‘व्यापमं’ यानी भ्रष्टाचार का नंगा नाच

नाकाबिल छात्रों की जगह कोई और परीक्षा दे रहा था, परीक्षा कक्ष में खुल कर नकल करायी जा रही थी, पूरी कॉपी तक बाद में बदली जा रही थी. कहा जाता है कि 25 लाख से एक करोड़ रुपये के बीच में एमबीबीएस की सीट बिक रही थी. जिस तरह साल 2010 में 2जी मामले […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | July 2, 2015 6:17 AM

नाकाबिल छात्रों की जगह कोई और परीक्षा दे रहा था, परीक्षा कक्ष में खुल कर नकल करायी जा रही थी, पूरी कॉपी तक बाद में बदली जा रही थी. कहा जाता है कि 25 लाख से एक करोड़ रुपये के बीच में एमबीबीएस की सीट बिक रही थी.

जिस तरह साल 2010 में 2जी मामले ने यूपीए सरकार की अलोकप्रियता की बुनियाद डाली थी, लगभग उसी तरह मध्य प्रदेश का व्यापमं घोटाला भाजपा के गले की हड्डी बनेगा. लगता यह है कि अगले कुछ दिनों में शिवराज सिंह चौहान सरकार के लिए यह खतरे का संदेश लेकर आ रहा है. इसमें व्यक्तिगत रूप से वे भी घिरे हैं. अब जितना इस मामले को दबाने की कोशिश होगी, उतना ही यह उभरेगा. कांग्रेस और भाजपा दोनों इसे राजनीतिक समस्या मान कर चल रही हैं, जबकि यह देश की सड़ती प्रशासनिक व्यवस्था और भ्रष्ट राजनीति की पोल खोल रहा है. हैरत है कि हमारा हाहाकारी मीडिया इसे हल्के ढंग से ले रहा है. यह मामला दूसरी बार सुप्रीम कोर्ट में आया है और लगता है कि यहां से यह निर्णायक मोड़ लेगा.
इस मामले में अब तक तकरीबन दो हजार गिरफ्तारियां हो चुकी हैं, जिसमें पूर्व मंत्री, अधिकारी, अभिभावक और छात्र शामिल हैं. परेशान करनेवाली बात यह है कि मामले से जुड़े आरोपियों, गवाहों और ह्विसिल ब्लोवरों की मौत हो रही है. मृतकों की संख्या 25 से 43 के बीच बतायी जा रही है. कुछ का अनुमान है कि डेढ़ सौ से ज्यादा ऐसे लोग मर चुके हैं. लगातार होती मौतों का इशारा क्या है? इसको दबाने की कोशिश कौन कर रहा है? मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान पर दबाव बनाते हुए कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है कि उसकी निगरानी में मामले की सीबीआइ जांच हो.
दिग्विजय सिंह की दिलचस्पी राजनीति में है, पर जनता की दिलचस्पी खुले भ्रष्टाचार का भांडा फोड़ने में है. बेशक घोटाले की आंच भाजपा सरकार पर आयेगी, पर इसमें कांग्रेस से जुड़े लोग भी शामिल हैं. व्यापमं घोटाले ने शिक्षा, खासकर व्यावसायिक शिक्षा, और प्रतियोगिता परीक्षाओं में गहरे तक बैठी बेईमानी का पदार्फाश किया है. यह राष्ट्रीय प्रतिभा के साथ विश्वासघात है और खुल्लम-खुल्ला अंधेर है. सत्ताधारियों का यह देशव्यापी अंधेर है और इसका जल्द-से-जल्द निपटारा होना चाहिए. साफ बात है कि घोटाले की व्यापकता को देखते हुए प्रादेशिक पुलिस का विशेष दल इसकी जांच नहीं कर पायेगा. इस मामले में पुलिस, सिविल सेवा एवं न्यायपालिका के बड़े अधिकारियों और राजनेताओं का हाथ दिखायी पड़ रहा है, जो व्यवस्था के पेचों का फायदा उठा कर मामले को टालते चले जा रहे हैं.
जिस व्यवस्था पर आरोप है, उसके अधीन इस मामले की जांच कैसे होगी? इसके लिए स्वतंत्र जांच एजेंसी होनी चाहिए, जो हर तरह के सरकारी दबाव से मुक्त हो. यह मामला अंतत: अन्ना आंदोलन की इस मांग को सही साबित करेगा कि जांच एजेंसियों को सरकारी दबाव के बाहर होना चाहिए. इसके साथ ही देश में गवाहों और ह्विसिल ब्लोवरों की सुरक्षा को लेकर कड़े कदम उठाने की जरूरत भी रेखांकित होगी. एक ओर हम सत्येंद्र दुबे, एस मंजूनाथ और यशवंत सोनावणो जैसे लोगों की हत्याओं की खबरें सुनते हैं, तो दूसरी ओर ऐसे मामलों में गवाहों के संरक्षण की व्यवस्था तक नहीं है. आसाराम बापू प्रकरण में भी गवाहों की मौत से ऐसे ही सवाल खड़े हुए हैं. देशभर में हीरे, कोयले, पत्थर, रेत, प्राकृतिक संपदाओं से जुड़ी खानों का कारोबार माफियाओं के हाथों में है. वैसे ही जिस देश में शिक्षा अपराधियों के हाथ में चली जाये, उसके भविष्य की कल्पना की जा सकती है. इन अपराधियों के हाथ इतने लंबे हैं कि पूरी राज-व्यवस्था उनके सामने नत-मस्तक है.
