राज्यों के चुनाव केंद्र की राजनीति

नरेंद्र मोदी भारतीय जनता पार्टी की तरफ से प्रधानमंत्री की गद्दी के दावेदार बनाये गये हैं. ऐसे में ‘सत्ता का सेमिफाइनल’ करार दिये जा रहे पांच राज्यों के चुनावों के मद्देनजर 29 सितंबर को दिल्ली में ‘भारत मां के शेर’ के गरजने की घोषणा के बाद आम लोगों से लेकर मीडिया और राजनीतिक दलों का […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 30, 2013 3:11 AM

नरेंद्र मोदी भारतीय जनता पार्टी की तरफ से प्रधानमंत्री की गद्दी के दावेदार बनाये गये हैं. ऐसे में ‘सत्ता का सेमिफाइनल’ करार दिये जा रहे पांच राज्यों के चुनावों के मद्देनजर 29 सितंबर को दिल्ली में ‘भारत मां के शेर’ के गरजने की घोषणा के बाद आम लोगों से लेकर मीडिया और राजनीतिक दलों का इस ‘शेर-गजर्न’ का इंतजार करना स्वाभाविक ही था.

बहरहाल, इस पूरी कवायद में जॉर्ज ऑरवेल की किताब ‘द एनिमल फार्म’ से पात्रों और प्रतीकों को खोजने की जगह नरेंद्र मोदी ने दिल्ली में जो कहा, उसका संदेश क्या निकला, उससे आनेवाले समय में राजनीति की कैसी तसवीर बनती नजर आयी, यह समझने और विचारने की जरूरत है. ऐसा इसलिए, क्योंकि नरेंद्र मोदी चाहे भोपाल में भाषण दे रहे हों, या दिल्ली के जैपनीज पार्क में, बात वे केंद्रीय राजनीति की करते हैं. कुछ इस यकीन के साथ कि पिछले दो दशकों में भारतीय राजनीति जिस पटरी पर चली है, अचानक वह उससे उतर कर दूसरी राह लेने को तैयार है.

हाल के दिनों में राज्य विधानसभा चुनाव के प्रचार के दौरान राष्ट्रीय मुद्दों को इतने जोर-शोर और आक्रामकता के साथ उठाये जाने के उदाहरण कम ही मिलते हैं. हकीकत यह है कि आज लोकसभा चुनावों को भी राज्य-दर-राज्य स्थानीय मुद्दों और क्षत्रपों के इर्द-गिर्द लड़ा जाता है. इस राजनीति को उलटते हुए नरेंद्र मोदी राज्य के चुनावों को भी केंद्र सरकार के खिलाफ जनादेश में तब्दील करने की रणनीति पर चल रहे हैं. दिल्ली की रैली में उन्होंने जिस तरह से मनमोहन सिंह और कांग्रेस के ‘शहजादे’ को आड़े हाथों लिया, जिस तरह सरकार की कमजोर विदेश नीति, देश के स्वाभिमान का सवाल उठाया, उसके आधार पर आनेवाले समय में उनके चुनाव अभियान के कट्टर राष्ट्रवाद की ओर मुड़ने का अंदाजा लगाया जा सकता है.

हाल के दिनों में हुई मोदी की रैलियों पर ध्यान दें, तो यह बात साफ जाहिर होती है कि वे राजनीति को अपने व्यक्तिगत करिश्मे के इर्द-गिर्द केंद्रित करना चाह रहे हैं. खुद भाजपा और संघ परिवार को भी मोदी से आनेवाले चुनावों में किसी करिश्मे की उम्मीद है. दिल्ली में मोदी की रैली का भी स्वर इससे अलग नहीं था. देखना यह है कि मोदी राजनीति की मौजूदा धारा को बदलने में कितने कामयाब हो पाते हैं!

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