अफगानी संसद पर हमले का अर्थ
अवधेश कुमार वरिष्ठ पत्रकार अफगानिस्तान की संसद पर हमले से पूरी दुनिया सकते में है. आतंकी धमाका तब हुआ, जब संसद में निचले सदन की कार्यवाही चल रही थी और स्पीकर सदन को संबोधित कर रहे थे. हमलावरों ने विशेष सुरक्षा बलों से लंबे समय तक लोहा लिया, उससे यह साफ है कि उनकी तैयारी […]
अवधेश कुमार
वरिष्ठ पत्रकार
अफगानिस्तान की संसद पर हमले से पूरी दुनिया सकते में है. आतंकी धमाका तब हुआ, जब संसद में निचले सदन की कार्यवाही चल रही थी और स्पीकर सदन को संबोधित कर रहे थे. हमलावरों ने विशेष सुरक्षा बलों से लंबे समय तक लोहा लिया, उससे यह साफ है कि उनकी तैयारी पूरी थी.
सुरक्षा बलों ने सातों हमलावरों को मार गिराया. इतने सुरक्षित भवन पर हमला ही नहीं, ऐसे सुरक्षित क्षेत्र में आतंकवादियों का इस तरह हथियारों के साथ आ जाना अपने आप में बड़ी बात है. चूंकि तालिबान ने हमले की जिम्मेवारी ले ली है, इसलिए हमें यह विचार करना होगा कि आखिर उनके यहां पहुंचने का उद्देश्य क्या हो सकता है? हमला संसद भवन के बाहर था, लेकिन विस्फोट इतना बड़ा था कि लाइव प्रसारण कर रहे कैमरे हिलने लगे.
साफ है कि वे संसद के अंदर प्रवेश करने में सफल नहीं हुए, अन्यथा पता नहीं क्या हो जाता. आतंकवादी हमला अफगानिस्तान के लिए नयी बात नहीं है, पर संसद पर हमला एक साथ कई संकेत देता है, जो केवल अफगानिस्तान नहीं, पूरे विश्व के लिए चिंता का विषय है.
लगता है तालिबान अपनी शक्ति का प्रदर्शन करना चाहते हैं. वे यह संदेश देना चाहते हैं कि अफगान सरकार एक शक्तिहीन सरकार है. उन्होंने साफ कर दिया है कि अमेरिकी फौज की वापसी के बाद वे हिंसा का साम्राज्य कायम कर सकते हैं. इसका प्रमाण उन्होंने लगातार अधिक से अधिक क्षेत्रों पर कब्जे की रणनीति से दे दिया है. वास्तव में क्षेत्रों पर कब्जा करना तालिबानों की महत्वपूर्ण रणनीति है.
अफगानी राष्ट्रपति डॉ अशरफ गनी ने सत्ता में आने के साथ पाकिस्तान की फौज के साथ संबंध बेहतर किये हैं. यह पूर्व सरकार की नीति से विपरीत है. इसके पीछे सोच यह है कि चूंकि पाकिस्तानी फौज ही तालिबान को समर्थन दे रही थी, इसलिए वे दबाव डाल कर उनको अफगान सरकार के साथ बातचीत करने को मजबूर करेंगे.
दूसरी ओर पाकिस्तान की छवि अफगानिस्तान में खराब है, इसलिए गनी के इस व्यवहार को संदेह ही नजर से भी देखा जा रहा है. अफगानिस्तान से अंतरराष्ट्रीय सेना की वापसी के बाद अफगान सेना कमजोर नजर आ रही है, जिसका फायदा तालिबान आतंकी उठा रहे हैं. अब अशरफ गनी सरकार का नियंत्रण धीरे-धीरे सीमित हो रहा है.
अप्रैल से, जब से तालिबान ने हमला तेज किया, अफगानिस्तान में एक हजार से ज्यादा आम लोग आतंकवादी हमले में मारे गये हैं.
तालिबान व आइएस का विस्तार हमारे लिए कितना खतरनाक है, यह पहलू तो अहम है, पर संसद पर हमला भारत के लिए भावनाओं को धक्का पहुंचने का विषय भी है. अफगानिस्तान में संसद भवन के निर्माण में भारत ने सबसे ज्यादा मदद की है. तालिबान ज्यादा से ज्यादा क्षेत्रों पर कब्जा कर रहे हैं.
इससे यह आशंका होती है कि कहीं संसद पर हमले के पीछे कब्जा करने की योजना तो नहीं थी. वैसे भी तालिबान का काबुल में आना और ऐसा हमला करना गनी सरकार के लिए खतरे की घंटी तो है ही. जाहिर है, आगे ये गनी सरकार को प्रभावहीन करने और अपना प्रभाव कायम करने के लिए और हमले करेंगे.