योग पर छिड़ी अनावश्यक बहस

भारतवर्ष की सनातन संस्कृति में योग शब्द का अपना विशेष महत्व है. कहा जाता है कि योग के विभिन्न चरणों में जीवन की प्रत्येक समस्या का समाधान निहित है. उल्लेखनीय है कि महर्षि पतंजलि ने योग के अष्टांगिक मार्ग की व्याख्या में स्पष्ट रूप से कहा है कि चित्तवृत्तियों के निरोध का ही दूसरा नाम […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | June 20, 2015 5:16 AM
भारतवर्ष की सनातन संस्कृति में योग शब्द का अपना विशेष महत्व है. कहा जाता है कि योग के विभिन्न चरणों में जीवन की प्रत्येक समस्या का समाधान निहित है. उल्लेखनीय है कि महर्षि पतंजलि ने योग के अष्टांगिक मार्ग की व्याख्या में स्पष्ट रूप से कहा है कि चित्तवृत्तियों के निरोध का ही दूसरा नाम योग है.
आजकल देश भर में योग की प्रासंगिकता पर जबरदस्त बहस छिड़ी हुई है. कुछ लोग इसे आधार बना कर अपनी राजनीति चमकाने का प्रयास कर हैं. वहीं कुछ लोगों ने योग को जातिगत नजरिया अपना कर देखना प्रारंभ कर दिया है.
ध्यान रहे कि अनेक चमत्कारी विशिष्टताओं से परिपूर्ण होने के बावजूद पिछले कुछ समय तक योग के प्रति हमारे समाज में उपेक्षा का वातावरण विद्यमान था. ऐसे में हमारी सरकार ने प्रति वर्ष 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाने के निर्णय को लेकर पुन: योग की प्रासंगिकता को वापस लौटाने का प्रशंसनीय प्रयास किया है. योग के संदर्भ में यह विचार सर्वाधिक महत्वपूर्ण है कि योग एक आध्यात्मिक प्रक्रिया है, जिसमे मनुष्य के शरीर, मन एवं आत्मा का एकाकार संभव हो जाता है.
योग महज व्यक्तिगत लाभ का विषय नही है, बल्कि यह किसी सभ्य, संगठित एवं कल्याणकारी समाज के निर्माण में भी अप्रत्यक्ष रूप से अपना योगदान देनेवाला एक प्रमुख कारक है. फिर योग को लेकर बेवजह बहस को तूल देना हमारे लिए कहां तक उचित है? आज की अस्त-व्यस्त जीवन-शैली में हम योग का सहारा लेकर मानसिक एकाग्रता एवं मानवीय कर्मो की कुशलता का मार्ग प्रशस्त कर सकते हैं. अत: सभी देशवासियों को आपसी संघर्ष के बजाय सहृदयता के साथ योग का समर्थन करना चाहिए.
नीरज कुमार निराला, मुजफ्फरपुर

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