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कदम्ब से नहीं बचेगा पर्यावरण

डॉ भरत झुनझुनवाला अर्थशास्त्री मोदी जी ने अपने आवास पर कदम्ब का पेड़ लगाया, इसके लिए उनका साधुवाद. परंतु, उनकी तमाम योजनाएं पर्यावरण को नष्ट करने की तरफ बढ़ रही हैं. ऐसे में महज एक कदम्ब के पेड़ को लगाना जनता को गुमराह करना मात्र है.विश्व पर्यावरण दिवस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने सरकारी […]

डॉ भरत झुनझुनवाला
अर्थशास्त्री
मोदी जी ने अपने आवास पर कदम्ब का पेड़ लगाया, इसके लिए उनका साधुवाद. परंतु, उनकी तमाम योजनाएं पर्यावरण को नष्ट करने की तरफ बढ़ रही हैं. ऐसे में महज एक कदम्ब के पेड़ को लगाना जनता को गुमराह करना मात्र है.विश्व पर्यावरण दिवस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने सरकारी आवास पर कदम्ब का एक पौधा लगाया. मोदी की भावनाओं का स्वागत है. परंतु मोदी तो यमुना समेत देश के संपूर्ण पर्यावरण को नष्ट करने पर आमादा हैं. देश की नदियां और जंगल ही नहीं बचेंगे, तो रेस कोर्स परिसर में कदम्ब का पेड़ लगाने की क्या सार्थकता है?
देश के पर्यावरण कानूनों की समीक्षा करने को मोदी सरकार ने पूर्व कैबिनेट सचिव टीएसआर सुब्रमण्यम की अध्यक्षता में एक उच्चस्तरीय कमेटी गठित की थी. कमेटी में पर्यावरण से संबंध रखनेवाले केवल एक ही व्यक्ति थे विश्वनाथ आनंद. इनका पर्यावरण प्रेम इतना था कि नेशनल इन्वायरमेंट अपेलेट अथॉरिटी के उपाध्यक्ष के पद पर आपके सामने पर्यावरण रक्षा के जितने वाद आये थे, सबको आपने खारिज कर दिया था. दो माह पूर्व राज्यों के पर्यावरण मंत्रियों को संबोधित करते हुए मोदी ने कहा कि कोयले के खदानों से पर्यावरण संरक्षण के लिए पहले जो शुल्क राशि ली जाती थी, उसे चार गुना बढ़ाया जा रहा है.
यह राशि काटे गये जंगल के मूल्य की ली जाती है. वर्तमान में घने जंगलों के लिए 10 लाख रुपये प्रति हेक्टेयर की राशि वसूल की जाती है. सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर इसे रिवाइज कर इंडियन इंस्टीट्यूट आफ फॉरेस्ट मैनेजमेंट ने इस रकम को बढ़ा कर 56 लाख रुपये प्रति हेक्टेयर कर दिया था.
वर्तमान में सभी संरक्षित क्षेत्रों जैसे इको-सेंसेटिव जोन, वाइल्ड लाइफ पार्क इत्यादि में कोयला खदान प्रतिबंधित है. सुब्रमण्यम कमेटी ने संस्तुति दी है कि संरक्षित क्षेत्रों के केवल उन हिस्सों में कोयला खदानों को प्रतिबंधित रखा जाये, जहां जंगल का घनत्व 70 फीसदी से ज्यादा है, शेष हिस्सों को खदान के लिए खोल दिया जाये. अत: संरक्षित क्षेत्र में कोयला खदान को छूट देने की ओर मोदी जी बढ़ रहे हैं.
पर्यावरण और विकास को साथ-साथ लेकर चलने के लिए जरूरी है कि इस संतुलन की सरकारी समझ को न्यायालय में चुनौती दी जा सके. वर्तमान में ऐसे मुद्दों पर जनता नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल में वाद दायर कर सकती है.
