जन-जन तक योग

अंतराष्ट्रीय योग दिवस पर हुए आयोजनों ने लोगों में शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य के प्रति उत्साह का संचार किया है. नये बने अलग आयुष मंत्रालय के इस पहले सार्वजनिक आयोजन में प्रधानमंत्री समेत विभिन्न वर्गो की भागीदारी ने इसे एक अभूतपूर्व अवसर बना दिया है. हम सभी जानते हैं कि स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | June 22, 2015 5:22 AM
अंतराष्ट्रीय योग दिवस पर हुए आयोजनों ने लोगों में शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य के प्रति उत्साह का संचार किया है. नये बने अलग आयुष मंत्रालय के इस पहले सार्वजनिक आयोजन में प्रधानमंत्री समेत विभिन्न वर्गो की भागीदारी ने इसे एक अभूतपूर्व अवसर बना दिया है.
हम सभी जानते हैं कि स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन का वास होता है तथा विकास और शांति के लिए यह अनिवार्य शर्त भी है. योग की उपयोगिता को लंबे समय से रेखांकित किया जाता रहा है और देश-विदेश में इसकी लोकप्रियता भी बढ़ रही है.
संयुक्त राष्ट्र द्वारा योग दिवस का निर्धारण होने से और अब केंद्र सरकार की इस पहल द्वारा इसे नया आयाम मिला है. परंतु सरकार को एक दिन की उपलिब्धयों से संतुष्ट न होते हुए योग की व्यापकता और स्वास्थ्य के प्रति चेतना के प्रचार-प्रसार के लिए निरंतर लगे रहने की आवश्यकता है. यह ध्यान रखा जाना चाहिए कि हमारा देश संख्या और क्षेत्रफल की दृष्टि से बहुत बड़ा है और इसमें विभिन्न सामाजिक और आर्थिक वर्गो के लोग रहते हैं.
वंचित तबकों और ग्रामीण भारत को जोड़े बिना ऐसी कोई पहल दूर तक नहीं जा सकेगी और यह कतिपय शहरों के उच्च और मध्यम वर्गो तक ही सिमट कर रह जायेगी. अगर आज कुछ समुदायों और लोगों को योग पर सरकारी पहल से परेशानी है तो उसके निदान की जिम्मेवारी भी सरकार की है.
सरकार में शामिल लोगों और किसी पार्टी या विचारधारा को इसे पंथ और संप्रदाय की सीमा में बांधते हुए उत्तेजक टिप्पणियों से बचना चाहिए. सरकार योग को बढ़ावा देने के प्रयास में दो उदाहरणों से सीख ले सकती है. बहुत उम्मीद और उत्साह से शुरू किये गये स्वच्छता अभियान में अब वह ऊर्जा नहीं दिखती है. हाथों में झाड़ू थाम कर फोटो खिंचवाने वाले लोग कहीं गायब हो चुके हैं और हर तरफ गंदगी का आलम पहले जैसा ही है. इस वर्ष के बजट में भी उसके आवंटन में कमी हुई है.
अगर हम गंदी बस्तियों और बीमारी के माहौल में रहने को विवश करोड़ों वंचितों के जीवन को बेहतर बनाये बगैर स्वच्छ भारत की कल्पना भी नहीं कर सकते. इसी तरह योग को भी उन तक तभी ले जाया जा सकता है, जब हम उनकी प्राथमिकताओं के प्रति संवेदनशील होंगे.
दूसरा उदाहरण पल्स पोलियो अभियान की सफलता का है जिसका आधार गरीबों और गांवों तक जागरूकता का प्रसार है. उम्मीद है कि सरकार योग के मामले में धीरज और निरंतरता का भाव अपनायेगी ताकि भारत एक समग्र स्वास्थ्य के लक्ष्य को पा सके.

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