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योग का विलासितापूर्ण प्रदर्शन

पवन के वर्मा सांसद एवं पूर्व प्रशासक यह श्रेय भारतीय जनता पार्टी के मौजूदा नेतृत्व को दिया जाना चाहिए, कि सिर्फ वे ही उचित गर्व के एक प्रतीक को पूरी तरह से अनावश्यक और नुकसानदेह विवाद में बदल सकते हैं. एकताबद्ध करनेवाली किसी चीज को विभाजक तत्व में बदल देने की प्रतिभा सिर्फ उन्हीं के […]

पवन के वर्मा
सांसद एवं पूर्व प्रशासक
यह श्रेय भारतीय जनता पार्टी के मौजूदा नेतृत्व को दिया जाना चाहिए, कि सिर्फ वे ही उचित गर्व के एक प्रतीक को पूरी तरह से अनावश्यक और नुकसानदेह विवाद में बदल सकते हैं. एकताबद्ध करनेवाली किसी चीज को विभाजक तत्व में बदल देने की प्रतिभा सिर्फ उन्हीं के पास है. सिर्फ वे ही हमारी विरासत के एक महान पहलू की स्वत: प्रशंसा को आत्माविहीन उन्मादी प्रवृत्ति में बदल सकते हैं.
पिछले सप्ताह मैं राष्ट्रपति जी को योग पर लिखी एक पुस्तक की प्रति भेंट करने के लिए राष्ट्रपति भवन गया था. यह पुस्तक मुरली मनोहर जोशी की पुत्री निवेदिता जोशी ने लिखी है.
उन्होंने बड़ी मेहनत से दृष्टिबाधित लोगों के योग सीखने के लिए यह किताब तैयार की है. इस परियोजना में उनकी मदद तकनीकी विशेषज्ञों के एक स्वयंसेवी समूह ने की है. प्रसिद्ध योग गुरु बीकेएस अयंगर की शिष्या जोशी स्वयं भी योग विशेषज्ञ हैं. बहुत वर्षो तक पीठ की समस्या के कारण वह लगभग बिस्तर पर पड़ी रही थीं. योग ने उनका उपचार किया और उनकी जिंदगी बदल दी.
मैं हर रोज योगाभ्यास करता हूं. वास्तव में मैं ऐसा काफी समय से कर रहा हूं और मुङो गर्व है कि मैं कुछ कठिन आसन आसानी से कर सकता हूं. मेरा दृढ़ विश्वास है कि योग व्यक्ति के लिए अच्छा है, और यह हमारी प्राचीन विरासत का अमूल्य भाग है. जैसा कि डेढ़ सदी पूर्व पतंजलि ने अपने योग शास्त्र में कहा है, यह एक पूर्ण अनुशासन है, जिससे मस्तिष्क और शरीर दोनों का व्यायाम होता है.
लोकप्रिय जानकारियों के विपरीत योग सिर्फ शारीरिक व्यायाम या आसन से संबंधित नहीं है. इसमें आठ-स्तरीय आयामों- यम यानी उचित व्यवहार, नियम यानी व्यक्तिगत अनुशासन, आसन यानी शारीरिक व्यायाम, प्रत्याहार यानी इंद्रियों पर नियंत्रण, ध्यान यानी मस्तिष्क पर नियंत्रण, धारण यानी एकाग्रचित्त, और अंत में समाधि यानी सचेत तन्मयावस्था, जहां स्व के सभी संदर्भ समाप्त हो जाते हैं- से व्यक्ति गुजरता है.
यह भारत के लिए गौरव का विषय है कि संयुक्त राष्ट्र ने 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के रूप में मान्यता दी है. इससे योग की वर्तमान वैश्विक लोकप्रियता को और मजबूती मिली है, और इस उपलब्धि के लिए सरकार की सराहना की जानी चाहिए. परंतु, भाजपा सरकार द्वारा योग दिवस के उत्सव मनाने में अनुपयुक्त उन्मादी उत्साह के प्रदर्शन को समझने में अक्षम हूं.
सम्मानित राजपथ पर और इसके लॉन में, जिनका उपयोग मुख्य रूप से भारत के लोकतांत्रिक गणतंत्र बनने की वर्षगांठ के उत्सव के लिए होता है, स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ‘योगी’ आंखों के सामने करीब 37 हजार ‘स्वयंसेवियों’ का योग प्रदर्शन आयोजित हुआ.
यह प्रयास इस प्रदर्शन को गिनीज बुक ऑफ रिकॉर्डस में शामिल कराने के लिए किया गया है. कई सप्ताह से एक इवेंट मैनेजमेंट कंपनी चटाइयां, कालीन, घेरा और बड़े-बड़े एलसीडी स्क्रीन की व्यवस्था करने में लगी हुई थी. पता लगा है कि इस पूरे आयोजन में तीन करोड़ रुपये खर्च हुए हैं, पर यह एक साधारण आकलन ही है. इससे कई गुना अधिक खर्च अखबारी विज्ञापनों पर हुआ है, जिनमें प्रधानमंत्री की तसवीर के साथ उनका संदेश छपा था.
