प्रेम संवाद, नयी उपमाओं के साथ-3
तबीयत मनमोहन सिंह की तरह पिटी, पर डटी हुई थी. मिजाज ‘देहाती औरत’ की तरह चिड़चिड़ा हो रहा था, पर ‘शरीफों’ की तरह इसका इजहार होने नहीं दे रहा था. पर तुम्हारा फोन आते ही दिल राहुल गांधी की तरह ‘दबंग’ हो गया है (यूं समझो कि ‘धूम-3’ से पहले ‘दबंग-3’ वाला मामला बन गया […]
तबीयत मनमोहन सिंह की तरह पिटी, पर डटी हुई थी. मिजाज ‘देहाती औरत’ की तरह चिड़चिड़ा हो रहा था, पर ‘शरीफों’ की तरह इसका इजहार होने नहीं दे रहा था.
पर तुम्हारा फोन आते ही दिल राहुल गांधी की तरह ‘दबंग’ हो गया है (यूं समझो कि ‘धूम-3’ से पहले ‘दबंग-3’ वाला मामला बन गया है). अब यह गरज सकता है, बरस सकता है और जरूरत पड़ने पर बिजली भी गिरा सकता है (जैसे अभी-अभी लालू और रशीद मसूद पर गिरी है). बिल्कुल रांची के बादलों की तरह. काश! तुम्हारे पिताजी को भी उसी तरह सद्बुद्धि आ जाती, जैसे मोदी जी को अब आयी है (इनसान जब जागे तभी सवेरा.
जयराम रमेश को ‘शौचालय ज्ञान’ पहले प्राप्त हो गया, तो इसका मतलब यह नहीं कि वह ज्यादा समझदार हैं). अगर आडवाणी जी भी देवालय से पहले शौचालय की जरूरत समझ गये होते थे, तो वह राम मंदिर के लिए रथयात्र पर निकलने के बजाय बिंदेश्वर पाठक की तरह या उनके साथ सुलभ शौचालय अभियान चला रहे होते और बेवजह मोदी-घोष में दोष नहीं ढूंढ़ रहे होते. तुम्हारे पिता जी पिछले तीन सालों से रट बांधे हुए हैं कि मिश्र लड़की की शादी यादव लड़के के साथ नहीं हो सकती, पर अब तो उन्हें अपना सुर बदल लेना चाहिए. अरे भाई, जब एक ही मामले में जगन्नाथ मिश्र और लालू प्रसाद यादव साथ-साथ सजा काट सकते हैं, तो फिर हमारी शादी क्यों नहीं हो सकती?
तुम्हारा प्रेमपत्र ‘दागी अध्यादेश’ की तरह फाड़ कर फेंक देने लायक है. जब देखो, सिर्फ शिकवा-शिकायत. प्यार-मोहब्बत की बातें तो ऐसे गायब हो गयी हैं जैसे मजदूर-किसान की थाली से प्याज. मैं तुमको कैसे भरोसा दिलाऊं कि हमारी शादी होना उतना ही तय है, जितना नीतीश कुमार और कांग्रेस के बीच गंठजोड़ होना. रही बात पिताजी की, तो वह मानने को तैयार बैठे हैं, बस अपनी पुरानी जिद को ‘आधार’ की तरह निराधार हुआ नहीं देखना चाहते. इसलिए ‘सुरक्षित निकास’ तलाश रहे हैं, जैसे ओबामा ने सीरिया में तलाशा है.
चिंता मत करो, मेरे पुतिन! रास्ता निकलेगा. पिताजी आखिर कितने दिन इंतजार करायेंगे? वह कोई सचिन तेंडुलकर तो हैं नहीं कि दुनिया उनके रिटायर होने का इंतजार करती रहे और वह बल्ले से ऐसे चिपके रहें जैसे दिग्विजय सिंह के बयानों से विवाद चिपके रहते हैं. और हां, मजे की बात यह है कि जब से ‘बुलेट राजा’ का ट्रेलर रिलीज हुआ है, उनके अंदर का ब्राह्नाण कुछ ज्यादा ही जाग गया है. बात-बात पर ‘ब्राह्नाण भूखा तो सुदामा.. समझा तो चाणक्य.. और रूठा तो रावण’ का डायलॉग चिपका दे रहे हैं. लेकिन यह सब बस कहने को है, मन में चाह तो सतीश्र मिश्र बनने की है. वाह रे सियासत! पिताजी को हमारी शादी पर आपत्ति है, पर शंख बजा कर ‘हाथी’ को आगे बढ़ाने से गुरेज नहीं.
सत्य प्रकाश चौधरी
प्रभात खबर, रांची
satyajournalist@gmail.com