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शिक्षा के लिए समाज भी आगे आये

आज हमारा समाज शिक्षा के महत्व को समझने लगा है. वर्षो से हमारे देश में शिक्षा का अभाव रहा है. इसका कारण देश की आर्थिक स्थिति कमजोर होना है. शिक्षा ही नहीं, अन्य विकास कार्यो पर लोगों की सरकार पर निर्भरता सबसे बड़ी कमी है. शिक्षा प्रणाली को दुरुस्त करने के लिए सरकार पर निर्भर […]

आज हमारा समाज शिक्षा के महत्व को समझने लगा है. वर्षो से हमारे देश में शिक्षा का अभाव रहा है. इसका कारण देश की आर्थिक स्थिति कमजोर होना है. शिक्षा ही नहीं, अन्य विकास कार्यो पर लोगों की सरकार पर निर्भरता सबसे बड़ी कमी है. शिक्षा प्रणाली को दुरुस्त करने के लिए सरकार पर निर्भर रहने का अर्थ देश को आर्थिक तौर पर पीछे धकेलना है.
विकास के लिए सरकार के साथ निजी और सामाजिक संस्थानों को भी मदद करना होगा. जब जनता द्वारा इस प्रकार के स्वैच्छिक प्रयास किये जाते रहेंगे, तो भारत में भी दुनिया के अन्य देशों की तरह श्रेष्ठ शिक्षण संस्थान हो सकते हैं. आज हम रह सुविधा प्राप्त करने के लिए सरकार की ओर बाट जोहते हैं.
कोई भी व्यक्ति जोखिम उठाना नहीं चाहता है. सभी यही सोचते हैं कि जितनी आसानी से उन्हें अधिक से अधिक सुविधाएं प्राप्त हो जायें. भारत में अनेक कृषि विश्वविद्यालय हैं. सरकार सालाना उन पर करोड़ों रुपये व्यय करती है.
क्या ये कृषि विश्वविद्यालय अपने आसपास के इलाकों में नये अनुसंधानों के जरिये विकासपरक कार्य नहीं करवा सकते? यदि ये कृषि विश्वविद्यालय खुद को लोगों से जोड़ कर विकास कार्य नहीं करवा सकते, तो फिर इनका अनुसंधान और अन्य कार्य किस मतलब के? बात सिर्फ कृषि विश्वविद्यालय का ही नहीं है. झारखंड में कई बड़े-बड़े शिक्षण संस्थान हैं, जिसमें देश के उद्योगपतियों द्वारा सहयोग किया जा रहा है.
वे निजी तौर पर सहयोग करके शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार कर रहे हैं. इसी प्रकार यदि सरकारी शिक्षण संस्थानों में निजी सहयोग के जरिये मदद की जाये, तो शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार संभव है. देश के हर नागरिक को सरकार की बाट जोहने की आदत छोड़नी होगी.
सुजीत कुमार मांझी, मुरहू, खूंटी

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