मध्य प्रदेश का व्यावसायिक परीक्षा मंडल यानी ‘व्यापमं’ मेडिकल, इंजीनियरिंग, पुलिस, नापतोल इंस्पेक्टर आदि की प्रवेश परीक्षाएं लेता है. उसके बाद उनकी भर्ती होती है. यह व्यवस्था इसीलिए बनायी गयी है, ताकि सरकारी विभाग अनियमितता न बरतें और भर्ती की एक अलग व्यवस्था हो. पर इस व्यवस्था में ही छेद हैं. साल 2006 से इस संस्था के मार्फत होनेवाली भर्तियों और प्रवेश परीक्षाओं को लेकर शिकायतें आ रही थीं. 2013 में एक मामला सामने आने के बाद जब प्याज की जैसी परतें खुलीं, तब पता लगा कि काबिल छात्रों का गला दबा कर नाकाबिलों को भर्ती कराने का काम इतने बड़े स्तर पर है कि उसका ओर-छोर दिखायी नहीं पड़ता. पूरी व्यवस्था में नाकाबिल लोग पीछे के रास्ते प्रवेश कर चुके हैं. भविष्य की व्यवस्था कैसी होगी, आप इसका अनुमान लगा सकते हैं. पर केवल यही मामला नहीं है और न मध्य प्रदेश अकेला ऐसा राज्य है, जहां ऐसा होता रहा होगा.
2008 से 2013 के बीच प्रवेश परीक्षा में चुने जाने के बाद भर्ती हुए 2,200 डॉक्टर, छात्र और दूसरे लोग संदेह के घेरे में हैं. करीब 3,000 लोग आरोपी हैं. इनमें मुन्नाभाई टाइप छात्र, उनकी जगह परीक्षा देनेवाले, मां-बाप, राजनेता, बिजनेसमैन और दलाल शामिल हैं. अब तक दो हजार के आसपास गिरफ्तारियां हुई हैं. करीब 500-600 लोग फरार हैं. यह सिर्फ मेडिकल परीक्षा का मामला है. इंजीनियरी की प्रवेश परीक्षाओं के मामले तो खुलने बाकी हैं. शिवराज सिंह चौहान विधानसभा में स्वीकार कर चुके हैं कि एक हजार अवैध भर्तियां हुई हैं. जिन लोगों पर आरोप हैं, उनमें कई मंत्री, आइपीएस अधिकारी, राज्य पुलिस के अधिकारी, जज, राजनेता व उनके रिश्तेदार हैं. पूरी व्यवस्था पर काबिज लोग मिल कर मलाई काट रहे थे. नाकाबिल छात्रों की जगह कोई और परीक्षा दे रहा था, परीक्षा कक्ष में खुल कर नकल करायी जा रही थी, पूरी कॉपी तक बाद में बदली जा रही थी. कहा जाता है कि 25 लाख से एक करोड़ रुपये के बीच एमबीबीएस की सीट बिक रही थी.
यह तसवीर का एक पहलू है. दूसरा पहलू और ज्यादा भयावह है. यह है अपराध को छिपाने की कोशिश. इसके तहत अभियुक्तों, गवाहों और ह्विसिल ब्लोवरों की मौत. मामले की जांच कर रही स्पेशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) ने अदालत में माना है कि 23 आरोपियों की मौत हुई है. पिछले हफ्ते हुई दो और मौतों को जोड़ दें, तो यह संख्या 25 हो गयी. पर गैर-सरकारी स्नेत कहते हैं कि ज्ञात मौतें 43 हैं. जो जिंदा बचे हैं, वे लगातार दहशत में हैं कि किसके साथ कब, क्या हो जाये.
यह मामला केवल व्यावसायिक शिक्षा संस्थानों में भर्ती तक ही सीमित नहीं है, बल्कि राज्य सरकार की तकरीबन डेढ़ लाख नियुक्तियों से जुड़ा है, जिसके लिए एक करोड़ से ज्यादा लोगों ने अर्जी दी थी. हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चौटाला 130 अध्यापकों की नियुक्ति में हुई गड़बड़ियों की वजह से जेल में हैं. यह मामला उससे कहीं बड़ा है. यदि हम अपराधियों को सजा नहीं दे पाये, तो जनता के इस अंदेशे को बल मिलेगा कि ‘ऊपर बैठे सब लोग चोर हैं.’
प्रमोद जोशी
वरिष्ठ पत्रकार
pjoshi23@gmail.com

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