जरूरी है शराबबंदी

महिलाओं की स्वतंत्र पहलकदमी से नयी उम्मीद पैदा हुई है. उनके संघर्ष ने इस सवाल को सतह पर ला खड़ा किया है कि शराबबंदी क्यों जरूरी है? इस सच्चाई को भला कौन नकार सकता है कि शराब की पहुंच शहर और गांवों में जैसे-जैसे बढ़ी है, उसने परिवारों को तोड़ना शुरू कर दिया है. सामाजिक […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | July 11, 2015 5:50 AM

महिलाओं की स्वतंत्र पहलकदमी से नयी उम्मीद पैदा हुई है. उनके संघर्ष ने इस सवाल को सतह पर ला खड़ा किया है कि शराबबंदी क्यों जरूरी है? इस सच्चाई को भला कौन नकार सकता है कि शराब की पहुंच शहर और गांवों में जैसे-जैसे बढ़ी है, उसने परिवारों को तोड़ना शुरू कर दिया है.

सामाजिक स्तर पर संबंधों को तोड़ने की हद तक पहुंचाने में शराब की बड़ी भूमिका साबित हो चुकी है. गांव-गांव में शराब बिकने लगी, तो वहां आहिस्ते-आहिस्ते रिश्तों की मर्यादाओं पर नशे की उद्दंडता भारी पड़ने लगी. लोक-लाज का पानी उतरने लगा. परिवार टूटने लगे. आमदनी का अच्छा-खासा हिस्सा शराब पर खर्च होने से घर अशांत होने लगे.

शराब की खपत बढ़ी, तो बीमारों की तादाद भी बढ़ने लगी. एक अध्ययन के मुताबिक, शराब के चलते कुपोषण की रफ्तार बढ़ जाती है. कुपोषण का शिकार न सिर्फ शराब का सेवन करनेवाला होता है, बल्कि उस परिवार के सदस्य भी इसकी चपेट में आ जाते हैं. शराब के पक्ष में एक अजीबोगरीब तर्क यह दिया जाता है कि इससे सरकार के राजस्व में वृद्धि होती है. लेकिन, इसका दूसरा पक्ष यह है कि शराबजनित बीमारियों के इलाज पर उसे बड़ी धनराशि खर्च करनी पड़ती है. आखिर ऐसा राजस्व किस काम का? इसमें कोई सुबहा नहीं कि परोक्ष रूप से शराब का सबसे ज्यादा कुप्रभाव बच्चों और महिलाओं पर पड़ता है. इसे पीता कोई है, भुगतता कोई और है.

सच्चाई है कि शराब पीनेवाले बढ़े, तो महिलाओं के साथ बात-बात पर मारपीट की शिकायतें आम हो गयीं. दारू के लिए गहना-गुरिया, बर्तन वगैरह बेचने पर उतारू दारूबाजों से परेशान महिलाओं ने मोरचा खोल दिया. आमतौर पर घर की देहरी में रहनेवाली महिलाओं का शराब के खिलाफ मोरचा खोलना असाधारण है. हिंदी पट्टी के कई राज्यों के सुदूरवर्ती इलाकों में जहां-तहां महिलाएं शराब की भट्ठियों के खिलाफ उतर आयीं. इस दौरान उन्हें निशाना भी बनाया गया. उनके खिलाफ साजिशें रची गयीं.

शराब के कारोबारियों, बिचौलियों और व्यवस्था के अंग बने कुछ लोभियों ने उनके आंदोलन को खत्म करने की कोशिश की, पर महिलाओं का दमखम कम नहीं हुआ. खास बात यह है कि उनकी यह पहल स्वत:स्फूर्त रही. कई जगहों पर उन्होंने शराब भट्ठियों पर हमला कर दिया. उनका यह गुस्सा अनायास नहीं था. शराब उनके जीवन में जहर घोल रही है, इसीलिए वे इससे मुक्ति चाहती हैं. बेहतर परिवार और समाज की रचना के लिए शराबबंदी क्या जरूरी नहीं है?

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