तालिबान की धमक

अफगानिस्तान की संसद पर तालिबान के हमले से फिर यह साबित हुआ है कि न तो इस संगठन की ताकत में और न ही सत्ता पर काबिज होने के उसके इरादों में कोई कमी आयी है. इस घटना ने यह भी साफ कर दिया है कि मौजूदा अफगानी शासन और उसके सुरक्षा के इंतजाम बहुत […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | June 24, 2015 5:36 AM
अफगानिस्तान की संसद पर तालिबान के हमले से फिर यह साबित हुआ है कि न तो इस संगठन की ताकत में और न ही सत्ता पर काबिज होने के उसके इरादों में कोई कमी आयी है. इस घटना ने यह भी साफ कर दिया है कि मौजूदा अफगानी शासन और उसके सुरक्षा के इंतजाम बहुत पुख्ता नहीं हैं.
देश के कई इलाकों में तालिबान लड़ाके कस्बों और शहरों पर दखल के लिए हिंसक हमलों को अंजाम दे रहे हैं. संयुक्त राष्ट्र के महासचिव बान की मून की एक हालिया रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले साल की तुलना में हिंसक संघर्षो में 45 फीसदी का इजाफा हुआ है और 71 फीसदी ऐसी वारदातें अफगानिस्तान के दक्षिणी, दक्षिण-पूर्वी और पूर्वी हिस्सों में हो रही हैं. इन आंकड़ों से यह भी साफ होता है कि देश की अस्थिरता की मुख्य वजह जातीय या कबीलाई तनाव नहीं है, बल्कि यह कुख्यात आतंकी संगठन की कारगुजारियों का नतीजा है. अंतरराष्ट्रीय कूटनीति की एक बड़ी समस्या होने के साथ पड़ोसी देश होने के कारण अफगानिस्तान की अस्थिरता भारत के लिए भी बड़ी चिंता की बात है.
तालिबान के पाकिस्तानी खुफिया संगठन आइएसआइ से गहरे संबंध रहे हैं. भारत में आंतकी गतिविधियों को संरक्षण और समर्थन देने में इस संगठन की भूमिका एक खुला तथ्य है. पाकिस्तानी सेना और शासन का भारत-विरोधी गुट तालिबान और अफगानिस्तान में अपनी पैठ का इस्तेमाल हमारे देश में हिंसात्मक घटनाओं को अंजाम देने में कर सकता है. अफगानिस्तान के स्थायित्व और नवनिर्माण में भारत का महत्वपूर्ण योगदान है.
वहां भारतीय अनुदान और निवेश से कई परियोजनाएं चल रही हैं तथा भारतीय विशेषज्ञ अपनी सेवाएं दे रहे हैं. भारतीय दूतावास और परियोजनाओं पर तालिबानी हमलों के पूर्ववर्ती घटनाओं को देखते हुए हमारी सरकार को अफगानिस्तान के ताजा हालात पर गंभीरता से विचार करना होगा. संयुक्त राष्ट्र में भारतीय प्रतिनिधि अशोक कुमार मुखर्जी का यह बयान बहुत महत्वपूर्ण है कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय को अफगानिस्तान में सैनिकों की बहाली पर पुनर्विचार करना चाहिए. लेकिन अनुभवों से यही पता चलता है कि सैन्य उपस्थिति दीर्घकालिक शांति की ठोस गारंटी नहीं है.
आवश्यकता यह है कि भारत समेत दुनिया के प्रमुख देश शांति-प्रक्रिया में सकारात्मक सहयोग दें और तालिबान के साथ खड़ी ताकतों पर दबाव बनायें, जिनमें पाकिस्तान भी है. अफगानिस्तान की स्थिरता दक्षिण एशिया की शांति, सुरक्षा और विकास के लिए एक जरूरी शर्त है.

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