इतना ही नहीं, केंद्रीय मंत्रियों को योग उत्सवों में शामिल होने के लिए दुनियाभर में भेजा गया. जो कम भाग्यशाली थे, उन्हें भाजपा के पदाधिकारियों के साथ राज्यों की राजधानियों के आयोजनों में भेजा गया, जहां नौकरशाहों की जमात भी मौजूद थी.
सभी सरकारी विभागों में इस अवसर को मनाने के लिए निर्देश जारी किये गये.
पहला निर्देश ‘सलाह’ के तौर पर था; दूसरे में कुछ बदलाव कर कहा गया कि जिन्हें ‘सही में रुचि हो’, वही भाग लें. लेकिन नौकशाहों ने संकेतों को बहुत जल्दी पकड़ लिया, और मुङो आशंका है कि कुछ ही ऐसे नौकरशाह रहे होंगे, जिनमें यह कहने की हिम्मत रही होगी कि वे यह कह सकें कि उनकी इसमें ‘सही में रुचि’ नहीं है.
इसी तरह से सीबीएससी के सभी स्कूलों को कहा गया कि वे योग दिवस मनाये जाने की रिपोर्ट जमा करें. केंद्र सरकार के योग और आयुर्वेद का विभाग आयुष प्रतिभागियों के लिए समुचित संख्या में टी-शर्ट जुटाने में परेशान रहा. मुसीबत में फंसी विदेश मंत्री सुषमा स्वराज अमेरिका के आयोजनों में भाग लेने गयी थीं और उन्हें यह निश्चिंतता थी कि उनके मातहत सभी दूतावासों और उच्चायोगों को आयोजन करने की हिदायत ‘ठीक’ से दे दी गयी थी.
किसी के लिए भी इस अप्रत्याशित ‘उत्सव’ के वास्तविक निहितार्थो को समझ पाना बहुत मुश्किल नहीं है. योग दिवस मनाना एक बात है; पर सरकार द्वारा इसे एकमात्र और मुख्य प्राथमिकता के रूप में हथिया लेना बिल्कुल अलग बात है, जबकि हमारे देश में हर आधे घंटे में एक किसान आत्महत्या कर रहा है.
इतना ही नहीं, इस बात के भी पुख्ता सबूत हैं कि सरकार के एजेंडे और भाजपा के अपने एजेंडे के बीच फर्क को जान-बूझ कर धुंधला करने की कोशिश की जा रही है. यह भी बहुत चिंताजनक है कि इसमें बिना मतलब सांप्रदायिक रंग डालने की कोशिश की जा रही है. भारतीय जनता पार्टी के एक वरिष्ठ सांसद ने तो यहां तक कह दिया कि योग नहीं करनेवालों को समुद्र में डूब मरना चाहिए या पाकिस्तान चले जाना चाहिए.
यह किस तरह की भाषा है? और, कब तक भारतीय जनता पार्टी अपने सांसदों और मंत्रियों को ऐसे विषवमन की इजाजत देती रहेगी और बाद में ऐसे बयानों से यह कह कर पल्ला झाड़ती रहेगी कि यह पार्टी की राय नहीं है.
भारत जैसे देश में ऐसे लगभग आवश्यक ‘उत्सवों’ को थोपने से पहले सभी समुदायों की भावनाओं पर विचार करना आवश्यक है. उदाहरण के लिए, मिजोरम ने रविवार के दिन योग दिवस मनाने के नाम पर इस ‘थोपने’ की कोशिश का विरोध किया है. इस राज्य की 87 फीसदी आबादी ईसाई धर्म के माननेवालों की है. जिस भावना से पतंजलि ने योग को गढ़ा था, उस लिहाज से योग हमारे देश की शानदार विविधता को रेखांकित करने से कभी कमतर नहीं होगा.
इसी तरह, अगर कुछ मुसलिमों को लगता है कि योग के कुछ अंग, जैसे कि सूर्य नमस्कार, उनके धर्म के विपरीत हैं, तो उन्हें गैर-देशभक्त या राष्ट्रविरोधी होने जैसा अहसास नहीं कराया जाना चाहिए. वास्तव में, यही तर्क हिंदुओं पर भी लागू होता है. हिंदू धर्म की महत्ता इसके खुलेपन और गतिशील होने में है, न कि इसके जड़ या तानाशाह होने में.
लेकिन, यह श्रेय भारतीय जनता पार्टी के मौजूदा नेतृत्व को दिया जाना चाहिए, कि सिर्फ वे ही उचित गर्व के एक प्रतीक को पूरी तरह से अनावश्यक और नुकसानदेह विवाद में बदल सकते हैं.
एकताबद्ध करनेवाली किसी चीज को विभाजक तत्व में बदल देने की प्रतिभा सिर्फ उन्हीं के पास है. सिर्फ वे ही हमारी विरासत के एक महान पहलू की स्वत: प्रशंसा को आत्माविहीन उन्मादी प्रवृत्ति में बदल सकते हैं.
महान ¬षि पतंजलि आकाश से राजपथ की इस विलासिता को देख रहे होंगे या नहीं देख रहे होंगे, लेकिन वे निश्चित रूप से यह आश्चर्य कर रहे होंगे कि उस भावना का क्या हुआ, जिसके साथ उन्होंने योग के विज्ञान की परिकल्पना की थी!

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