क्या राजनीतिक दल सबक लेंगे?

।।विश्वनाथ सचदेव।। (वरिष्ठ पत्रकार)आखिर लालू प्रसाद चारा घोटाले में अपराधी घोषित हो ही गये. सीबीआइ की विशेष अदालत द्वारा लालू, जगन्नाथ मिश्र समेत 45 व्यक्तियों को अपराधी घोषित किये जाने को न्याय के रूप में दिखाया जा रहा है. यह बात गलत नहीं है, लेकिन पूरी तरह सही भी नहीं है. कहते हैं न्याय मिलने […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 2, 2013 3:15 AM

।।विश्वनाथ सचदेव।।

(वरिष्ठ पत्रकार)
आखिर लालू प्रसाद चारा घोटाले में अपराधी घोषित हो ही गये. सीबीआइ की विशेष अदालत द्वारा लालू, जगन्नाथ मिश्र समेत 45 व्यक्तियों को अपराधी घोषित किये जाने को न्याय के रूप में दिखाया जा रहा है. यह बात गलत नहीं है, लेकिन पूरी तरह सही भी नहीं है. कहते हैं न्याय मिलने में देरी का अर्थ न्याय का नकार है और यदि किसी मामले में न्याय करने में सत्रह साल लग जाएं तो इसे समय पर न्याय मिलना तो नहीं ही कहा जा सकता. फिर भी चारा घोटाले का यह निपटारा कहीं-न-कहीं इतना तो बताता ही है कि अपराधी भले ही कितना भी ताकतवर क्यों न हो, उसे दंडित किया जा सकता है- बशर्ते समाज और व्यवस्था दोनों ईमानदारी से अपराध का विरोध करें.

जैसा कि हर दल का राजनेता ऐसी स्थिति में कहना है कि उसे एक ‘राजनीतिक षड्यंत्र’ के तहत ‘बदनाम’ किया जा रहा है, लालू समर्थक भी कह रहे हैं. ऐसा नहीं है कि राजनीतिक विरोधी ऐसा नहीं कर सकते या नहीं करते, पर ढेरों राजनेताओं का इतिहास गवाह है कि राजनीतिक षड्यंत्र का तथाकथित कवच ये हमेशा पहने रखते हैं और यह मान कर चलते हैं कि उनका बाल भी बांका नहीं होगा. यह भी मान कर चलते हैं कि जनता की याददाश्त बहुत कमजोर होती है और वह राजनेताओं की आपराधिक पृष्ठभूमि को या तो भूल जाती है या फिर उसे कोई विशेष महत्व नहीं देती. लालू के समर्थकों ने घोषणा की है कि वे इस फैसले को ऊंची अदालत में चुनौती देंगे. सब ऐसा करते हैं और मानते हैं कि उनकी अपील के निर्णय तक वे अपराधी नहीं हैं. सार्वजनिक जीवन में शुचिता का यह तकाजा नहीं है, लेकिन तकनीकी कानूनी दृष्टि से शायद गलत भी नहीं है. लालू अपील कर सकते हैं. हो सकता है उन्हें निरपराध भी मान लिया जाये, लेकिन जब तक ऐसा नहीं होता, वे घोषित अपराधी हैं.

बहरहाल, बड़े से बड़े राजनेता को भी दंडित किया जा सकता है, यह बात सीबीआइ की विशेष अदालत ने सिद्ध कर दी है. अब सवाल उठता है कि हमारे राजनीतिक दल इस प्रकरण से क्या शिक्षा लेते हैं? क्या हम यह आशा कर सकते हैं कि वे अब आपराधिक पृष्ठभूमिवाले व्यक्तियों को अपना नेता नहीं बनायेंगे अथवा आनेवाले चुनावों में उन्हें टिकट नहीं देंगे? काश इस प्रश्न का उत्तर ‘हां’ में दिया जा सकता! राजनीतिक दलों का अब तक का इतिहास गवाह है कि अपराधी मुक्त राजनीति की बातें वे भले ही करते हों, पर जब राजनीति तथा नुकसान का गणित लगाया जाता है तो उम्मीदवारों के चयन में सबसे बड़ा तर्क उसकी जीत की संभावना होता है.

बाकी सारी बातें सिर्फ बातें ही रह जाती हैं. इसी के चलते हमने अकसर देखा है कि कोई राजनीतिक दल जिसे को अपराधी घोषित करते नहीं थकता था, वह व्यक्ति जब उस दल का सदस्य बन जाता है तो उसके सारे पुराने पाप अपने आप धुल जाते हैं. यही तर्क उल्टा भी लागू होता है. मसलन कल तक भाजपा बिहार में नीतीश सरकार का हिस्सा थी, आज सरकार से बाहर है, इसलिए नीतीश कुमार और बिहार सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोप लगा रही है.

लालू प्रसाद को अपराधी घोषित किये जाने के बाद भाजपा के एक प्रखर प्रवक्ता ने इसे लालू की अध्यक्षतावाले राजद के खिलाफ निर्णय बताया. वे भूल गये थे कि भाजपा का एक राष्ट्रीय अध्यक्ष भी बेईमानी करते हुए कैमरे पर पकड़ा गया था. कहने का अर्थ यह है कि अपराध को हमारी राजनीति में एक विशेष प्रकार की स्वीकार्यता प्राप्त है. राजनेता का अपराध सिर्फ तभी तक अपराध होता है, जब वह दूसरे दल का होता है.

जब अपराध और राजनीति के रिश्तों की बात आती है तो राजनीतिक दल अनायास एकजुट हो जाते हैं. सुप्रीम कोर्ट द्वारा अपराधी सांसदों-विधायकों के संदर्भ में दिये गये अपात्रता के फैसले में सारे देश ने देखा है कि लगभग सभी राजनीतिक दलों ने उस विधेयक का समर्थन किया है, जिससे कोर्ट के निर्णय को अप्रभावकारी बनाया जाना था. राजनीतिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए केंद्र सरकार ने जब विधेयक को अध्यादेश के रूप में लागू करना चाहा तो भाजपा ने इससे पल्ला झाड़ लिया. स्पष्ट है राजनीतिक हितों को देखते हुए ही भाजपा ने अध्यादेश का विरोध किया और कांग्रेस के युवराज ने भी हवा का रुख देखते हुए उस अध्यादेश को ‘बकवास’ और ‘फाड़ कर फेंक देने लायक’ घोषित पर दिया. यह राजनीतिक शुचिता का नहीं, राजनीतिक स्वार्थो का उदाहरण है.

वैसे, सत्ता की राजनीति में नैतिकता की दुहाई देना विशेष अर्थ नहीं रखता, फिर भी जनतंत्र में यह अपेक्षा तो की ही जानी चाहिए कि हमारे राजनेता, राजनीतिक दल बेईमानी की राजनीति करने में संकोच करें, अपराधियों को साथ जोड़ने में शर्म महसूस करें और जब किसी नेता को अदालत अपराधी घोषित करे तो उसके चेहरे पर थोड़ी-सी शर्म दिखे!

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