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शिक्षकों की गुणवत्ता

माध्यमिक स्तर की शिक्षा के लिए प्राथमिक शिक्षा नींव का काम करती है और गुजरात में यह नींव वर्षो से खस्ताहाल है. मानव संसाधन विकास मंत्रलय की पिछले साल आयी रिपोर्ट में स्कूली शिक्षा तक बच्चों की पहुंच के मामले में गुजरात को 35 राज्यों में 33वां स्थान मिला था. नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ एजुकेशन प्लानिंग […]

माध्यमिक स्तर की शिक्षा के लिए प्राथमिक शिक्षा नींव का काम करती है और गुजरात में यह नींव वर्षो से खस्ताहाल है. मानव संसाधन विकास मंत्रलय की पिछले साल आयी रिपोर्ट में स्कूली शिक्षा तक बच्चों की पहुंच के मामले में गुजरात को 35 राज्यों में 33वां स्थान मिला था.

नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ एजुकेशन प्लानिंग एंड एडमिनिस्ट्रेशन ने भी अपनी रिपोर्ट में अपर प्राथमिक स्तर की शिक्षा तक बच्चों के पहुंच के मामले में गुजरात को 35 राज्यों के बीच 14वां, और शिक्षा की गुणवत्ता के मामले में 21वां स्थान दिया है. गुजरात में इस साल राज्य माध्यमिक शिक्षा बोर्ड से जुड़े कुल 183 स्कूलों का कोई भी विद्यार्थी दसवीं और बारहवीं की परीक्षा में उत्तीर्ण नहीं हो सका है.

तीन हजार से ज्यादा स्कूल ऐसे हैं, जहां माध्यमिक शिक्षा बोर्ड की परीक्षा पास करनेवाले विद्यार्थियों की संख्या तीस प्रतिशत से भी कम है. गुजरात के शिक्षा विभाग की सोच है कि विद्यार्थियों के परीक्षा परिणाम के खराब होने के दोषी शिक्षक हैं, सो वहां का शिक्षा विभाग शिक्षकों के वेतन की बढ़ोतरी पर रोक लगाना चाहता है. सरकारी स्कूलों में शिक्षा की स्थिति को देखते हुए यह फैसला राज्य की शिक्षा के लिए दूरगामी असर डालने वाला होगा. यह प्रथमदृष्टया असहजकारी लग सकता है, मगर भारत की शिक्षा व्यवस्था को ऐसे कठोर कदमों की जरूरत है.

बच्चे का रिजल्ट उम्मीद के उलट आये तो मां-बाप सबसे पहला दोष बच्चे को देते हैं, क्योंकि अभिभावक होने के नाते उनकी फटकार का दायरा बस बच्चे तक सीमित होता है. अगर ढेर सारे बच्चों का परीक्षा परिणाम खराब हो, तो फिर किसी एक बच्चे को दोषी नहीं करार दे सकते हैं. वेतन बढ़ोतरी रोकने का फैसला भारत के लिए नया हो सकता है, मगर कई देशों में ऐसे प्रावधान हैं, जहां शिक्षक की गुणवत्ता का फैसला विद्यार्थियों के हाथों में है. अगर परीक्षा में विद्यार्थी का प्रदर्शन बेहतर नहीं होता है, तो इसके लिए शिक्षक को जवाबदेह माना जाता है और उसकी उस वर्ष की इनक्रीमेंट रोक दी जाती है.

हाल ही में खबर आयी थी कि एक राज्य के एक स्कूली शिक्षक को गाय पर लेख लिखने को कहा गया तो वह नहीं लिख पाया. एक स्कूल में एक शिक्षक गवर्नमेंट की स्पेलिंग नहीं लिख सका. ऐसे शिक्षक किसी एक राज्य में नहीं हैं. नि:संदेह शिक्षकों के विरुद्ध कोई भी कड़े कदम उठाने से पहले सरकार को अपने शिक्षकों की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए प्रशिक्षित करना होगा और उन्हें संसाधन-संपन्न भी बनाना होगा.

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