प्राकृतिक संसाधनों के क्षरण को रोकें

हम प्रकृति द्वारा निर्मित वातावरण में निवास करते हैं, जहां हवा, जल समेत धरती और उसमें मौजूद भौतिक तत्व और जीव प्रकृति के अभिन्न अंग हैं. अक्ष पर टिकी पृथ्वी की स्थिति और गति की विशिष्टता ने हमें पर्यावरण के विभिन्न रूपों और मौसमों से परिपूर्ण वातावरण दिया है. 21वीं सदी के आते-आते मनुष्य ने […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | July 10, 2015 1:52 PM

हम प्रकृति द्वारा निर्मित वातावरण में निवास करते हैं, जहां हवा, जल समेत धरती और उसमें मौजूद भौतिक तत्व और जीव प्रकृति के अभिन्न अंग हैं. अक्ष पर टिकी पृथ्वी की स्थिति और गति की विशिष्टता ने हमें पर्यावरण के विभिन्न रूपों और मौसमों से परिपूर्ण वातावरण दिया है.

21वीं सदी के आते-आते मनुष्य ने अपने आविष्कारों से प्रकृति के विकासक्रम में गुणात्मक परिवर्तन ला दिया है. इस आधुनिक युग में विज्ञान और प्रौद्योगिकी के अभूतपूर्व प्रति ने न केवल हमारे लीवन को सरल बना दिया है, बल्कि प्राकृतिक आपदाओं, प्राणघातक महामारियों, जटिल रोगों आदि की रोकथाम की दिशा में व्यापक सफलता हासिल करने का जरिया भी दिया है. इस आधुनिक विकास ने जीवन को सरल बनाने की दिशा में जितना अधिक बेहतर काम किया है, उसने उससे कहीं अधिक प्रकृति के नियमों में दखल देना भी शुरू कर दिया है.

उसकी इस प्रकार की दखल से पृथ्वी को सूर्य की जहरीली किरणों से रक्षा करनेवाली ओजोन परत को भी नुकसान पहुंचाना शुरू कर दिया है. विभिन्न प्रकार की प्राद्योगिकी और विलासिता की वस्तुओं की खोज ने हमारी प्राकृतिक परतों को नुकसान पहुंचाना शुरू कर दिया है. इतना ही नहीं, कृषि उपजों को बढ़ाने के लिए हम रासायनिक खादों का धड़ल्ले से प्रयोग करते हैं, लेकिन ये रासायनिक खाद हमारी मृदा की स्वत: उर्वरता को बर्बाद करने में अहम भूमिका निभाते हैं. इनके बदले यदि हम जैविक खादों का प्रयोग करते हैं, तो उससे भूमि की उर्वरता बढ़ती ही है. उद्योग के लिए स्थापित कारखानों ने वायु प्रदूषण को बढ़ाने में अहम भूमिका निभायी है. आज जरूरत इस बात की है कि हम प्राकृति संसाधनों के क्षरण और प्रदूषण को रोकें.

अनुराग मिश्रा, पिस्का मोड़, रांची

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