सांसदों की सैलरी और बापू की सीख

विवेक शुक्ला वरिष्ठ पत्रकार महात्मा गांधी ने लिखा था, ‘किसी को इस भय से अधिक वेतन देना कि यदि उसे बढ़ा हुआ वेतन न मिला तो वह भ्रष्ट हो जायेगा, यह उसी प्रकार से है जैसे कि भैंस को उसकी खाल लेने के लिए मार डालना. क्या किसी को कभी-कभार घूस लेने से रोकने के […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | July 4, 2015 5:33 AM

विवेक शुक्ला

वरिष्ठ पत्रकार

महात्मा गांधी ने लिखा था, ‘किसी को इस भय से अधिक वेतन देना कि यदि उसे बढ़ा हुआ वेतन न मिला तो वह भ्रष्ट हो जायेगा, यह उसी प्रकार से है जैसे कि भैंस को उसकी खाल लेने के लिए मार डालना. क्या किसी को कभी-कभार घूस लेने से रोकने के लिए जरूरी है कि उसे स्थायी रूप से भारी-भरकम पगार दे दी जाये.’ (नवजीवन, 26 जुलाई, 1931). बापू की यह राय आज भी उतनी ही प्रासंगिक है.

देश की जनता को अच्छे दिनों का सपना दिखानेवाले सांसद अब खुद के अच्छे दिनों के सपने देखने लगे हैं. इस समय सांसदों की सैलरी 50 हजार रुपये प्रति माह है. इसके अलावा उन्हें तमाम दूसरे भत्ते भी मिलते हैं. जल्द ही माननीयों की सैलरी दोगुनी होने के साथ-साथ पूर्व सांसदों के पेंशन में 75 फीसद का इजाफा हो सकता है.

संसद की एक संयुक्त समिति ने अपना प्रस्ताव सरकार के सामने पेश करते हुए कहा कि सरकारी कर्मचारियों की तरह सांसदों की सैलरी में समय-समय पर इजाफे के लिए ऑटोमेटिक पे रिवीजन मैकेनिजम होना चाहिए. एक तरफ सांसद और मंत्री देश की आम जनता को एलपीजी पर मिल रही सब्सिडी छोड़ने के लिए कह रहे हैं, दूसरी तरफ खुद को मिल रही सैलरी, भत्तों और सुविधाओं में इतना अधिक इजाफा चाहते हैं.

इससे पहले 2010 में सांसदों की सैलरी बढ़ी थी. तब वाम दलों के सांसदों को छोड़ कर बाकी सांसदों के भारी दबाव के आगे सरकार झुकी और उनका वेतन 16 हजार से बढ़ा कर 50 हजार कर दिया गया. भत्तों में भी भारी वृद्धि हुई. सांसदों की सैलरी और भत्तों पर संविधान सभा की 20 मई, 1949 को हुई बैठक में सांसदों को 750 से लेकर 1,000 रुपये प्रति माह पगार देने का प्रस्ताव आया था, पर उन्हें 300 रुपये प्रति माह देने पर ही एक राय बन सकी. इसके अलावा पहले संसद सत्र के दौरान सांसदों को रोज का भत्ता 45 रुपये तय हुआ, पर इसे बाद में अधिक माना गया और 40 रुपये कर दिया गया. 17 अक्तूबर, 1949 को मद्रास से सांसद वीआइ मुनाईस्वामी ने सांसदों को मिलनेवाले रोज के भत्ते में कमी का प्रस्ताव रखा, जिसे सदन ने मान लिया था.

अपनी पगार को बढ़ाने के लिए हमारे माननीय सांसद पूर्व में पेट्रोल के बढ़े हुए दामों से लेकर महंगाई और उनके क्षेत्रों के लोगों के लिए किये जानेवाले खर्चो समेत तमाम तर्क देते रहे हैं. इनमें दम हो सकता है, लेकिन उनकी तरह से अपने वेतन और भत्तों को बढ़ाने की मांग हो, उसे उचित नहीं माना जा सकता. पहले भी तो महंगाई थी और वे तमाम प्रतिकूल स्थितियां थीं जिसके चलते तब के सांसद बेहतर वेतन और भत्तों की मांग कर सकते थे. उन्होंने तब ऐसा नहीं किया था. आज के ज्यादातर सांसद जिस तरह की लक्जरी कारों में संसद पहुंचते हैं, उसे देख कर नहीं लगता कि भारत गरीब मुल्क है.

हालांकि अब भी हमारे कई सांसद सादगी भरा जीवन ही व्यतीत करना पसंद करते हैं. गांधी जी ने कहा था- ‘सार्वजनिक जीवन में सक्रिय लोगों को न्यूनतम वेतन लेना चाहिए. बस, इतना कि उनके जीवन की गाड़ी चलती रहे.’ लेकिन, बापू के आदर्शो की दुहाई देनेवाले आज के ज्यादातर सांसदों में उनकी सलाह मनाने की इच्छा नहीं दिखती.

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