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जरा संभल के ‘मेक इन इंडिया’
डॉ भरत झुनझुनवाला अर्थशास्त्री बड़ी कंपनियों द्वारा ‘एनर्जी ऑडिट’ करा कर अपनी वार्षिक बैलेंस शीट पेश की जाती है. इसी तर्ज पर विदेशी कंपनियों के लिए अनिवार्य कर देना चाहिए कि वे बतायें कि कौन सी आधुनिक तकनीकें वे लेकर आयेंगी और कैसे उनका भारतीय कंपनियों को ट्रांसफर किया जायेगा. प्रधानमंत्री मोदी की ‘मेक इन […]
डॉ भरत झुनझुनवाला
अर्थशास्त्री
बड़ी कंपनियों द्वारा ‘एनर्जी ऑडिट’ करा कर अपनी वार्षिक बैलेंस शीट पेश की जाती है. इसी तर्ज पर विदेशी कंपनियों के लिए अनिवार्य कर देना चाहिए कि वे बतायें कि कौन सी आधुनिक तकनीकें वे लेकर आयेंगी और कैसे उनका भारतीय कंपनियों को ट्रांसफर किया जायेगा.
प्रधानमंत्री मोदी की ‘मेक इन इंडिया’ योजना कुछ रंग लाती दिख रही है. पिछले दिनों पांच बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने भारत में स्मार्ट फोन बनाने की मंशा व्यक्त की है. इनमें सोनी, लेनोवो, एप्पल प्रमुख हैं.
यूरोप की हवाई जहाज बनानेवाली प्रमुख कंपनी एयरबस ने भी ऐसी मंशा जतायी है. इसके विपरीत माइक्रोसॉफ्ट ने फिलहाल हाथ खींच रखे हैं. दिलचस्पी लेनेवाली कंपनियों मे अधिकतर स्मार्टफोन निर्माता हैं. दूसरे उद्योग जैसे स्टील, मेडिकल सामग्री, इलेक्ट्रिकल स्विचगेयर, दवाएं, चॉकलेट आदि के निर्माताओ में उदासी बनी हुई है. विश्व के मैन्यूफैरिंग बाजार में स्मार्टफोन का हिस्सा एक प्रतिशत से बहुत कम होने का अनुमान है.
ऐसे में बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा ‘मेक इन इंडिया’ में रुचि लेना ऐसे है कि किसान के किचन-गार्डन में रुचि लेना. मैन्यूफैरिंग के मूल में मेक इन इंडिया में प्रगति नहीं दिख रही है. फिर भी संभव है कि बहुराष्ट्रीय कंपनियों के आने से हमें आधुनिक तकनीकें मिलने लगेंगी, जो आर्थिक विकास की आधारशिला बन सकती हैं.
वैसे बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा आधुनिक तकनीकों को ट्रांसफर कम ही किया जाता है. ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के अध्ययन में पाया गया कि बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा तकनीकों का ट्रांसफर ऑटोमेटिक नहीं होता है.
विशेष दबाव बनाने पर ही ये तकनीकों का ट्रांसफर करती हैं. संयुक्त राष्ट्र की ऐजेंसी अंकटाड ने पाया कि बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा तकनीकों का ट्रांसफर मुख्यत: विकसित देशों के बीच ही होता है. जैसे अमेरिकी कंपनियों द्वारा फ्रांस में निवेश करने पर तकनीक का ट्रांसफर होता है, परंतु उसी कंपनी द्वारा भारत में निवेश करने पर तकनीक का ट्रांसफर नहीं होता है. विश्व बैंक के अध्ययन में पाया गया कि विदेशी निवेश के लाभ हासिल करने के लिए बहुराष्ट्रीय कंपनियों पर कुछ प्रतिबंध लगाना जरूरी है.
निष्कर्ष है कि उचित प्रतिबंधों के अभाव में तकनीकी ट्रांसफर नहीं होते हैं. यहां समस्या है कि प्रतिबंध लगायेंगे, तो बहुराष्ट्रीय कंपनियां आयेंगी ही नहीं. और नहीं लगायेंगे, तो तकनीकों का ट्रांसफर नहीं होगा और मेक इन इंडिया कुछ विदेशी कंपनियों तक सिमट कर रह जायेगा.
