बिना कहानी के कैसे बनेंगे अच्छे गीत

‘युवाओं को बिगाड़ रहा फिल्मी संगीत’ पत्र (24 जून) पढ़ा. एक गंभीर समस्या सामने लानेवाले पाठक बिरेश कुमार जी को धन्यवाद. सवाल यह है कि आजकल पर्दे पर जो भी दिखाया जाता है, क्या वह फिल्म कहने के लायक है? कतई नहीं. नायक गाड़ी या फिर मोटरसाइकिल तेजी से चलाते हैं. ऐसी फिल्म में कहानी […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | June 26, 2015 5:38 AM
‘युवाओं को बिगाड़ रहा फिल्मी संगीत’ पत्र (24 जून) पढ़ा. एक गंभीर समस्या सामने लानेवाले पाठक बिरेश कुमार जी को धन्यवाद. सवाल यह है कि आजकल पर्दे पर जो भी दिखाया जाता है, क्या वह फिल्म कहने के लायक है?
कतई नहीं. नायक गाड़ी या फिर मोटरसाइकिल तेजी से चलाते हैं. ऐसी फिल्म में कहानी का ही पता नहीं होता, तो अच्छा गीत-संगीत कहां से आएगा? यो यो हनी सिंह, अंकित तिवारी, मीका सिंह जैसे लोग ही ‘गायक’ के रूप में सामने आयेंगे.
आजतक हम शैलेंद्र, हसरत, मजरूह सुल्तानपुरी, कैफी आजमी, साहिर, शकील, नीरज जैसे महान गीतकारों के गीत रफी साहब, किशोरदा, मन्नादा, मुकेशजी, लताजी, आशाजी, गीताजी, सुमनजी की आवाजों में सुनते आये हैं. जिन्हें शंकर-जयकिशन, लक्ष्मीकांत प्यारेलाल, मदन मोहन, नौशाद आदि रचते हैं.
अनिल राणो, पुणो

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