भ्रष्टाचार का कतल हो गया!

चंचल सामाजिक कार्यकर्ता नवल उपधिया ने रुख बदलने की कोशिश की. सुना है बिहार में भी हांका लगने जा रहा है. चिखुरी ने घुड़की दी- नवल वह बिहार है, काठ की हांड़ी एक ही बार चढ़ती है. बात पूरी होने के पहले ही कयूम मियां उठ कर भागे.. ‘देश से भ्रष्टाचार खत्म हो गया.’ यह […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | July 11, 2015 5:51 AM
चंचल
सामाजिक कार्यकर्ता
नवल उपधिया ने रुख बदलने की कोशिश की. सुना है बिहार में भी हांका लगने जा रहा है. चिखुरी ने घुड़की दी- नवल वह बिहार है, काठ की हांड़ी एक ही बार चढ़ती है. बात पूरी होने के पहले ही कयूम मियां उठ कर भागे..
‘देश से भ्रष्टाचार खत्म हो गया.’ यह खबर पूरे गांव में पहुंच गयी. बिहारी लोहार के बगीचे से होते हुए सुखी पंडित के मड़हे में पहुंचते-पहुंचते वह थेथर हो चुकी थी. सुखी उठ कर बैठ गये. लाठी उठाये और चौराहे की तरफ बढ़ गये, जहां से यह खबर चली थी. लालसाहेब चाय बांट रहे थे. चिखुरी मुस्कुरा रहे थे और उमर दर्जी बीड़ी के जुगाड़ में इधर-उधर देख रहे थे.
सुखी पंडित ने पहुंचते ही सवाल दागा- भाई! कोई कह रहा था कि अब मुल्क में भ्रष्टाचार नहीं रहा? नवल उपधिया खुरपेंची आदमी माने जाते हैं.
उन्होंने तड़ से जवाब दिया- हां भइया! परसों उसका कतल हो हो गया. पर ई पता नहीं चल पा रहा है कि इसको मारा किसने? भ्रष्टाचार रहा बहुत दमदार. पूरा देश उसकी इज्जत करता रहा, वह जहां कहीं भी पहुंचा, लोगों ने उसे सीने से लगा लिया, बड़ी आव-भगत होती रही, पर का करियेगा, मरना तो था ही सो मर गया..
नवल उपधिया यह बात कह ही रहे थे कि इतने में लखन कहार को खांसी आ गयी. यह व्यवधान की सूचना थी, इसे सब जानते हैं कि लखन को कब खांसी आती है. नवल उपधिया ने पलट कर लखन कहार की ओर देखा- येमा हंसने का कौन बात है? लखन बोले- हंसे नाहीं भाई! खांसी आ गयी. तो आगे बताया जाये कि कतल कैसे भवा?
अब मद्दू पत्रकार ने बताना शुरू किया- हुआ यूं की एक दिन बड़े जोर की आंधी बही. आंधी के साथ लोग बहे, लोगों के साथ जुनून बहा. काहें से कि जो आगे-आगे चल रहा था, वह दौड़ भी रहा था, सब भागे जा रहे थे उसके पीछे-पीछे. किसी ने पूछा भी था कि यह सफेद दाढ़ीवाला खूंखार आदमी कौन है और किसके पीछे भाग रहा है? वहां अलग-अलग तरह के डिब्बे रखे थे, उसमें से आवाज आनी शुरू हो गयी- यह जो सफेद दाढ़ी में आगे-आगे भाग रहा है, इसके पीछे काली, भूरी, बादामी, सुनहरी रंग की कई दाढ़ियां हैं. यह इंसान नही है, शेर है. यह आंधी की तरह दौड़ता है, तूफान की तरह तबाही मचाता है.
यह गुस्से में है, कह रहा है कि भ्रष्टाचार को मार कर उसे जमीन में दफना देगा. भ्रष्टाचार के खीसे में जो रकम है, उसे जनता जनार्दन में बांट देगा. एक नया सूरज निकलेगा. चीख-चीख कर डिब्बा यही बोलता रहा, लोग सुन-सुन कर डिब्बा होते रहे. वही भ्रष्टाचार मारा गया है और हम उसी भ्रष्टाचार के मारे जाने की खुशी में सोहर गा रहे हैं..
मद्दू की बात से कई सवाल उठ रहे हैं. एक-एक करके लोगों ने अपनी जिज्ञासा बतायी- वो जो आगे था, क्या वो इंसान नहीं रहा? आखिर वो भ्रष्टाचार को क्यों मारना चाहता रहा? उसके खीसे में कितनी रकम रही? ई कब तक बंट जायेगी? वगैरह-वगैरह..
लेकिन भिखई मास्टर ने सब को खारिज करते हुए जो बयान दिया, उसका लुब्बो-लुवाब यह रहा- भ्रष्टाचार हमारे सामाज में राष्ट्रीय सहूलियत के रूप में स्वीकार कर ली गयी है. लेनेवाला खुश, तो देनेवाला भी खुश. तंत्र कोई भी हो, इससे बरी नहीं हो सकता. और जदि ई खत्म हो जाये, तो फिर क्या पूछना.
भिखई मास्टर ने आगे कहा- भ्रष्टाचार कई तरह का होता है. उसमें से एक भ्रष्टाचार ऐसा होता है, जो समाज को और उसकी आनेवाली पीढ़ियों को बधिया करके नपुंसक बना देता है. उदाहरण सुनो- जो मध्य प्रदेश में हुआ, इसको इसी श्रेणी में रख कर देखो. कई लाख करोड़ का घोटाला है.
वहां पैसा लेकर डॉक्टर बनाया गया, इंजीनियर बनाया गया. लेखपाल से लेकर मंत्री तक बनाया गया. क्या होगा इस समाज का? यही वो लोग हैं, जो हांका लगा रहे थे कि हम भ्रष्टाचार को खत्म करेंगे. छतीसगढ़ को देखो, कई सौ करोड़ का चावल, जो गरीबों के लिए था, उसे सरकार ही खा गयी.
चिखुरी जो अब तक चुप बैठे थे चीख पड़े- कान खोल कर सुन लो सब के सब! यह लंपटों का हांका रहा. देश की सहज और सरल जनता को छला गया है. उसे झूठे सपने दिखाये गये. वह बहुत आस लगा कर उम्मीद पर बैठी रही. लेकिन इसे मिला क्या? महंगाई की मार, फरेब के किस्से. और अगर जवाब मांगो तो कत्ल! व्यापमं में कितनी हत्याएं हुई हैं और अभी आगे भी होंगी. दुनिया का सबसे बड़ा व्यापार है, जो हत्या के कंधे पर बैठ कर हिटलर और स्टालिन को भी पीछे छोड़ गया है..
मामला संजीदा होता देख कर नवल उपधिया ने रुख बदलने की कोशिश की. सुना है बिहार में भी हांका लगने जा रहा है. चिखुरी ने घुड़की दी- नवल वह बिहार है, काठ की हांड़ी एक ही बार चढ़ती है. बात पूरी होने के पहले ही कयूम मियां उठ कर भागे. अपनी तहमत बाहर तार पर सुखाने छोड़ आये हैं, बारिश शुरू होते ही उन्हें याद आया. इधर नवल उपाधिया ने अपनी साइकिल उठा ली और कजरी पर उतर गये- सवनवा में ना जइबे ननदी..

Next Article

Exit mobile version