कोलगेट और मनमोहन
सत्ता को ‘काजल की कोठरी’ कहा जाता है, क्योंकि वह होती तो लोक-कल्याण के लिए है, पर उसमें व्यक्तिगत स्वार्थ-साधन के भरपूर अवसर होते हैं. इसीलिए कहा यह भी जाता है कि इस कोठरी से किसी का बेदाग निकलना कठिन है. यूपीए-2 सरकार को जनकल्याण से ज्यादा घोटालों के लिए जाना गया. आखिरी सालों में […]
सत्ता को ‘काजल की कोठरी’ कहा जाता है, क्योंकि वह होती तो लोक-कल्याण के लिए है, पर उसमें व्यक्तिगत स्वार्थ-साधन के भरपूर अवसर होते हैं. इसीलिए कहा यह भी जाता है कि इस कोठरी से किसी का बेदाग निकलना कठिन है. यूपीए-2 सरकार को जनकल्याण से ज्यादा घोटालों के लिए जाना गया. आखिरी सालों में यह सरकार ‘काजल की कोठरी’ ही प्रतीत होने लगी.
परंतु, इस कोठरी से निकलने के बाद भी सरकार के मुखिया मनमोहन सिंह कहते रहे कि उन्होंने व्यक्तिगत हित को ध्यान में रख कर नहीं, बल्कि परिस्थितियों के अनुरूप फैसले लिये. यों मनमोहन के इस दावे को खारिज करना मुश्किल है, क्योंकि उनका सार्वजनिक व्यक्तित्व हमेशा ‘सादा जीवन-उच्च विचार’ वाला ही प्रतीत हुआ, फिर भी ऐसे तथ्य प्रकाश में आते रहे हैं, जिनसे उनकी स्वघोषित ईमानदारी पर सवाल उठे हैं.
नया मामला झारखंड के अमरकोंडा मुर्गादंगल कोयला ब्लॉक आवंटन घोटाले में आरोपी पूर्व कोयला राज्यमंत्री दसारी नारायण राव का है, जिन्होंने खुद का दामन पाक बताने की दलील में कहा है कि खदानों के आवंटन से जुड़े सभी फैसले कोयला मंत्रलय संभालने के कारण तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ही करते थे. पूर्व कोयला राज्यमंत्री के इस बयान के बाद फिर यह सवाल उठना लाजिमी है कि कर्तव्यों के निर्वहन में कोताही का जिम्मा किसका और राजकोष को हुए नुकसान का दोषी कौन है? सीएजी की रिपोर्ट में कहा गया था कि 2004 से 2009 के बीच केंद्र सरकार ने खदानों के आवंटन में अपने कर्तव्यों के निर्वाह में कोताही की, जिससे राजकोष में वांछित से काफी कम रकम मिली. शुरुआती रिपोर्ट में राजकोष का घाटा 10,673 अरब रुपये का बताया गया था. जब संसद में सीएजी की पूर्ण रिपोर्ट रखी गयी, तब भी यह रकम घटने के बावजूद 1,856 अरब रुपये की थी. मनमोहन सिंह ने तब कहा था कि सीएजी रिपोर्ट न आकलन में सही है, न ही आवंटन प्रक्रिया के दोष गिनाने में.
परंतु सीबीआइ द्वारा दर्ज एफआइआर में कहा गया कि खदान हासिल करनेवाली कंपनियों ने अपना मूल्यांकन बढ़ा-चढ़ा कर किया और छुपाया कि उन्हें पहले से खदान हासिल हैं. सीबीआइ ने खदानों के आवंटन में रिश्वतखोरी की आशंका भी जतायी. कोलगेट का पूरा सच न तो संसद की स्थायी समिति की रिपोर्ट से उजागर हुआ, न सीबीआइ की जांच से. इसलिए इसका पूरा सच बताने और दोषी को बेनकाब करने का एक जिम्मा मनमोहन सिंह का भी बनता है, लेकिन बड़ा सवाल यही है कि क्या वे ऐसा करने का साहस जुटा पायेंगे?