इतने संवेदनहीन क्यों हो गये हम?
घटना रविवार की है. रात को लगभग आठ बजे एक महिला अपनी छोटी सी बच्ची को लेकर बूटी मोड़ स्थित अपने घर जा रही थी. एक तो रात का समय और ऊपर से भारी बारिश. ऐसे में वह जल्दी-जल्दी में एक ऑटोरिक्शा में बैठ कर अपने गंतव्य की ओर बढ़ने लगी. गाड़ी कोकर चौक से […]
घटना रविवार की है. रात को लगभग आठ बजे एक महिला अपनी छोटी सी बच्ची को लेकर बूटी मोड़ स्थित अपने घर जा रही थी. एक तो रात का समय और ऊपर से भारी बारिश.
ऐसे में वह जल्दी-जल्दी में एक ऑटोरिक्शा में बैठ कर अपने गंतव्य की ओर बढ़ने लगी. गाड़ी कोकर चौक से थोड़ा आगे बढ़ी होगी कि ऑटोवाले से एक काले रंग की ऑल्टो में हल्की टक्कर लग गयी. कार वाले से ऑटो चालक ने माफी मांगी. इतने में कार से एक और व्यक्ति निकला.
दोनों मिल कर ऑटो चालक को पीटने लगे. ऑटो चालक अपनी गलती मानते हुए बार-बार माफी मांगता रहा फिर भी दोनों ने उस पर कोई रहम नहीं की. वे उसे तब तक पीटते रहे, जब तक वह लहू-लुहान न हो गया. ऑटो में बैठी महिला भी ऑटोवाले को माफ कर देने की दुहाई मांगती रही.
यही नहीं, उसने आते-जाते वाहन चालकों से सुलह-मदद की भी अपील की, लेकिन किसी ने उसकी एक न सुनी. महिला की बच्ची डर से दुबक गयी. उस समय कुछ भी हो सकता था. शायद ऑटो चालक के गंभीर रूप से घायल होने के बाद महिला को अकेले घर जाना पड़ता. छेड़खानी, दुर्घटना या कुछ भी हो सकता था.
बच्ची या महिला को भी चोट लग सकती थी. इस घटना के बाद से अब तक मेरे मन में यही बात चल रही है कि आखिर हमारा समाज इतना संवेदनहीन क्यों हो गया है? जहां छोटी-छोटी बात पर लोग कमजोर पर हावी होने के लिए कानून को अपने हाथों में ले लेते हैं, वहीं गरीब-लाचार के घिरने पर आखिर कोई मदद को आगे क्यों नहीं आता?
मेहनत की कमाई से परिवार का भरण-पोषण करनेवाले ऑटो चालक ने कोई अपराध नहीं कर दिया था कि उसे इतनी बेरहमी से पिटाई की गयी. क्या लोगों के मन से कानून का डर खत्म हो गया है?
रूमा चक्रवर्ती, थड़पखना, रांची