मैं पर्यावरण का संरक्षक हूं, मैं पेड़ हूं

मुझे भी बाल्यावस्था, युवावस्था व वृद्धावस्था का एहसास है, पर तनिक भी घमंड नहीं है. मैं अकेले रहता हूं और समूह में भी. गांव, कस्बा, शहर, स्कूल, सड़क के किनारे, खेत, कब्रिस्तान, सरकारी-गैरसरकारी परिसर, घर कहीं भी रहने में मुझे कोई गुरेज नहीं है. जाड़ा, गरमी, बरसात, बहार और पतझड़ का स्वाद मुझे मालूम है. […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | June 30, 2015 5:25 AM
मुझे भी बाल्यावस्था, युवावस्था व वृद्धावस्था का एहसास है, पर तनिक भी घमंड नहीं है. मैं अकेले रहता हूं और समूह में भी. गांव, कस्बा, शहर, स्कूल, सड़क के किनारे, खेत, कब्रिस्तान, सरकारी-गैरसरकारी परिसर, घर कहीं भी रहने में मुझे कोई गुरेज नहीं है.
जाड़ा, गरमी, बरसात, बहार और पतझड़ का स्वाद मुझे मालूम है. मैं फलता-फूलता और मुरझाता भी हूं. मेरा स्वाद खट्टा, मीठा, तीखा, कसैला और नमकीन भी है. मेरा आकार एक जैसा नहीं है.
आवरण चिकना है, तो खुरदरा भी. मैं सीधा सरपट हूं, तो टेढ़ा-मेढ़ा भी. पशु-पक्षियों की हिफाजत करता हूं, औषधियों का खजाना हूं. मुझे लोग मारते-पीटते और काटते हैं, पर मैं चुप रहता हूं. देश-विदेश में मेरा व्यापार होता है. मैं साधन हूं, संसाधन हूं. पर्यावरण का संरक्षक हूं. मैं एक पेड़ हूं. मुझे संरक्षित करोगे, तो फल पाओगे.
वासुदेव महतो, रामगढ़ कैंट

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