यहां चीन के अनुभव से समझते हैं. चीन ने बहुराष्ट्रीय कंपनियों का आवाहन किया और विश्व का मैन्यूफैरिंग हब बन गया. परंतु चीन की इस सफलता में बहुराष्ट्रीय कंपनियों के योगदान के विषय में संशय बना हुआ है. चीन में मैन्यूफैरिंग के विकास में घरेलू कंपनियों का भारी योगदान रहा है.
चीन की विकास दर में आ रही गिरावट में बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा प्रॉफिट तथा रायल्टी को स्वदेश भेजने की मुख्य भूमिका है. अत: चीन के मॉडल का अंधानुकरण नहीं करना चाहिए.
इस दृष्टि से मोदी द्वारा बहुराष्ट्रीय कंपनियों का खुला आवाहन करने पर पुनर्विचार करने की जरूरत है. विशेषकर, चूंकि इनके आगमन से देश को वित्तीय नुकसान ङोलना ही पड़ता है. बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा मेजबान देश में कमाये गये लाभ के बड़े हिस्से को अपने मुख्यालय भेज दिया जाता है. मुख्यालय से खरीदे गये कच्चे माल का दाम बढ़ा कर भी रकम को भेज दिया जाता है.
जैसे कोकाकोला द्वारा अमेरिका स्थित अपने मुख्यालय से कन्संट्रेट का आयात किया जाता है. इसका पेमेंट कोकाकोला इंडिया द्वारा कोकाकोला अमेरिका को किया जाता है. 100 रुपये के कन्संट्रेट का पेमेंट 1,000 रुपये किया जाये, तो 900 रुपये को गैरकानूनी तौर से भेज दिया जायेगा. इस रकम पर भारत को इनकम टैक्स नहीं मिलेगा. कोकाकोला का उत्पादन यदि भारतीय कंपनी द्वारा किया जाता, तो इन रकम को बाहर नहीं भेजना होता.
मोदी के सामने चुनौती है कि बहुराष्ट्रीय कंपनियों की तकनीकों को ट्रांसफर करा लें तथा रकम को बाहर भेजने पर रोक लगायें. बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा निवेश के प्रस्तावों पर भारत सरकार से स्वीकृति ली जाती है. मोदी को चाहिए कि इन प्रस्तावों के साथ ‘तकनीकी ऑडिट’ करने की शर्त लगायें.
वर्तमान में बड़ी कंपनियों द्वारा ‘एनर्जी ऑडिट’ करा कर अपनी वार्षिक बैलेंसशीट पेश की जाती है. इसी तर्ज पर विदेशी कंपनियों के लिए अनिवार्य कर देना चाहिए कि वे बतायें कि कौन सी आधुनिक तकनीकें वे लेकर आयेंगी और कैसे उनका भारतीय कंपनियों को ट्रांसफर किया जायेगा. इन प्रस्तावों को उद्योग मंत्रलय की वेबसाइट पर डाल देना चाहिए और स्वीकृति देने के पहले जन सुनवाई करनी चाहिए, जिससे इनके प्रभाव की जानकारी रखनेवाले उद्यमी तथा अर्थशास्त्री अपनी बात कह सकें.
इनकी बात का संज्ञान लेने के बाद सरकार निर्णय ले. ऐसा करने से भारत के तकनीकी उच्चीकरण में मोदी सफल होंगे. जर्मनी के साथ ग्रीन एनर्जी, फ्रांस के साथ हाइ स्पीड ट्रेन, कनाडा के साथ एटॉमिक रियेक्टर के समझौतों को भी इस प्रक्रिया के अंतर्गत लाना चाहिए, जिससे सही स्थिति की जानकारी जनता तथा सरकार को मिले. केवल राफेल जैसे रक्षा सौदों को इस प्रक्रिया से मुक्त किया जाना चाहिए.
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