सुब्रमण्यम कमेटी ने संस्तुति दी है कि ऐसे वाद को सुनने के लिए एक अपीलीय बोर्ड बनाया जाये, जिसके अध्यक्ष हाइकोर्ट के सेवानिवृत्त जज होंगे और सदस्य दो सरकार के सचिव होंगे. अपीलीय बोर्ड में पर्यावरणविद् के लिए कोई जगह नहीं है यानी पर्यावरण संबंधी विवाद निबटाने के लिए इन्हें पार्यावरण विशेषज्ञों का ज्ञान जरूरी नहीं है.
मोदी ने गंगा की सफाई की बात की है. इस बिंदु पर सरकार द्वारा कुछ सार्थक कदम भी उठाये गये हैं, लेकिन वे पर्याप्त नहीं हैं. नदी की मूल प्रकृति बहने की होती है. दुर्भाग्य है कि मोदी गंगा को बहने नहीं देना चाहते हैं. सुप्रीम कोर्ट में गंगा पर बन रहे बांधों का वाद चल रहा है.
दिसंबर में पर्यावरण मंत्रालय ने कोर्ट में कहा कि जल विद्युत परियोजनाएं इस प्रकार बनायी जानी चाहिए कि नदी की मूल धारा अविरल बहती रहे. सरकार का यह मंतव्य सही दिशा में था, परंतु फरवरी में सरकारी वकील ने सुप्रीम कोर्ट से छह ऐसी बांध परियोजनाओं को चालू करने का आग्रह किया, जिनमें बांध बना कर गंगा के बहाव को पूरी तरह रोका जाना था. ज्ञात हुआ कि सरकारी वकील को सीधे आदेश प्रधानमंत्री कार्यालय से मिला था. गंगा पर इलाहाबाद से बक्सर के बीच मोदी सरकार ने 3-4 बराज बनाने का प्रस्ताव भी रखा था.
उत्तर प्रदेश तथा बिहार की राज्य सरकारों द्वारा इस प्रस्ताव का विरोध किये जाने पर इस परियोजना को फिलहाल स्थगित कर दिया गया है. परंतु जलपरिवहन मंत्री नितिन ने गडकरी इलाहाबाद के ऊपर ऐसे बराज बनाने का विकल्प खुला छोड़ रखा है. इसे मोदी का व्यक्तिगत प्रोजेक्ट बताया जा रहा था. ऐसा प्रतीत होता है कि मोदीजी को गंगा के बहाव से कोई प्रेम नहीं है.
सुब्रमण्यम कमेटी ने संस्तुति दी है कि वन्यजीव पार्को के चारों ओर इको-सेंसेटिव जोन की सीमा शीघ्र निर्धारित की जाये. सच यह है कि सुप्रीम कोर्ट ने यह सीमा 10 किलोमीटर निर्धारित कर दी थी. कमेटी इस क्षेत्र को सीमित करना चाहती है. वर्तमान में पर्यावरण स्वीकृति हासिल करने के लिए जनसुनवाई की व्यवस्था है. सुब्रमण्यम कमेटी ने संस्तुति दी है कि जनसुनवाई में केवल स्थानीय लोगों को भाग लेने दिया जायेगा. तात्पर्य हुआ कि नरोरा में बन रहे बराज की जनसुनवाई में वाराणसी की जनता की भागीदारी बहिष्कृत होगी. देश की गंगा को वैश्विक दर्जा दिलाने के स्थान पर मोदी इसे स्थानीय धरोहर बना देना चाहते हैं.
यदि मोदी को भारतीय संस्कृति और पर्यावरण से स्नेह होता, तो वे कमेटी में संस्कृति एवं पर्यावरण के जानकारों को अवश्य स्थान देते. मोदी जी ने अपने आवास पर कदम्ब का पेड़ लगाया, इसके लिए उनका साधुवाद. परंतु, उनकी तमाम योजनाएं पर्यावरण को नष्ट करने की तरफ बढ़ रही हैं. ऐसे में महज एक कदम्ब के पेड़ को लगाना जनता को गुमराह करना मात्र है.

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