माननीयों का वेतन
महंगाई के दौर में वेतन-भत्ते में वृद्धि की आकांक्षा तो सभी करते हैं, पर ऐसा करने का अधिकार उनके पास नहीं होता है. लेकिन, हमारे सांसदों और विधायकों को विशेषाधिकार है कि वे अपने वेतन एवं भत्तों में वृद्धि के लिए जब चाहें, समिति बना लें. केंद्रीय कर्मचारियों के वेतन-भत्तों में संशोधन छठे वेतन आयोग […]
महंगाई के दौर में वेतन-भत्ते में वृद्धि की आकांक्षा तो सभी करते हैं, पर ऐसा करने का अधिकार उनके पास नहीं होता है. लेकिन, हमारे सांसदों और विधायकों को विशेषाधिकार है कि वे अपने वेतन एवं भत्तों में वृद्धि के लिए जब चाहें, समिति बना लें. केंद्रीय कर्मचारियों के वेतन-भत्तों में संशोधन छठे वेतन आयोग की सिफारिशों के तहत 1 जनवरी, 2006 से हुआ था, जबकि सांसदों का वेतन करीब चार वर्ष पहले ही बढ़ा था.
कर्मचारियों के वेतन की समीक्षा के लिए सातवें वेतन आयोग का गठन कुछ माह पहले ही हुआ है, जिसकी सिफारिशें आने और सरकार द्वारा उसे मानने में अभी कई साल लग सकते हैं. दूसरी ओर जनप्रतिनिधियों के वेतन-भत्तों में वृद्धि के लिए गठित संसदीय समिति ने इसमें भारी वृद्धि की सिफारिश भी कर दी है. सिफारिशों में सांसदों का वेतन दोगुना करने और पूर्व सांसदों के पेंशन में 75 फीसदी वृद्धि के अलावा दैनिक भत्ते और यात्रा सुविधाएं बढ़ाने का सुझाव शामिल है.
यह सही है कि सांसदों का 50 हजार मासिक का मौजूदा वेतन अधिक नहीं है, पर इसमें भत्तों और अन्य सुविधाओं को जोड़ दें, तो यह किसी लिहाज से कम भी नहीं है. सांसदों को मुफ्त आवास, हर साल चार हजार किलोलीटर पानी, पांच हजार यूनिट बिजली और 50 हजार फोन कॉल की सुविधा भी मिली हुई है. उनके लिए प्रथम श्रेणी में रेल यात्रा और हवाई यात्रा ओं का भी प्रावधान है. संसद की कैंटीन में लगभग मुफ्त मिलनेवाले व्यंजनों का तो क्या कहना! दूसरी ओर, ताजा सरकारी आंकड़ों में कहा गया है कि देश में करीब 70 फीसदी ग्रामीण परिवार वंचितों की श्रेणी में हैं.
विश्व बैंक की हालिया रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत में प्रति व्यक्ति सकल वार्षिक राष्ट्रीय आय करीब 1.01 लाख रुपये है. ध्यान रहे, यह एक औसत आंकड़ा है, जिसमें वे 70 फीसदी लोग शामिल हैं जिनकी रोज की औसत आय करीब सौ रुपये ही है. सांसदों की तरह ज्यादातर राज्यों में विधायक भी बढ़िया वेतन पाते हैं, फिर भी संसद और विधानसभाओं की कार्यवाहियों में काम की बात कम, शोर ज्यादा सुनाई पड़ती है.
यह तय है कि सांसदों के वेतन में वृद्धि होते ही विधायक भी यह राह पकड़ेंगे. ऐसे समय में, जब आर्थिक संकट की आशंका जता कर कल्याणकारी योजनाओं के आवंटन में कटौती हो रही है, खुद प्रधानमंत्री मध्य वर्ग से रसोई गैस की सब्सिडी छोड़ने का आग्रह कर रहे हैं, माननीयों के वेतन में वृद्धि की ऐसी सिफारिशों को विडंबना ही कहा जायेगा. इनसे राजकोष पर पड़नेवाला बोझ अंत में आम लोगों की जेब पर भी पड़ेगा.