो ‘ब्लू नोटिस’ जारी किया था, उसकी अवधि समाप्त नहीं हुई है.’ ललित के खिलाफ फेमा (फॉरेन एक्सचेंज मैनेजमेंट एक्ट) के तहत सोलह आरोप साबित हुए हैं, लेकिन इस समय वह इबिजा रिजॉर्ट पर मजे कर रहा है.
ललित मोदी ने भारतीय अर्थव्यवस्था और राजनीति की जो ट्वेंटी-ट्वेंटी की है, उसकी जांच के लिए बीसीसीआइ ने चिरायु अमीन के नेतृत्व में ज्योतिरादित्य सिंधिया, अरुण जेटली की तीन सदस्यीय कमेटी बनायी थी. मगर, उससे हुआ क्या? उधर, आज जिस ललित मोदी को लेकर कांग्रेस हल्ला बोल कार्यक्रम में लग गयी है, उससे पूछना चाहिए कि 2012 के बाद उसके नेता कहां सोये थे. 2012 में ललित मोदी का पता करने के वास्ते एक औपचारिक चिठ्ठी ‘ब्रिटिश फॉरेन ऑफिस’ को भेज दी गयी. यह अच्छा मजाक है कि ब्रिटेन-भारत की सरकारें कागजों में ललित मोदी को ढूंढ रही थीं, और टीवी वाले लगातार ललित मोदी का इंटरव्यू कर रहे थे. पता नहीं भारत-ब्रिटेन के बीच 1993 में प्रत्यर्पण संधि किसलिए की गयी थी. मान लिया कि संप्रग वाले सही नहीं थे, मगर काला धन लाने का संकल्प करनेवाली ‘भ्रष्टाचार मुक्त’ मोदी सरकार क्यों नहीं चाहती कि ललित मोदी को बिल से बाहर निकाला जाये? जिस 470 करोड़ रुपये को लाने के लिए हाय-तौबा मची हुई है, उससे कई गुना अधिक धन, ललित मोदी ने ‘सारे जहां से अच्छा, हिंदुस्तां हमारा’ में लगा रखा है. जब पिछले संसद सत्र में कानून बना लिया, तो ललित मोदी का धन जब्त क्यों नहीं करते?
पुष्परंजन
दिल्ली संपादक, ईयू-एशिया न्यूज
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