देश की नदियों का अस्तित्व खतरे में
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मुताबिक देश की 445 नदियों में से 275 नदियां प्रदूषित हैं. कश्मीर से कन्याकुमारी और गुजरात से असम तक देश के हर कोने में नदियां प्रदूषण के बोझ से दबी जा रही हैं. ऐसे में लगता है कि सरकार की नदी जोड़ो परियोजना भी निर्थक साबित होगी, क्योंकि नदियां अब […]
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मुताबिक देश की 445 नदियों में से 275 नदियां प्रदूषित हैं. कश्मीर से कन्याकुमारी और गुजरात से असम तक देश के हर कोने में नदियां प्रदूषण के बोझ से दबी जा रही हैं.
ऐसे में लगता है कि सरकार की नदी जोड़ो परियोजना भी निर्थक साबित होगी, क्योंकि नदियां अब सतत रूप से न तो प्रवाहित हो पा रही हैं और न ही उनमें अब जल धारण करने की क्षमता शेष है. ऐसे में साल के अधिकांश समय में नदियों में पानी की जगह रेत ही रेत दिखायी पड़े, तो ज्यादा आश्चर्य नहीं करना चाहिए.
देश के कुछ क्षेत्रों में नदियां ही पेयजल की मुख्य स्रोत हैं. ऐसे में प्रदूषित और सूखती नदियां कब तक उनकी प्यास बुझा पायेंगी, यह चिंता व चिंतन का विषय है. जब नदियां गाद-मलबे से लबालब भरी होगी तब वर्षा के दिनों में आसपास के क्षेत्रों में वह बाढ़ का भी कारण बनेगी.
राष्ट्रीय नदी हो या छोटी-बड़ी अन्य नदियां,सभी का अस्तित्व खतरे में है. इनमें श्रेष्ठ मानी जानेवाली प्राचीन नदी सरस्वती आज विलीन होकर इतिहास बन गयी. ऐसी और भी नदियां जिंदा रह कर मानव सृष्टि का साथ देने में अपनी असमर्थता जाहिर कर रही है.
झारखंड की दामोदर, जुमार, कारो, कोयल, शंख और स्वर्णरेखा भी प्रदूषण के मानक से ऊपर जा रही है. निश्चय ही इन नदियों का प्रदूषित जल न केवल जलीय जीवों के लिए घातक सिद्ध होगा, बल्कि यह भूजल के माध्यम से मानव शरीर में प्रवेश कर हमें अस्पताल की राह भी दिखाने वाला है.
नदियों का सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व है, जिसे भारतीयों से बेहतर कौन जान सकता है. नदियों की सफाई को लेकर सभी स्तरों पर दृष्टि का अभाव दिखता है.
सुधीर कुमार, गोड्डा