क्या 2014 के आम चुनाव में कांग्रेस को अपनी करारी हार का जरा भी आभास था? उसे प्रति राज्य दो के औसत से भी कम सीटें मिलीं. विपक्ष के नेता पद के दावे की भी मोहताज हो गयी. इस शर्मनाक हार का प्रमुख कारण था- भ्रष्टाचार, नेताओं का अहंकार और शीर्ष नेताओं में नेतृत्व क्षमता का अभाव.
भाजपा की जीत का प्रमुख कारण कांग्रेस की उक्त कमजोरियों के साथ, निस्संदेह मोदी फैक्टर भी था. मोदी जी ने अपने करिश्माई व्यक्तित्व, मोहक भाषणों और नवयुवकों जैसी ऊर्जा से देश को सम्मोहित कर डाला. वे जानते थे कि इन 64 वर्षो में मतदाताओं की एक नयी पीढ़ी आ चुकी है. तदुनासर उन्होंने मतदाताओं को संबोधित किया, नये नारे गढ़े, नये सपने दिखाये.
फिर क्या था! सारा देश मोदीमय हो गया और भाजपा की जीत सुनिश्चित हो गयी. चुनाव जीतने के बाद जब मोदी जी ने संसद की सीढ़ियों पर माथा टेका था, तब सारा देश मोदी के सम्मोहन के ज्वर से पूरी तरह तप रहा था. चुनाव जीतना आसान नहीं है. लेकिन उससे भी कहीं अधिक मुश्किल है, जनता का विश्वास कायम रखना. विगत लोकसभा चुनाव के दौरान मोदी जी ने जनता विकास का जो सपना दिखाया था, अब दरकने लगा है. राज्य से लेकर केंद्र तक के उनके मंत्रियों पर तमाम आरोप लग रहे हैं. विपक्षी पार्टियां चीख रही हैं.
मीडिया नये-नये तथ्य उजागर कर रहा है. ऐसी स्थिति में मोदी जी का मौन, जो उनके स्वभाव और चरित्र के प्रतिकूल है, जो सबको हैरान और परेशान करता है. क्या सचमुच मोदी किंकर्तव्यविमूढ़ता की स्थिति मे आ गये हैं? अगर ऐसा है तो यह देश के लिए अच्छा संकेत नहीं है. शायद नयी पीढ़ी में इतना धैर्य नहीं है, इसलिए समय अब भी है. जनता से किये वादे पूरे कीजिए मोदी जी!
अंबिका दास, ई-मेल से