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स्थानीयता पर क्यों नहीं बनती राय?

गत दिसंबर में झारखंड ने पहली बार पूर्ण बहुमतवाली सरकार देखी. छह माह में एक लाख नियुक्तियों का आश्वासन बेरोजगारों के लिए सपने से कम नही था, किंतु राजनीतिज्ञों व नीति निर्माताओं को ऐसे झूठे आश्वासन से बचना चाहिए. झारखंड की रूढ़ीवादी स्थानीय नियोजन नीति पर आज भी सामंजस्य स्थापित नहीं कर पा रहे हैं. […]

गत दिसंबर में झारखंड ने पहली बार पूर्ण बहुमतवाली सरकार देखी. छह माह में एक लाख नियुक्तियों का आश्वासन बेरोजगारों के लिए सपने से कम नही था, किंतु राजनीतिज्ञों व नीति निर्माताओं को ऐसे झूठे आश्वासन से बचना चाहिए. झारखंड की रूढ़ीवादी स्थानीय नियोजन नीति पर आज भी सामंजस्य स्थापित नहीं कर पा रहे हैं.

बिना वर्तमान नीतियों के कई योग्य अभ्यर्थी नियुक्तियों के लाभ से वंचित हैं. छत्तीसगढ़, बंगाल, बिहार, ओड़िशा आदि पड़ोसी राज्यों में नियोजन नीतियों को समावेशित का अद्यतन रूप में स्वीकार किया गया है. इनकी भौगोलिक, सांस्कृतिक, सामाजिक-आर्थिक व मानविकी स्थिति समान है. इसका सकारात्मक प्रभाव उन राज्यों में नियोजन के दृष्टिकोण से देखने को मिलता है. सवाल यह है कि आखिर झारखंड में इस पर लोगों की सहमति क्यों नहीं बन रही?

अंशु मोहन राय, जामताड़ा

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