पुरुष आयोग का भी हो गठन
कहते हैं ‘मर्द को दर्द नहीं होता’, लेकिन यह गलत है. मर्द को भी दर्द होता है, परंतु कुछ अलग तरह की परवरिश होने के कारण वह खुल कर रो भी नहीं पाता. भीतर ही भीतर खोखला होता जाता है और फिर वह दर्द तो उसके लिए असहनीय हो जाता है. वह जिसके गले में […]
कहते हैं ‘मर्द को दर्द नहीं होता’, लेकिन यह गलत है. मर्द को भी दर्द होता है, परंतु कुछ अलग तरह की परवरिश होने के कारण वह खुल कर रो भी नहीं पाता. भीतर ही भीतर खोखला होता जाता है और फिर वह दर्द तो उसके लिए असहनीय हो जाता है.
वह जिसके गले में फूलों का हार डाल कर सब कुछ न्योछावर कर देता है, उसे अंदाजा ही नहीं रहता कि कब उस पुरुष के गले की शोभा बढ़ानेवाला हार उसके लिए फांसी का फंदा बन कर डराने लगता है.
कुछ पत्नियां यह बात समझ कर भी नासमझ बनी रहती हैं, क्योंकि पतियों को ब्लैकमेल करने में उन्हें बड़े-बड़े लाभ नजर आते हैं. फलत: कानून का दुरूपयोग कर वे अपने पतियों एवं उनके परिजनों का जीना हराम कर देती हैं. हमारे देश में शादी सबसे बड़ा जुआ है.
‘चढ़ै तो चाखे प्रेम रस, गिरै तो चकनाचूर.’ आराम-तलब स्त्रियां शिक्षित होने के बावजूद कैरियर नहीं बनाने के बजाये हथकंडों का इस्तेमाल अधिक करती हैं. पति काम करते हैं और ये ऐश-तैश करती हैं. काम से थक-हार कर लौटे पतियों को ये भीतरी मार मारती है. पतियों के शरीर पर निशान भी नहीं रहता और अंतरात्मा क्षत-विक्षत हो जाती है.
इन्हीं के कारण अपने अथक परिश्रम से बसाये गये अपने ही घर में पुरुष अपराधी की छवि लिये चूहा बनने पर विवश हो जाते हैं. कब दरवाजे पर महिला आयोग, स्वयंसेवी संगठन या फिर पुलिस दस्तक दे दे, कोई पता नहीं. कई पत्नियां तो पतियों से तलाक लेने पर आमादा हो जाती हैं और कई उसके बहाने ब्लैकमेल करती हैं.
अत: मेरा देश के प्रधानमंत्री और झारखंड के मुख्यमंत्री से अनुरोध है कि देश से लेकर राज्य स्तर पर पुरुष आयोग का गठन शीघ्रातिशीघ्र करवाने की दिशा में पहल की जाये, ताकि पुरुषों को भी निजात मिल सके.
डॉ उषा किरण, रांची