चुनावी समर में मुन्ना और चुन्ना
।।कुमार आशीष।। (प्रभात खबर, भागलपुर)यह अलग बात है कि देश की संसद में बैठा सबसे बड़ा ओहदेदार मौन है, लेकिन चुनावी बिगुल बजने से पहले ही गली–मोहल्ले में चुनावी स्टाइल शुरू हो गया है. गांव–जवार में छोटी–मोटी ठेकेदारी करनेवाला चुन्ना हो या नुक्कड़ पर गैराज चलानेवाला मुन्ना, इन लोगों के बतियाने का अंदाज भी बदल […]
।।कुमार आशीष।।
(प्रभात खबर, भागलपुर)
यह अलग बात है कि देश की संसद में बैठा सबसे बड़ा ओहदेदार मौन है, लेकिन चुनावी बिगुल बजने से पहले ही गली–मोहल्ले में चुनावी स्टाइल शुरू हो गया है. गांव–जवार में छोटी–मोटी ठेकेदारी करनेवाला चुन्ना हो या नुक्कड़ पर गैराज चलानेवाला मुन्ना, इन लोगों के बतियाने का अंदाज भी बदल गया है. मुहर्रम, ईद व होली के मौके (जब धंधा बुलंदी पर होता है) पर भी महंगाई का रोना रोनेवाले उस्मान दरजी के चेहरे पर आयी मुस्कुराहट इस बात का स्पष्ट संकेत दे रही है कि मुन्ना–चुन्ना के जरिये उनकी भी गाड़ी निकल पड़ी है. टेलर मास्टरों की दुकान सफेद लिबास सिलानेवालों से भरी लग रही है. लेकिन बिना किसी पर्व–त्योहार के ही आजकल जिस्म पर सफेदी चढ़ाने की होड़–सी मची हुई है. इस दौर में हमारे चुन्ना–मुन्ना भी पीछे नहीं है.
सफेद कुरता-पायजामा की जगह उन्होंने दूधिया सफेद जीन्स व शॉर्ट शर्ट चढ़ा ली है. चुनावी बिसात बिछी नहीं और वर्षो से नाले में बस चुके कीड़े-मकोड़ों की शामत आ गयी है. सफेद कुरता-पायजामा गंदा होने की फिक्र छोड़ छुटभैये नेता भी गांव की सड़क हो या शहर का ओवरब्रिज या फिर नाले सफाई की बात क्यों न हो, सबके लिए आवाज बुलंद कर रहे हैं. इतना हीं नहीं शादी-ब्याह का सीजन खत्म होने के बाद बेकार बैठे टेंट, लाइट और साउंड वालों की भी चांदी हो गयी है. आजकल जिधर देखिए न्याय यात्र, विकास यात्र, तेरी सभा, मेरी सभा, स्वराज्य सभा न जाने कौन-कौन-सी सभाएं शुरू हो चुकी हैं. अब ये सभाएं टेंट, लाइट और साउंड के बिना तो होंगी नहीं? आजकल हर तरफ आर्थिक मंदी की चिंता में बड़े-बड़े अर्थशास्त्री दुबले हुए जा रहे हैं.
ऐसे में चुनाव से पहली उसकी तैयारी मंदी भगाने का कारगर उपाय बन रही है. और अर्थव्यवस्था के तारनहार बन रहे हैं चुन्ना-मुन्ना. जो काम देश के बैंकों के मुखिया राजन भैया नहीं कर पा रहे हैं, वह काम चुन्ना-मुन्ना कर रहे हैं. वह इलाके के अनेक छोटे-बड़े नेताओं के एजेंट हैं. कोई भी चुनावी सभा, रैली, यात्र करानी हो, ये जुट जाते हैं. नेताओं का काला, पीला, हरा और न जाने किस-किस रंग का धन बाहर निकलवाते हैं. यह पैसा पेंटर, दरजी, टेंटवाले, परचा-पोस्टर छापनेवाले से लेकर बांस-बल्ली लगानेवाले मजदूरों तक पहुंचता है.
अभी पिछली ‘सभा’ में उसने राजू मालाकार को गेंदे की माला सप्लाई करने के लिए 5000 रुपये नकद दिया. इसी तरह से सभा के लिए वालंटियर बने लड़कों को तीन दिन तक भरपेट पूड़ी-सब्जी खिलवायी. जबकि घर में इन्हें प्याज के छौंक वाली सब्जी खाये कई दिन बीत चुके थे. जो वालंटियर मुन्ना-चुन्ना के करीबी थे, उनके लिए शाम को मुरगा के साथ 100 ग्राम का भी इंतजाम था. अब ‘आम जनता’ भी समझदार हो चुकी है, सभा में आने-जाने और ताली बजाने का पूरा खर्च वसूलती है.