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क्या इंसानियत नाम का कोई धर्म नहीं?
आये दिन समाचार पत्रों में धर्मातरण पर खबरें प्रकाशित की जाती हैं. ऐसी खबरों को पढ़ कर विचार आता है कि आखिर लोग धर्मातरण पर इतना जोर क्यों देते हैं? चाहे वह हिंदू, मुसलमान, इसाई या फिर अन्य धर्मावलंबी ही क्यों न हो, उसकी घर वापसी की बाती क्यों की जाती है? खबर आती है […]
आये दिन समाचार पत्रों में धर्मातरण पर खबरें प्रकाशित की जाती हैं. ऐसी खबरों को पढ़ कर विचार आता है कि आखिर लोग धर्मातरण पर इतना जोर क्यों देते हैं? चाहे वह हिंदू, मुसलमान, इसाई या फिर अन्य धर्मावलंबी ही क्यों न हो, उसकी घर वापसी की बाती क्यों की जाती है? खबर आती है कि इसाई धर्मगुरुओं ने धन का लालच दे या फिर जबरन फलाने का धर्म परिवतर्न करा दिया.
फिर खबर आती है कि हिंदू धर्मावलंबियों ने फलाने समुदाय के लोगों की घर वापसी करा दी. समझ में नहीं आता कि आखिर ऐसा क्यों? गरीब परिवार को सब्जबाग दिखा कर धर्म परिवतर्न करा दिया जाता है, तो क्या उसके भविष्य के साथ खिलवाड़ नहीं है? धर्म तो आखिर जीवन जीने का मात्र एक तरीका या रास्ता भर है. फिर इसे लेकर इतना हो-हल्ला क्यों मचाया जा रहा है? क्या इंसानियत कोई धर्म नहीं है?
सुजीत कुमार मांझी, मुरहू, खूंटी
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