संस्थाओं पर नियंत्रण
नोबेल पुरस्कार से सम्मानित अर्थशास्त्री प्रोफेसर अमर्त्य सेन ने कहा है कि नालंदा स्थित अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय से उनका बाहर होना अकेला मामला नहीं है, बल्कि मोदी सरकार द्वारा अकादमिक संस्थाओं पर सीधे नियंत्रण के व्यापक प्रयासों का ही एक हिस्सा है. नालंदा विवि के कुलाधिपति पद से ‘हटाये गये’ प्रोफेसर सेन के बयान में निहित […]
नोबेल पुरस्कार से सम्मानित अर्थशास्त्री प्रोफेसर अमर्त्य सेन ने कहा है कि नालंदा स्थित अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय से उनका बाहर होना अकेला मामला नहीं है, बल्कि मोदी सरकार द्वारा अकादमिक संस्थाओं पर सीधे नियंत्रण के व्यापक प्रयासों का ही एक हिस्सा है.
नालंदा विवि के कुलाधिपति पद से ‘हटाये गये’ प्रोफेसर सेन के बयान में निहित उनकी मंशा पर भले बहस की गुंजाइश हो, लेकिन अकादमिक संस्थानों में केंद्र के बढ़ते दखल पर जाने-माने बुद्धिजीवियों की ओर से लगातार चिंता जतायी जा रही है. सरकारें पहले भी संस्थाओं में अपनी विचारधारा के समर्थक लोगों को नियुक्त करती रही हैं, लेकिन शायद ऐसा पहली बार है कि इन नियुक्तियों में योग्यता, अनुभव और विशिष्ट योगदान जैसे महत्वपूर्ण कारकों की भी अनदेखी हो रही है. यह किसी एक संस्थान तक सीमित नहीं है, केंद्रीय विश्वविद्यालयों से लेकर पेशेवर संस्थानों, सरकारी ट्रस्टों और विभिन्न अकादमियों तक हर जगह हो रहा है.
मोदी सरकार द्वारा की गयी ज्यादातर अकादमिक नियुक्तियां विवादों में घिरी हैं. भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद् के अध्यक्ष पद पर ऐसे ‘इतिहासकार’ को बिठाया गया है, जिन्होंने अपने अकादमिक जीवन में किसी प्रतिष्ठित शोध-पत्रिका में एक भी आलेख नहीं लिखा है. नेशनल बुक ट्रस्ट के पूर्व प्रमुख को कार्यकाल पूरा होने के सात महीने पहले ही हटा दिया गया.
दिल्ली स्थित भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान के निदेशक ने सरकारी हस्तक्षेप से क्षुब्ध होकर इस्तीफा दे दिया और इस संस्थान की मुंबई इकाई के बोर्ड प्रमुख ने सार्वजनिक रूप से अपनी नाराजगी जाहिर की थी. भारतीय सांख्यिकी संस्थान के प्रमुख को सीधे बर्खास्त कर दिया गया. प्रतिष्ठित भारतीय प्रबंधन संस्थान के निदेशक की सीधी नियुक्ति के अधिकार के लिए सरकार ने एक विधेयक ही प्रस्तावित कर दिया है.
उच्च शिक्षा की संस्थाएं वैधानिक रूप से स्वायत्त होती हैं, लेकिन केंद्रीय मानव संसाधन मंत्रलय ने इन संस्थाओं को निर्देश दिया है कि किसी विदेशी संस्था से समझौते से पहले उन्हें मंत्रलय की मंजूरी लेनी होगी. ऐसे निर्देश को उनकी स्वायत्तता में सीधा हस्तक्षेप माना जा रहा है.
पुणो स्थित फिल्म एवं टेलीविजन संस्थान और बाल फिल्म सोसायटी में प्रमुख के रूप ऐसे अभिनेताओं की नियुक्तियां हुई हैं, जिनका कोई उल्लेखनीय काम नहीं रहा है. उच्च शिक्षा के संस्थान किसी भी देश के विकास के आधार-स्तंभ होते हैं. उनकी दशा और दिशा में बेहतरी की कोशिश के बजाय सरकार का यह रवैया आत्मघाती हो सकता है.