चीन के दुराग्रह और रूसी रवैये के सबक
अवधेश कुमार वरिष्ठ पत्रकार चीन ने जकीउर रहमान लखवी के संबंध में अपने भारत-विरोधी रवैये को सही ठहराया है. इस मामले पर चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से बातचीत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कड़े ऐतराज का बीजिंग पर तत्काल असर नहीं हुआ है. मोदी-जिनपिंग मुलाकात के ठीक अगले दिन चीन ने कहा कि तथ्यों के […]
अवधेश कुमार
वरिष्ठ पत्रकार
चीन ने जकीउर रहमान लखवी के संबंध में अपने भारत-विरोधी रवैये को सही ठहराया है. इस मामले पर चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से बातचीत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कड़े ऐतराज का बीजिंग पर तत्काल असर नहीं हुआ है. मोदी-जिनपिंग मुलाकात के ठीक अगले दिन चीन ने कहा कि तथ्यों के आधार पर ही उसने संयुक्त राष्ट्र प्रतिबंध समिति में भारतीय प्रस्ताव के खिलाफ वीटो किया.
चीनी विदेश मंत्रलय की प्रवक्ता हुआ चुनइंग के शब्द थे- ‘सुरक्षा परिषद् का स्थायी सदस्य होने के नाते चीन प्रस्ताव संख्या 1267 के उल्लंघन के मुद्दे पर तथ्यों के आधार पर ही निष्पक्षता से कदम उठाता है.’ हालांकि चुनइंग ने दोनों नेताओं के बीच मुलाकात को बेहद रचनात्मक बताया है. उन्होंने यह भी माना कि भारत और चीन, दोनों ही देश आतंकवाद के सताये हैं और चीन हर तरह के आतंकवाद का विरोध करता है.
भारत ने संयुक्त राष्ट्र की प्रतिबंध संबंधी समिति में प्रस्ताव पेश कर लखवी को रिहा करने के लिए पाकिस्तान के खिलाफ कार्रवाई की मांग की थी.
सुरक्षा परिषद् का स्थायी सदस्य होने के नाते चीन ने भारत के प्रस्ताव का विरोध कर दिया. खबरों के अनुसार, प्रधानमंत्री ने चीनी राष्ट्रपति से बातचीत में चीन के इस तर्क को खारिज किया था कि भारत ने जो सबूत दिये वे कमजोर थे. विदेश सचिव एस जयशंकर ने कहा कि लखवी के लिए पाकिस्तान को बचाने की बात अंतरराष्ट्रीय पटल पर चीन को अच्छे रूप में नहीं दर्शाती है. यह मामला सबूत का है ही नहीं. सबको पता है कि लखवी की भूमिका क्या है. बावजूद इसके चीन अपने कदम का बचाव कर रहा है, तो इसका एक ही कारण है, पाकिस्तान में निहित उसके हित.
इस पर आगे बढ़ने से पहले हम पिछले छह जुलाई को रूस की ऐसी ही भूमिका पर चर्चा कर लें. आतंकवाद को होनेवाले वित्तपोषण पर ब्रिस्बेन में आयोजित सम्मेलन में भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ निंदा प्रस्ताव लाया था, जिसका रूस ने विरोध कर दिया. भारत के लिए रूस का विरोध विशेष चिंता का विषय है. कारण, रूस अनेक मुद्दों पर भारत के साथ रहा है.
माना जा रहा है कि रूस इस समय पाकिस्तान से इसलिए अच्छे संबंध चाहता है, क्योंकि उसे अफगानिस्तान में ड्रग के कारोबार से लेकर आतंकवादियों से मुकाबले के लिए पाकिस्तान की जरूरत होगी. कारण जो भी हो, रूस और चीन का आतंकवाद पर पाक के पक्ष में खड़ा होने का यह व्यवहार भविष्य के लिए गहरा सबक है.
यदि संयुक्त राष्ट्र समिति में प्रस्ताव पारित हो जाता तो भी क्या अंतर आता? इससे पाकिस्तान फिर से तो लखवी को जेल में डालता नहीं. लखवी की रिहाई का अमेरिका ने भी कड़ा विरोध किया था, लेकिन हुआ कुछ नहीं. अमेरिका भी एक सीमा से आगे पाकिस्तान के खिलाफ नहीं जा सकता.
यानी सैद्धांतिक तौर पर आतंकवाद को लेकर एकजुटता के वायदे हो सकते हैं, कुछ सामान्य हितों के संदर्भ में सामूहिक कदमों के प्रति सहमति भी हो सकती है, लेकिन जहां तक भारत में पाकिस्तान से आयातित आतंकवाद का प्रश्न है, इसका मुकाबला भारत को अपने स्तर और अपने तरीके से ही करना होगा.